पीलीभीत: हैबिटैट बन रहा गन्ना, व्यवहार में परिवर्तन...जंगल से घूम रहे बाहर पांच बाघ
पीलीभीत, अमृत विचार: पीलीभीत टाइगर रिजर्व के सीमावर्ती इलाकों में गन्ने की खेती और जंगल में इंसानी दस्तक से ही बाघ जंगलों से बाहर निकल रहे हैं। ठंड के दिनों में गन्ने की फसल बाघिन के लिए जहां सबसे मुफीद वास (हैबिटैट) है, वहीं जंगलों में इंसानों की आवाजाही बढऩे से बाघ के अंदर सदियों पुराना डर भी निकल रहा है। यही वजह है कि नरभक्षी न होते हुए भी बाघ इंसानों पर हमला करते आ रहे है। जानकारों के मुतबिक जंगल सीमा से सटे क्षेत्रों में यदि गन्ने के बजाए अन्य फसलें पैदा की जाए तो बाघों के आबादी क्षेत्र में आने पर अंकुश लग सकता है।
पीलीभीत टाइगर रिजर्व में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में मरने वालों का आंकड़ा 50 तक पहुंच चुका है। यह दीगर बात यह है कि बाघों का कुनबा उसी जंगल में बढ़ता है, जहां जंगल का स्वास्थ्य अच्छा होता है। बाघ जंगल से दो ही परिस्थिति में बाहर आते हैं, पहला जब जंगल का स्वास्थ्य बेहतर न हो और दूसरा उनका कुनबा बहुत बढ़ गया हो। पीलीभीत टाइगर रिजर्व की बात करें तो विभागीय अफसर भी इस बात को स्वीकारते हैं कि जंगल में बाघों की संख्या बढ़ी है, ऐसे में अब जंगल का एरिया उनके संख्या के आगे छोटा होता जा रहा है। वर्तमान समय की बात करें तो सामाजिक वानिकी प्रभाग के मुताबिक करीब 05 बाघ जंगल सीमा से बाहर घूम रहे हैं। वन अफसरों के मुताबिक जंगल से बाहर घूम रहे इन बाघों पर नजर रखी जा रही है।
तो इस वजह से जंगल से बाहर आते हैं बाघ
जिले के जंगल को टाइगर रिजर्व घोषित किए जाने के बाद यदि मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं पर गौर करें तो वर्ष 2014 से अब तक बाघ हमलों में 50 लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि इस आंकड़े में वह मृतक भी शामिल हैं जिनकी मौतें जंगल क्षेत्र के अंदर हुई हैं। साल 2021 और 2022 के बाद पीलीभीत टाइगर रिजर्व के बाघ एक फिर आक्रामक होते नजर आ रहे हैं। वर्ष 2023 में 07 लोगों को बाघ हमलों में जान गंवानी पड़ी, वहीं पिछले साल 06 लोग बाघ हमलों का शिकार हुए। वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक बाघों के वास स्थान के लिए गन्ने की फसल सबसे आदर्श स्थान है।
नीलगाय, चीतल, सांभर और सुअर जैसे शिकार बाघ को यहां आसानी से मिल जाते हैं। पानी भी वहीं मिल जाता है। उनके लिए यह स्थान तब और मुफीद हो जाते हैं, जब बाघिन बच्चों को जन्म देती है। सामान्यत: ठंड के दिनों में ही बाघिन बच्चे जनती है। बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष की रोकथाम को जनपद में फसलों का पैटर्न बदलकर इस समस्या पर अंकुश लगाने का प्लान भी बनाया गया, मगर यह सबकुछ बैठकों तक ही सीमित रहा। हालांकि वन अफसरों का कहना है कि इसको लेकर जल्द ही एक कार्ययोजना बनाई जा रही है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के लिए वृहद स्तर पर प्रयास चल रहे हैं। जंगल से सटे ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए मानव-वन्यजीव सहअस्तित्व अभियान चलाया जा रहा है। उम्मीद है कि इसके बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे- मनीष सिंह, डिप्टी डायरेक्टर, पीलीभीत टाइगर रिजर्व।
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