हल्द्वानी: तनाव, चिंता और नींद की कमी है चिड़चिड़ेपन का कारण, मनोचिकित्सक की सलाह दे सकती है राहत

हल्द्वानी: तनाव, चिंता और नींद की कमी है चिड़चिड़ेपन का कारण, मनोचिकित्सक की सलाह दे सकती है राहत

हल्द्वानी, अमृत विचार। आज के समय में मानसिक स्वास्थ्य से हर कोई अवगत जरूर है परंतु सही मायने में इसकी अहमियत कम ही लोग समझ पाए है। शायद यही कारण है कि लोग आज भी शारीरिक स्वास्थ्य हेतु डाक्टर के पास जितनी आसानी से जा पाते हैं उतनी आसानी से किसी मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक के पास नहीं। तनाव, चिंता तथा नींद की कमी के परिणाम कितने घातक हो सकते हैं यह हम सभी ने हाल ही प्रचलित 26 वर्षीय आना सेबेस्टियन की मृत्यु से समझना चाहिए। इसी बात को विस्तार से बता रहीं हैं मनोवैज्ञानिक डॉ विनीता पंत...

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प्रतिवर्ष 10 अक्टूबर को मनाए जाने वाले विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रति जागरूकता बढ़ाना और सामाजिक संवेदनशीलता को जागृत करना ही रहा है। कई शोधों से यह स्पष्ट हुआ है कि मानसिक स्वास्थ्य केवल व्यक्तिगत कल्याण से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह समग्र सामाजिक और आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डब्ल्यूएचओ भी मानसिक स्वास्थ्य को समग्र स्वास्थ्य का अभिन्न अंग मानता है।

हालिया अध्ययन बताते हैं कि विश्व में लगभग 1 में से 5 लोग किसी न किसी प्रकार की मानसिक स्वास्थ्य समस्या का सामना कर रहे हैं। डब्ल्यू.एच.ओ की माने तो कार्यस्थल में सामान्य स्तर का कार्य मानसिक स्वास्थ्य को उन्नत बनाता है परंतु किसी प्रकार का वर्कलोड या कार्यभार मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट लाता है। 15 प्रतिशत कामकाजी वयस्क किसी न किसी प्रकार के मानसिक रोगों से ग्रसित है।

एक विशेष शोध में यह पाया गया कि कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने से उत्पादकता में 20% की वृद्धि हो सकती है। फोर्ब्स में प्रकाशित एक अध्ययन के परिणामों के अनुसार किसी कार्यस्थल में खुश कार्यकर्ताओं की कार्यक्षमता नाखुश कार्यकर्ताओं की अपेक्षा अधिक देखी जाती है। यही अध्ययन अमेरिकी कंपनियों का हवाला देते हुए बताता है कि लगभग 89 प्रतिशत कार्यकर्ता अपने कार्यभार से नाखुश पाए जाते हैं। यह दर्शाता है कि मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देकर न केवल व्यक्तियों की भलाई में सुधार किया जा सकता है, बल्कि यह संगठनों के लिए भी फायदेमंद हो सकता है।

अन्य अध्ययन में दर्शाया गया है कि युवा पीढ़ी में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं बढ़ रही हैं, जिसमें अवसाद और चिंता प्रमुख हैं।  तकनीकी विकार, जैसे सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग,बढ़ता स्क्रीन टाइम, वीडियो गेम, शारीरिक कार्यों में कमी आदि इन समस्याओं को और बढ़ा रहा है। 

एक ऐसे समय में जहां नौकरी और तनख्वाह की अहमियत बढ़ती जा रही है क्या इस तरह मानसिक स्वास्थ्य को नजरंदाज करना सही होगा? इस प्रश्न पर चिंतन करते हुए हमे सीखना होगा कि किस प्रकार इनमे सामंजस्य बनाया जा सकता है।

शोध बताते हैं कि नियमित व्यायाम करने वाले लोगों में अवसाद और चिंता के लक्षणों में कमी देखी गई है। यह दिखाता है कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। परंतु केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने से काम नही चलेगा। हमें अपनी दिनचर्या में स्वयं कुछ छोटे-छोटे सकारात्मक बदलावों को लाकर इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। 

मानसिक स्वास्थ्य दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हमें मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेना चाहिए। समाज में खुली बातचीत को प्रोत्साहित करना, जागरूकता फैलाना और समर्थन नेटवर्क तैयार करना आवश्यक है। इस मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर हम सभी मिलकर मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझे और दूसरों के लिए एक सकारात्मक माहौल बनाने का प्रयास करें। एक स्वस्थ मानसिकता न केवल व्यक्तिगत जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि यह पूरे समाज को भी सशक्त बनाने में मदद करती है।

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