कुंदरकी विधानसभा उप चुनाव : भाजपा-सपा के दावेदारों और पदाधिकारियों में बेचैनी, दोनों दलों की ओर से घोषित होने हैं प्रत्याशी

कुंदरकी विधानसभा उप चुनाव : भाजपा-सपा के दावेदारों और पदाधिकारियों में बेचैनी, दोनों दलों की ओर से घोषित होने हैं प्रत्याशी

मुरादाबाद, अमृत विचार। कुंदरकी विधानसभा उप चुनाव के लिए नामांकन के चार दिन बीतने के बाद भी अभी चुनावी दंगल में भाजपा व सपा की ओर से प्रत्याशी नहीं उतारे गए हैं। जिसको लेकर सबकी नजरें इनकी ओर टिकी हैं। टिकट को लेकर इन दोनों दलों के दावेदारों के अलावा पार्टी के स्थानीय पदाधिकारियों में भी बेचैनी बढ़ गई है। क्योंकि अब नामांकन में सिर्फ तीन दिन बाकी हैं।

उप चुनाव के लिए एक तरफ जहां नामांकन प्रक्रिया चल रही है। वहीं प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा और सपा की ओर से प्रत्याशी की सूची जारी नहीं होने से दावेदारों के साथ ही स्थानीय पदाधिकारी भी बेचैन हैं। दलों के जिलाध्यक्ष पार्टी नेतृत्व द्वारा टिकट घोषित होने की बात कह रहे हैं। लेकिन टिकट में देरी उन्हें भी बेचैन किए है। क्योंकि उसी अनुरूप चुनाव जीतने की रणनीति को भी अंतिम रूप दिया जाएगा। 

हालांकि मतदान 13 नवंबर को होना है, लेकिन फिर भी प्रत्याशी का नाम जानने को सभी व्याकुल हैं। सपा नेतृत्व ने 9 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में कई सीटों पर प्रत्याशी उतार दिया है। लेकिन इसमें कुंदरकी का नाम शामिल न होने से पार्टी पदाधिकारी व दावेदारों की टकटकी नेतृत्व की ओर लगी है। वहीं सपा के साथ गठबंधन में शामिल कांग्रेस के नेताओं को अभी भी समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करें। उपचुनाव में दम भर रहे कांग्रेसी अब खामोश होने लगे हैं। हालांकि कांग्रेस के नाम पर चार लोगों ने पर्चा लिया है। पार्टी नेताओं का कहना है नेतृत्व जो तय करेगा उसका अनुसरण करेंगे। वहीं भाजपा जिलाध्यक्ष आकाश पाल का कहना है टिकट की घोषणा पार्टी का शीर्ष नेतृत्व करेगा। जो भी नाम घोषित होगा सभी उसके साथ पूरी ताकत के साथ मिलकर चुनाव जिताने में जुटेंगे।


मतदाताओं को सहेजने से पहले अपनी गुटबंदी पर रखना होगा अंकुश
कुंदरकी विधानसभा उप चुनाव में टिकट वितरण में देरी दलों में अंदरूनी गुटबाजी व असंतोष को भी माना जा रहा है। भाजपा व सपा दोनों में टिकट को लेकर खेमेबाजी चल रही है। चुनिंदा नाम पर ही रस्साकसी हो रही है। ऐसे में टिकट की सूची जारी करते ही गुटबंदी पर अंकुश रखना दलों के दिग्गजों के लिए भी चुनौती बन सकता है। मतदाताओं से पहले दलों में टिकट वितरण के बाद संभावित असंतोष पर दिग्गजों की नजर है। हालांकि कोई कुछ भी खुलकर नहीं बोल रहा है। लेकिन सबको भीतरखाने पता है कि टिकट जारी होते ही निराश होने वाले दावेदारों का मुंह फुलाना स्वाभाविक है। उन्हें सहेजने के बाद ही चुनाव में जीत पक्की हो सकेगी। चाहे लाख बूथों जीता चुनाव जीता प्रबंधन पर सभी ने बैठकें व कार्यशाला की हो। वास्तविक दम तो नाराज होने वालों को मनाकर ही मतदाताओं को साधने में दिखाना होगा। जिस खेमे के प्रत्याशी को टिकट नहीं मिलेगा उसे साधने की तैयारी दलों में हो रही है। इसके लिए उनके भरोसेमंद व विश्वस्त सिपहसालार ही लगाए जाएंगे।

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