हरित अर्थव्यवस्था की बाधाएं
भविष्य में देश को हरित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए हरित परिवर्तन के महत्व व प्रभाव को सुनिश्चित करने वाली व्यापक आर्थिक नीतियों के साथ ही ग्लोबल नॉर्थ का सहयोग बेहद जरूरी है। हरित परिवर्तन का मतलब है, पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ भविष्य के लिए किए जाने वाले प्रयास। इसमें नीतियां, रणनीतियां और प्रथाएं शामिल हैं, जिनका मकसद आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करना होता है। भारत खुद को हरित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित करने के लिए तमाम उपाय कर रहा है और इसी क्रम में अपनी आर्थिक नीतियों व ऊर्जा रणनीतियों को नए सिरे से तैयार कर रहा है।
भारत का हरित अर्थव्यवस्था में संक्रमण केवल एक पर्यावरणीय आवश्यकता नहीं है, बल्कि सतत् विकास का मार्ग भी है, जो सीधे संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों से जुड़ा हुआ है। महत्वपूर्ण है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आर्थिक वृद्धि को हरित लक्ष्यों के साथ जोड़ा और प्रधानमंत्री के रूप में अपने एक दशक लंबे कार्यकाल के दौरान पर्यावरण संरक्षण और जलवायु कार्रवाई की भी वकालत की।
हरित परिवर्तन की ओर बढ़ते यह तेज कदम आज सिर्फ़ पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिहाज़ से ही जरूरी नहीं हैं बल्कि आर्थिक और सामाजिक लिहाज़ से भी हरित अर्थव्यवस्था की ओर यह बदलाव बेहद आवश्यक है। भारत द्वारा किए जा रहे उपायों का मकसद हरित परिवर्तन की प्रक्रिया में तेजी लाना है ताकि देश को हरित अर्थव्यवस्था में बदला जा सके।
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का सामना करने और जलवायु अनुकूलन के लिए वर्तमान में सबसे बड़ी ज़रूरत हरित अर्थव्यवस्था की ओर क़दम बढ़ाने की है। हरित अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव को आम तौर पर ग्रीन ट्रांजिशन यानी ‘हरित परिवर्तन’ कहा जाता है। हरित परिवर्तन की राह में आर्थिक व सामाजिक चुनौतियां भी हैं। हरित परिवर्तन से जो सबसे बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है, वो अकुशल यानी गैर-प्रशिक्षित कामगारों की आजीविका और उनके जीवन पर आने वाला संकट है।
इनका सामना करने के लिए आवश्यक नीतिगित हस्तक्षेप एवं नियम-कानूनों की ज़रूरत होती है। हरित परिवर्तन के लिए, मानसिकता, आदतों, और विश्वासों में बदलाव की ज़रूरत है। ऐसे में यह ज़रूरी है कि ग्रीन सेक्टर में निवेश को बढ़ाने के लिए सरकारी बजट का समझबूझ के साथ उपयोग किया जाए, जिससे इसमें निजी निवेशक भी दिलचस्पी लेने लगें। केंद्र सरकार को वित्तीय नज़रिए से हरित परिवर्तन को लेकर कुछ कड़े क़दम उठाने होंगे, ताकि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान संतुलन बनाया जा सके।