'मनुष्य हूं... देवता थोड़े ही हूं, गलतियां हो सकती हैं पर बदइरादे से नहीं करूंगा', पॉडकास्ट में बोले प्रधानमंत्री मोदी 

'मनुष्य हूं... देवता थोड़े ही हूं, गलतियां हो सकती हैं पर बदइरादे से नहीं करूंगा', पॉडकास्ट में बोले प्रधानमंत्री मोदी 

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि वह ‘देवता’ नहीं बल्कि मनुष्य हैं और गलतियां उनसे भी हो सकती हैं लेकिन कभी भी वह बदइरादे से गलती नहीं करेंगे। जेरोधा के सह-संस्थापक निखिल कामथ के साथ एक पॉडकास्ट में संवाद करते हुए मोदी ने यह भी कहा कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं थी पर हालात की वजह से उन्होंने प्रधानमंत्री पद का तक सफर तय किया। आम जनता से जुड़ने का कोई भी मौका न गंवाने वाले प्रधानमंत्री मोदी का यह पहला पॉडकास्ट है।

प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर इसे जारी किया। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने एक भाषण को याद करते हुए मोदी ने कहा कि तब उन्होंने कुछ प्रमुख बातें कही थी।

 उन्होंने कहा, ‘‘मैंने कहा था कि मेहनत करने में कोई कमी नहीं रखूंगा। मैं मेरे लिए कुछ नहीं करूंगा। मनुष्य हूं, गलती हो सकती है। बदइरादे से गलत नहीं करूंगा। मैंने इन्हें जीवन का मंत्र बनाया। गलतियां होती हैं... मैं भी मनुष्य हूं, देवता थोड़े ही हूं। मनुष्य हूं तो गलती हो सकती है...पर बदइरादे से गलत नहीं करूंगा।’’ अच्छे लोगों के राजनीति में आने की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री ने पॉडकास्ट में इस बात पर जोर दिया कि उन्हें एक मिशन के साथ राजनीति में आना चाहिए न कि किसी महत्वाकांक्षा के साथ। 

उन्होंने कहा, ‘‘राजनीति में अच्छे लोग आते रहने चाहिए। वे मिशन लेकर आएं, एंबीशन लेकर नहीं। मिशन लेकर निकले हैं तो कहीं ना कहीं स्थान मिलता जाएगा। एंबीशन से ऊपर होना चाहिए मिशन। फिर आपके अंदर क्षमता होगी।’’ प्रधानमंत्री ने सवालिया अंदाज में कहा कि आज के युग में नेता की जो परिभाषा आप देखते हैं, उसमें महात्मा गांधी कहां फिट होते हैं? उन्होंने कहा, ‘‘व्यक्तित्व के लिहाज से शरीर दुबला पतला...ओरेटरी (भाषण कला) न के बराबर थी। उस हिसाब से देखें तो वह लीडर बन ही नहीं सकते थे। तो क्या कारण थे कि वह महात्मा बने। उनके भीतर जीवटता थी जिसने उस व्यक्ति के पीछे पूरे देश को खड़ा कर दिया था।’’ 

प्रधानमंत्री ने कहा कि जरूरी नहीं है कि नेता लच्छेदार भाषण देने वाला ही होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘यह कुछ दिन चल जाता है। तालियां बज जाती हैं। लेकिन अंतत: जीवटता काम करती है। दूसरा मेरा मत है कि भाषण कला से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है संवाद कला। आप संवाद कैसे करते हैं?’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘अब देखिए, महात्मा गांधी हाथ में अपने से भी ऊंचा डंडा रखते थे, लेकिन अहिंसा की वकालत करते थे। बहुत बड़ा अंतर्विरोध था फिर भी संवाद करते थे। महात्मा गांधी ने कभी टोपी नहीं पहनी लेकिन दुनिया गांधी टोपी पहनती थी। यह संवाद की ताकत थी। महात्मा गांधी का क्षेत्र राजनीति था लेकिन राज व्यवस्था नहीं थी। वह चुनाव नहीं लड़े, वह सत्ता में नहीं बैठे। लेकिन मृत्यु के बाद जो जगह बनी (समाधि), वह राजघाट बना।’’ 

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