लक्ष्यों की राह में रुकावटें

  लक्ष्यों की राह में रुकावटें

सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने की समय सीमा जैसे-जैसे पास आ रही है, वैसे-वैसे इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह में आने वाली रुकावटें भी उभर कर सामने आ रही हैं। भारत ग्लोबल साउथ की एक सशक्त आवाज़ बनकर उभरा है और सतत विकास लक्ष्यों के रास्ते में आने वाली रुकावटों को दूर करने एवं इन लक्ष्यों को तेज़ी से हासिल करने में उसकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।

गौरतलब है संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2015 में सतत विकास लक्ष्यों को अपनाया था। संयुक्त राष्ट्र द्वारा पेश किए गए ये 17 सतत विकास लक्ष्य एक दूसरे पर निर्भर हैं और इनका मकसद वर्ष 2030 तक गरीबी, असमानता, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण को हो रहे नुकसान जैसी तमाम वैश्विक चुनौतियों से निपटना है। सतत विकास लक्ष्यों का उद्देश्य व्यापक है, बावजूद इसके इनमें तमाम विरोधाभास भी हैं, जिनकी वजह से इन्हें लागू करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। देश में खेती-किसानी करने वाले 60 प्रतिशत से अधिक लोग बारिश पर निर्भर हैं।

बारिश के समय में बदलाव हो रहा है, चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि हो रही है और तापमान बढ़ रहा है, इससे खेती करने वालों पर असर पड़ना लाज़िमी है। सतत विकास लक्ष्यों को पाने के लिए व्यापक स्तर पर निवेश की ज़रूरत है और इसे पूरा करने में निजी सेक्टर बेहद महत्वपूर्ण है। खास तौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर एवं टिकाऊ शहरी विकास से संबंधित एडीजी के लिए जरूरी निवेश में निजी सेक्टर की भूमिका बेहद अहम है। 

स्मार्ट सिटीज मिशन और सरकारी-निजी भागीदारी से संचालित अन्य परियोजनाओं के ज़रिए भारत ने इन लक्ष्यों को पाने में बड़ी क़ामयाबी हासिल की है। हालांकि कई मामलों में शहरी विकास से जुड़ी इन परियोजनाओं को समुचित नियम-क़ानूनों के अभाव, जोखिमों के बारे सटीक जानकारी नहीं होने और स्पष्ट दिशा निर्देशों की कमी जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं के कारण बड़ी परियोजनाओं के लिए निवेशकों को आकर्षित करने में परेशानी होती है।

देश में 50 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण परिवारों का डिजिटल दुनिया से कोई संपर्क नहीं है। इस वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की ऑनलाइन शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और वित्तीय सेवाओं तक पहुंच बहुत कम है। एसडीजी को हासिल करने में आ रहीं चुनौतियों में वित्तीय संसाधनों की कमी, व्यापार तनाव, महत्वपूर्ण आंकड़ों की कमी, डिजिटल विभाजन, जल-संबंधी लक्ष्यों और उद्देश्यों पर धीमी प्रगति शामिल हैं। सतत विकास को हासिल करने के लिए आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक इन तीनों क्षेत्रों में नीतियों को एक साथ काम करना होगा।