Prayagraj News : खाद्य सुरक्षा अपराध खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट प्राप्त होने की तिथि से मान्य

Prayagraj News : खाद्य सुरक्षा अपराध खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट प्राप्त होने की तिथि से मान्य

अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के तहत अपराध की तिथि के निर्धारण के संबंध में नियमों को स्पष्ट करते हुए कहा कि अनुपयुक्त और असुरक्षित खाद्य पदार्थ के बारे में अपराध उस तिथि से माना जाएगा, जब खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट प्राप्त होगी, ना कि वह तारीख जब नमूना एकत्र किया गया था। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकलपीठ ने मेसर्स केवल डेयरी द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दाखिल याचिका को खारिज करते हुए दिया।

याचिका में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट-प्रथम, कानपुर नगर द्वारा पारित आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी, साथ ही अधिनियम 2006 की धारा 51 और 59 (i) के तहत दर्ज शिकायत मामले की पूरी कार्यवाही को भी रद्द करने की मांग की गई थी। मामले के अनुसार खाद्य सुरक्षा अधिकारी ने 24 नवंबर 2017 को याची के परिसर से दूध का नमूना एकत्र किया, जिसके बाद उसे विश्लेषण के लिए क्षेत्रीय खाद्य प्रयोगशाला मेडिकल कॉलेज परिसर, मेरठ में खाद्य विश्लेषक के पास भेजा गया। 10 दिसंबर 2017 को प्राप्त पहली रिपोर्ट में दूध के घटिया होने की पुष्टि की गई। इसके बाद याची ने नोटिस जारी होने के बाद खाद्य विश्लेषक की रिपोर्ट के खिलाफ संबंधित अधिकारी के समक्ष अपील दाखिल की। दूध का नमूना फिर से नए सिरे से विश्लेषण के लिए भेजा गया। 25 अप्रैल 2018 को दूसरी रिपोर्ट में भी दूध को घटिया और असुरक्षित बताया गया। औपचारिक कार्यवाही के बाद 4 जुलाई 2019 को शिकायत दर्ज की गई। वर्तमान याचिका में याची ने तर्क दिया कि आरोपित कार्यवाही समय-सीमा के अनुसार उचित नहीं है, क्योंकि नमूना एकत्र करने के एक वर्ष से अधिक समय के बाद शिकायत दर्ज की गई। अंत में कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि नमूना रिपोर्ट प्राप्त होने की तिथि से अपराध माना जाएगा।

शिकायत अपराध की तिथि से 1 वर्ष के बाद दाखिल की गई थी, लेकिन उस पर समय-सीमा का प्रतिबंध नहीं माना जाएगा, क्योंकि उपरोक्त अधिनियम की धारा 77 के विशेष प्रावधान के तहत खाद्य सुरक्षा आयुक्त द्वारा देरी के लिए विशिष्ट कारण दर्ज करने पर 3 वर्ष तक का समय विस्तार दिया जा सकता है। अतः याची का यह तर्क अस्वीकार किए जाने योग्य है कि 1 वर्ष के बाद अभियोजन की समयावधि समाप्त हो गई थी। इसके अलावा उक्त प्रावधान सीआरपीसी की धारा 468 पर भी प्रभावित होगा, क्योंकि अधिनियम, 2006 की धारा 89 में प्रावधान के अनुसार एफ एसएस अधिनियम न केवल खाद्य संबंधी कानून को बल्कि सीआरपीसी सहित अन्य कानूनों को भी नियंत्रित करता है।

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