Lucknow University: 'परि' और 'आवरण' को समझना जरूरी, इसका संरक्षण है जरूरी
लखनऊ, अमृत विचारः अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद लखनऊ महानगर के विकासार्थ विद्यार्थी (SFD) आयाम ने दो दिवसीय मॉडल कॉन्फ्रेंस ऑफ यूथ (MCOY ) 2024 के कार्यक्रम आयोजित किया। इस अवसर पर आईआईटी लखनऊ के डायरेक्टर डॉ. अरुण मोहन शेरी, अभाविप के राष्ट्रीय मंत्री अंकित शुक्ला, अभाविप अवध प्रांत की उपाध्यक्ष प्रो. मंजुला उपाध्याय एवं विकासार्थ विद्यार्थी लखनऊ महानगर संयोजक शाश्वत सांकृत ने माता सरस्वती एवं स्वामी विवेकानंद जी के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
मॉडल कॉन्फ्रेंस ऑफ यूथ के सम्मेलन में युवाओं को संबोधित करते हुए आईआईटी के निदेशक डॉ. अरुण मोहन सूरी ने कहा कि प्लास्टिक मुक्त भारत का महाभियान पर्यावरणीय संतुलन को बनाने में कारक सिद्ध होगा। ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन को लेकर भी हमको बात करने की आवश्यकता है। भारत के शैक्षिक संस्थानों में पर्यावरणीय व्यवहार की शिक्षा और उसे समाज के मध्य ले जाने में कॉन्फ्रेंस सहायक सिद्ध होगी। भारतीय युवाओं को पर्यावरण के प्रति चिंतन रखते हुए अपने दैनिक दिनचर्या में उनके अनुकूलन हेतु प्रयास भी आवश्यक है। डॉ. शेरी ने पर्यावरण और जैव विविधता पर अपने संबोधन में कहा कि जैव विविधता मौलिक रूप से महत्वपूर्ण है। कई लोगों का मानना है कि इसका अपना एक आंतरिक मूल्य है: प्रत्येक प्रजाति का अपना मूल्य है और उसे अस्तित्व का अधिकार है, चाहे वह मनुष्यों के लिए मूल्यवान हो या न हो।
निसंदेह अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक बार कहा था, 'हमारा कार्य अपनी करुणा के दायरे को बढ़ाकर, सभी जीवित प्राणियों और संपूर्ण प्रकृति को उसकी सुंदरता के साथ गले लगाने के लिए स्वयं को मुक्त करना होना चाहिए।
अभाविप के राष्ट्रीय मंत्री अंकित शुक्ला ने कहा कि पर्यावरण भारत की संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। भारत में सतयुग से लेकर द्वापर और त्रेता में भी मानव और पर्यावरण के मध्य मैत्री संबंध देखने को मिलते हैं। भारत के सतत विकास के मॉडल को आज पूरे विश्व में स्वीकार किया जा रहा है। सतत विकास का मॉडल ही वसुधा के कल्याण का माध्यम है। हमें अपने पर्यावरण के आदर्शों का अनुसरण करना चाहिए और अपने दैनिक जीवन में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए। यह कॉन्फ्रेंस अवश्य ही युवाओं के माध्यम से पर्यावरण चुनौतियों के समाधान का मार्ग प्रशस्त करेगी।
अभाविप अवध प्रांत की उपाध्यक्ष प्रो. मंजुला उपाध्याय ने कहा भारतीय संस्कृति में पर्यावरण की अवधारणा को परिभाषित करते हुए कहा कि आज भी हम जब पर्यावरण की बात करते हैं। पर्यावरण शब्द 'परि+आवरण' के संयोग से बना है। 'परि' का आश्य चारों ओर तथा 'आवरण' का आश्य परिवेश है। पर्यावरण के दायरे में इसलिए वनस्पतियों, प्राणियों और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर को शामिल किया जाता है। वास्तव में पर्यावरण में जल, अग्नि, वायु, भूमि, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं। प्रो. मंजुला ने नवीकरण ऊर्जा के प्रयोग पर अपने उद्बोधन में कहा कि पृथ्वी पर सभी जीवन रूपों को अपने विकास के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। हम इसे विभिन्न स्रोतों से प्राप्त करते हैं। इस प्रकार, आप देखते हैं कि कपड़े से लेकर भोजन तक जो कुछ भी आप उपयोग करते हैं, वह सब हम पृथ्वी पर मौजूद संसाधनों से प्राप्त करते हैं। दैनिक मानवीय गतिविधियों के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत प्राकृतिक संसाधन हैं। हालाँकि, इन संसाधनों का उपयोग करने से हमारे आस-पास का वातावरण भी प्रभावित होता है। कार्यक्रम की प्रस्तावना एसएफडी लखनऊ महानगर संयोजक शाश्वत सांकृत ने रखी।
विकासार्थ विद्यार्थी के मॉडल कॉन्फ्रेंस ऑफ यूथ के इस कार्यक्रम में सैकड़ों प्रतिभागी छात्र एवं छात्राएं तथा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के तमाम कार्यकर्ता उपस्थित रहे।