मुरादाबाद : शिकायत के बाद गौरी शंकर मंदिर पहुंचे प्रशासनिक अधिकारी, मंदिर पर नहीं मिला किसी का कब्जा
किन्नर ने कहा- वह तीन साल से कर रही मंदिर की देखभाल....डीएम बोले, रिपोर्ट मिलने के बाद मंदिर में पूजा-अर्जना की स्थायी व्यवस्था करेंगे, अतिक्रमण भी हटाएंगे
मुरादाबाद, अमृत विचार। नागफनी थाना क्षेत्र में गौरी शंकर मंदिर को लेकर की गई शिकायत के बाद शुक्रवार को प्रशासनिक अमला मंदिर की जांच करने पहुंचा। जहां प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों को मंदिर की देखभाल करती हुई मोहिनी किन्नर मिली। किन्नर का कहना है कि वह अकेले रहकर मंदिर की देखरेख करती है। जिलाधिकारी अनुज सिंह ने बताया कि मंदिर के आसपास कुछ अतिक्रमण मिला है, इसे हटाने के साथ ही मंदिर में पूजा-अर्चना की स्थायी व्यवस्था की जाएगी।
सेवाराम नामक व्यक्ति ने गुरुवार को हिंदू संगठन के साथ जिलाधिकारी अनुज सिंह व एसएसपी सतपाल अंतिल को दिए शिकायत पत्र में आरोप लगाया था कि नागफनी थाना इलाके के झब्बू के नाला स्थित मुस्लिम बस्ती में गौरी शंकर का प्राचीन मंदिर मौजूद है, जो उनका पुश्तैनी है। इसे लगभग 100 साल पूर्व उनके परदादा स्वर्गीय भीमसेन ने बनवाया था, लेकिन 1980 में हुए मुरादाबाद दंगे के दौरान वहां पर हालात बिगड़ गए थे और उनके परदादा भीमसेन की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद उनका परिवार वहां से पलायन कर थाना मझोला के लाइनपार में बस गया था।
सेवाराम का आरोप था कि उन्होंने पूर्व में जब भी मंदिर पर जाने का प्रयास किया तो मुस्लिम समुदाय के लोगों ने उन्हें डरा-धमका कर भगा दिया था। शिकायत मिलने के बाद शुक्रवार को एसडीएम सदर राम मोहन मीना की अुगवाई में प्रशासनिक अमला मौके पर पहुंचा और पूरे मंदिर की जांच की है। मंदिर से सटे मकान में रहने वाली मोहिनी किन्नर ने एसडीएम को बताया कि वह पिछले तीन साल से वह मंदिर परिसर की देखभाल कर रही है। इस बारे में डीएम अनुज सिंह ने बताया कि एसडीएम सदर को जांच के लिए मंदिर में भेजा गया था। जांच में किसी का कब्जा नहीं मिला है। पास में रहने वाली किन्नर ही पूजा-पाठ और मंदिर की देखरेख करती है। मंदिर के पास कुछ अवैध निर्माण मिला है, उसे हटवाने के साथ ही स्थायी रूप से पूजा-पाठ का इंतजाम कराया जाएगा।
रतनपुर कलां के प्राचीन जैन मंदिर में बने लाइब्रेरी या डिस्पेंसरी
बिलारी तहसील के रतनपुर कला गांव में करीब 40 सालों से बंद पड़े जैन मंदिर को लेकर टीएमयू के चांसलर सुरेश जैन ने शुक्रवार को कहा है कि प्रशासन मंदिर की जमीन का उपयोग डिस्पेंसरी, लाइब्रेरी या फिर अन्य किसी सार्वजनिक कार्य में करे। गांव में अब जैन समाज का कोई परिवार नहीं रहता है। जैन मंदिर पिछले 4 दशक से बंद हैं और मूर्तियां दूसरे मंदिरों में भेज दी गई थीं, इसलिए इस मंदिर के जीर्णोद्धार की जरूरत नहीं है। सुरेश जैन ने शुक्रवार को मीडिया को प्रेस विज्ञप्ति जारी करके रतनपुर कला के जैन मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी साझा की। कहा कि बिलारी तहसील के गांव रतनपुर कला में करीब 40 साल पहले तक जैन धर्मावलम्बियों के 10 परिवार रहते थे। इनमें से कुछ व्यवसायी और कुछ किसान थे। धीरे-धीरे सभी यहां से पलायन कर गए और देश के अलग-अलग हिस्सों में बसे हैं। वर्ष 1985 में हुई डकैती की घटना के बाद जैन समाज के बाकी बचे लोगों ने भी गांव छोड़ दिया। इसके बाद से रतनपुर कला का प्राचीन जैन मंदिर बंद पड़ा है।
उन्होंने कहा कि संभल की घटना के बाद पूरे प्रदेश में जगह-जगह प्राचीन मंदिर ढूंढे जा रहे हैं। ऐसे में रतनपुर कला गांव में प्राचीन जैन मंदिर भी सामने आया था। यह मंदिर अब खंडरनुमा स्थिति में है। कुछ लोग इस मंदिर के जीर्णोद्धार की मांग उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि रतनपुर कला के प्राचीन जैन मंदिर में भगवान की जो प्रतिमाएं थीं उन्हें दूसरे मंदिरों में भेज दिया गया है। मंदिर में भगवान आदिनाथ की एक मूल प्रतिमा वर्ष 1985 में ही मझोला, मुरदाबाद मंदिर में आ गई थी। बाकी बची प्रतिमाएं भी पूजा के सामान सहित उसी वर्ष हल्द्वानी में स्थित जैन मंदिर में दे दी गयी थीं। सुरेश जैन ने कहा कि अब गांव में कोई जैन परिवार नहीं है, इसलिए इस गांव के जैन परिवार 4 दशक से बंद जैन मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं चाहते हैं। सभी चाहते हैं कि जिला प्रशासन के जरिये प्रदेश सरकार इस मंदिर को अपने कब्जे में ले ले और यहां डिस्पेंसरी या लाइब्रेरी बना दी जाए या फिर कोई सार्वजनिक उपयोग किया जाए।
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