रक्षा और सुरक्षा चुनौतियां
भू-राजनीतिक और आर्थिक उतार-चढ़ाव से भरी दुनिया में अभूतपूर्व गति से परिवर्तन हो रहे हैं। दुनिया डिजिटलीकरण और सूचना की अधिकता के वर्तमान युग में बड़े पैमाने पर मनोवैज्ञानिक युद्ध का सामना कर रही है। अगर हमारे खतरे अंतर्राष्ट्रीय हैं तो हमारे समाधान भी अंतर्राष्ट्रीय होने चाहिए। सच्चाई है कि तेजी से बढ़ती तकनीकी प्रगति और उभरते खतरों के युग में पारंपरिक सुरक्षा दृष्टिकोण अपर्याप्त साबित हो रहे हैं। युद्ध की पारंपरिक धारणाएं उभरती हुई प्रौद्योगिकियों और विकसित होती रणनीतिक साझेदारियों से नया आकार ले रही हैं।
बदलती दुनिया में उत्पन्न चुनौतियों से निपटने और उनका समाधान करने के लिए राष्ट्र के लिए विकसित हो रहे खतरों को देखते हुए उसी तरह की रक्षा प्रणालियां और रणनीतियां भी विकसित होनी चाहिए। खतरों और चुनौतियों की बदलती प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सशस्त्र बलों के भीतर संचालन के नए दृष्टिकोण और सिद्धांत उभरे हैं। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को कहा कि भारत पारंपरिक सीमा संबंधी खतरों से लेकर आतंकवाद, साइबर हमले और हाइब्रिड युद्ध जैसे अपारंपरिक मुद्दों तक कई तरह की सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है। विकसित हो रहे खतरों के परिदृश्य में जो संगठन अनुकूली सुरक्षा वास्तुकला को अपनाने में विफल रहते हैं, वे सुरक्षा उल्लंघनों और उनके संबंधित परिणामों के जोखिम बढ़ जाते हैं। इसलिए रक्षा मंत्री का यह कहना महत्वपूर्ण है कि आधुनिक युद्ध के बदलते परिदृश्य को समझना होगा और उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए निरंतर अनुकूलन सबसे अच्छी रणनीति है।
गौरतलब है कि ‘अनुकूली रक्षा’ एक रणनीतिक दृष्टिकोण है, जहां एक राष्ट्र के सैन्य बल और रक्षा तंत्र उभरते खतरों और चुनौतियों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए लगातार विकसित होते हैं। यह केवल जो हुआ है उसका जवाब नहीं है, बल्कि यह अनुमान लगाना है कि क्या हो सकता है और इसके लिए सक्रिय रूप से तैयारी करना है। इसमें अप्रत्याशित और विकसित परिस्थितियों का सामना करने के लिए भी अनुकूलन, नवाचार और विकास करने की मानसिकता और क्षमता विकसित करना शामिल है।
समकालीन रक्षा और सुरक्षा चुनौतियों के गहन विश्लेषण की आवश्यकता है। जब किसी भी क्षेत्र की शांति और सुरक्षा को खतरा होता है, तो पूरी दुनिया इसके प्रभाव को कई तरह से महसूस करती है। खतरों का मुकाबला करने के लिए समन्वित अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की आवश्यकता है। इसके लिए साझा जिम्मेदारी ही चुनौतियों से निपटने का एकमात्र तरीका है। यानी सुरक्षा को सामूहिक उद्यम के रूप में देखने की आवश्यकता है, जो सभी के लिए लाभकारी वैश्विक व्यवस्था का निर्माण कर पाए। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को संभालने के लिए संस्थानों और संगठनों के बीच और राष्ट्रों के बीच अधिक समझ, जुड़ाव और सहकारी पहल जरूरी है।