One Nation One Election: एक देश एक चुनाव का समर्थन करेगी बसपा? जानिए क्या बोलीं मायावती
लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने रविवार को कहा कि उनकी पार्टी 'एक देश, एक चुनाव' को लेकर वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा एक-दो दिनों में लाये जाने वाले विधेयक का स्वागत करेगी। मायावती ने कहा कि बसपा गरीब व मजलूमों की ही पार्टी है और इस पार्टी के संगठन व चुनाव आदि भी इन्ही के ही बलबूते चलाये व लड़े जाते हैं।
बसपा इसके लिए कांग्रेस, भाजपा और अन्य दलों की तरह यहाँ बड़े-बड़े पूँजीपतियों व धन्नासेठों आदि से कोई भी आर्थिक मदद नहीं लेती है। ऐसे में एक साथ चुनाव होने से फिर हमारी पार्टी पर इन सब मामलों में बहुत कम खर्चे का बोझ पड़ेगा। साथ ही इससे जल्दी-जल्दी चुनाव आचार संहिता ना लगने की वजह से भी जनहित के कार्य ज्यादा नहीं रूकेंगे।
उन्होने कहा कि बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान की 75 वर्षों की गौरव यात्रा पर इस वर्ष भी संसद में काफी गरम चर्चा चल रही है मगर सच्चाई यह है कि देश पर अब तक राज करने वाली पार्टियों ने संविधान पर सही से अमल करने के मामले में अपनी सच्ची निष्ठा, ईमानदारी व देशभक्ति अगर निभाई होती तो फिर अपने देश का हाल आज इतना बदहाल नहीं होता कि यहाँ लगभग 80 करोड़ लोगों को रोजगार के अभाव में अपनी भूख मिटाने के लिए थोड़े से सरकारी अनाज का मोहताज जीवन गुजारने को मजबूर नहीं होना पड़ता।
उन्होंने कहा कि किसान, मजदूर, व्यापारी व अन्य मेहनतकशः लोगों के साथ-साथ छात्र व युवा वर्ग, महिलायें एवं बुर्जुग अपनी समस्याओं को लेकर परेशान व चिन्तित हैं। इससे स्पष्ट है कि यहाँ संविधान विफल नहीं रहा है बल्कि देश पर राज करने वाले लोगों व पार्टियों ने ही देश के संविधान को फेल करने का काम किया है।
मायावती ने कहा कि संसद में संविधान को लेकर विशेष चर्चा में कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप तथा 'हम से ज़्यादा तुम दोषी' जैसी संकीर्ण राजनीति का स्वार्थ ज्यादा हावी नज़र आता है, यह स्थिति देश के लिए दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।
डॉ. अम्बेडकर देश में पहली बनी कांग्रेसी सरकार में ही यह भाँप गये थे कि केन्द्र व राज्यों में सत्ता जातिवादी व संकीर्ण मानसिकता रखने वाले लोगों के हाथों में रहते हुये यहाँ सदियों से उपेक्षित वर्गों को पूरा लाभ नहीं मिलेगा। इससे दुःखी होकर उन्होने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा भी दे दिया था। बसपा अध्यक्ष ने कहा “लगभग यही स्थिति संसद में मेरे साथ भी गुजरी है, जब मुझे अपने लोगों के उत्पीड़न के विरुद्ध राज्यसभा में बोलने नहीं दिया था और तब फिर मजबूरी में मुझे उस समय राज्यसभा से इस्तीफा भी देना पड़ गया था।”
उन्होंने कहा कि जातिवादी व संकीर्ण मानसिकता रखने वाली पार्टियों से भी अब कोई ज्यादा उम्मीद नहीं रखनी चाहिये। दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को लुभाने के लिए कांग्रेस व समाजवादी पार्टी ने आरक्षण को लेकर काफी कुछ हवा-हवाई बातें कही हैं, जिसमें रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है। यदि इस मुद्दे पर ये दोनों पार्टियाँ संसद में चुप ही रहती तो यह ज्यादा उचित होता। भाजपा की भी आरक्षण विरोधी मानसिकता साफ झलकती है, जो इसे पास कराने के कतई भी मूड में नहीं है।
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