प्रयागराज: जेल में बंद कर्मचारियों के बकाया वेतन के भुगतान की जिम्मेदारी नियोक्ता की नहीं- HC

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कारावास की अवधि के दौरान मजदूरी के भुगतान के लिए जेल में बंद कर्मचारी को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि केवल दुर्लभ मामलों में ही इस तरह की राहत दी जा सकती है। अगर नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों के कर्तव्यों के निर्वहन में कोई बाधा उत्पन्न की गई है तो ऐसे में 'काम नहीं तो वेतन नहीं' के सिद्धांत को दरकिनार किया जा सकता है।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अगर कर्मचारी किसी कदाचार में संलिप्त होने के कारण काम से अनुपस्थित रहता है तो बाद में अनुपस्थिति की अवधि के वेतन के भुगतान का बोझ नियोक्ता पर नहीं डाला जा सकता है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकलपीठ ने शिवाकर सिंह की याचिका खारिज करते हुए की। दरअसल, याची पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(बी) के साथ धारा 13(1) के तहत उपभोक्ताओं से बिजली कनेक्शन के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था।
इसके बाद एक उपभोक्ता की शिकायत पर भ्रष्टाचार निरोधक विभाग के पुलिस अधीक्षक द्वारा हाथरस में याची के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाने के बाद याची जनवरी 2015 से लेकर दिसंबर 2018 तक जेल में बंद रहा। जेल से छूटने के बाद याची ने उक्त अवधि की मजदूरी के भुगतान के लिए प्राधिकरण के समक्ष अभ्यावेदन दिया, जिसे 'कोई काम नहीं तो वेतन नहीं' सिद्धांत के आधार पर खारिज कर दिया गया। इसके बाद याची ने अपने वेतन के भुगतान के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
कोर्ट ने मामले के तथ्यों को देखते हुए माना कि वास्तव में याची के पिछले वेतन का भुगतान करने से राजकीय खजाने को अनुचित नुकसान होगा, क्योंकि याची किसी विभागीय जांच के तहत कार्य से अनुपस्थित नहीं था, बल्कि कथित आरोप में वह कारावास की सजा भुगत रहा था। अतः कारावास की अवधि के दौरान बकाया वेतन के भुगतान का कोई वैध आधार नहीं बनता है।
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