कासगंज: आज भी ऐतिहासिक है कासंगज की धरा पर टेसू, झांझी का विवाह

दशहरा पर्व के साथ ही गली-कूचों में सुनाई देने लगे टेसू झांझी के गीत

कासगंज: आज भी ऐतिहासिक है कासंगज की धरा पर टेसू, झांझी का विवाह

कासगंज, अमृत विचार। टेसू अगर करें, टूसे मगर करें, टेसू लेके ही टरें के बोल इन दिनों शाम होते ही गली-कूचों में सुनाई पड़ रहे हैं। नन्हे-मुन्ने बच्चे टेसू और झांझी लिए द्वार-द्वार पहुंच रहे हैं। शरद पूर्णिमा तक टेसू के संदर्भ में उक्त पंक्तियां यूं ही सुनाई देती रहेंगी।

जिले में झांझी-टेसू का विवाह रचाने की प्रथा का भी प्रचलन है। दशहरे के मेले से लोग झाझी और टेसू के नाम की मटकी खरीद कर लाते हैं। कुम्भकारों द्वारा झाझी 'लड़की' और टेसू 'लड़का' बनाया जाता है। फिर झांझी और टेसू को मटकी पर रंग लेते हैं। झाझी को सलोनी सी लड़की के रूप में और टेसू को मछधारी युवक के रूप में रंगा जाता है। दशहरे की शाम से ही सब बच्चे झाझी और टेसू वाली मटकी के अंदर अनाज रख, दीपक जलाकर घर-घर जाते हैं, जहां अनाज और धन दिया जाता है। गांव वालों में कुछ लोग कन्या पक्ष के हो जाते हैं, कुछ वर पक्ष के, फिर दोनों पक्षों में विवाह की तैयारी का ये कार्यक्रम दशहरे के पश्चात चौदस तक चलता है। रात में बाकायदा सब स्त्रियां एकत्रित होकर नाच-गाना करती हैं। शरद पूनों के दिन तक जो अनाज इकट्ठा होता है, उसे बेचकर एकत्रित धन से पूनों की रात्रि में झांझी-टेसू का ब्याह किया जाता है। वर पक्ष वाले कन्यापक्ष के प्रमुख व्यक्ति के यहां बारात लेकर जाते हैं, वहां विवाह का स्वांग रचाया जाता है। फिर खील, बताशे, रेवड़ी आदि बांटी जाती है। इसी मान्यता के चलते जनपद में बच्चों में अधिक उत्साह दिखता है। इन दिनों नगर के विभिन्न इलाकों में झांझी और टेसू के प्रतीकों की दुकानें सजी हुई हैं।

बच्चों ने उठाया मेले का लुत्फ
शहर के नदरई गेट स्थित प्रभु पार्क में दशहरा के अवसर पर परंपरात मेला लगा। बच्चों ने धनुष वाण, टेसू, झांझी, गदा, खेल खिलौने खरीदे। लगी चांट पकौड़ी की दुकनों पर महिलाओं की भीड़ देखी गई। 

सुरक्षा के रहे कड़े इंतजाम 
दशहरा पर्व पर जिले भर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम रहे। शहर से लेकर कस्बों तक पुलिस के अधिकारी सुरक्षा पर कड़ी नजर बनाए रहे। सीओ सिटी आंचल चौहान शहर में भ्रमण करते रहे। पर्व पूरी तरह शांति पूर्ण ढंग से संपन्न हुआ।