Unnao में स्थापित निराली है इन तीन देवियों की महिमा...भक्तों की पूरी करतीं हर मनोकामना, यहां पढ़ें...तीनों देवियों के स्थापना से जुड़े रोचक तथ्य

Unnao में स्थापित निराली है इन तीन देवियों की महिमा...भक्तों की पूरी करतीं हर मनोकामना, यहां पढ़ें...तीनों देवियों के स्थापना से जुड़े रोचक तथ्य

विनीत सिंह, उन्नाव। नवरात्र में नवाबगंज क्षेत्र की तीन देवियां में मां दुर्गा, मां कुशहरी व मां जालिपा देवी के दर्शन की महिमा ही निराली है। हजारों भक्त नवरात्र में तीनों देवियों की पूजा व दर्शन कर आशीर्वाद लेते हैं। वहीं दर्शन कर भक्तों को मनवांछित फल मिलता है। सुबह से ही तीनों देवियों के दरबार में घंटे-घड़ियाल, शंख व मंजीरों की आवाज के साथ सारा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। अति प्राचीन व पौराणिक मंदिर होने के नाते यह त्रिकोणीय आकार में बनते दिखाई देते हैं। 

भगवान परशुराम ने की थी मां दुर्गा की स्थापना 

जानकार बताते हैं कि मां दुर्गा की स्थापना भगवान परशुराम ने की थी। जिसकी शुरुआत कस्बे से चार किमी की दूर स्थित भितरेपार गांव के पास बनी एक झील के उस पार हुई थी। जहां पर एक ऊंचे टीले पर जमदग्नि ऋषि का आश्रम है। जानकार बताते हैं कि यहीं पर परशुराम का जन्म हुआ था। 

वह बचपन से ही बड़े क्रोधी व तेजस्वी थे। इस झील के पास एक ऊंचे टीले पर बैठकर वहां की सुन्दरता का अहसास आज भी किया जा सकता है। एक बार ऋषि जमदग्नि अपनी कुटिया में पूजापाठ कर रहे थे। ऋषिवर के पास कामधेनु नाम की गाय थी। जिसकी दूर-दूर तक चर्चा थी। एक बार राजा सहस्रबाहु वहां से जा रहे थे। रास्ते में ऋषि जमदग्नि की कुटिया पड़ी। जहां राजा ने अपनी सेना के साथ रुककर ऋषिवर से आशीर्वाद लिया। जिस पर ऋषिवर ने उन्हें जलपान आदि के लिए आग्रह किया। 

ऋषिवर ने अपनी कामधेनु गाय के अमृत समान दूध से ही सारी सेना का पेट भर दिया। इसे देख राजा सहस्रबाहु आश्चर्य चकित हो गये। उन्होंने मन ही मन उस गाय को अपने साथ ले जाने का मन बना लिया। राजा ने ऋषि से गाय ले जाने की बात कही। जिस पर ऋषि ने गाय देने से मना कर दिया। जिससे राजा काफी आहत हुए और वहां से चले गये। इसी बीच परशुराम तपस्या के लिये निकल पड़े। 

कुटिया पर ऋषिवर अकेले रहते थे। तभी राजा सहस्रबाहु कुटिया पर आये और ऋषिवर से कामधेनु गाय मांगी। बदले में एक लाख गाय स्वर्ण जड़ित देने की बात कही। लेकिन ऋषिवर तैयार नहीं हुए। जिस पर उन्होंने बलपूर्वक गाय को कब्जे में ले लिया और जमदग्नि ऋषि का वध कर दिया। उधर परशुराम जब तपस्या कर कुटिया वापस आये तो उन्हें अपने पिता की मृत्यु का समाचार मिला। 

जिससे उनके क्रोध की सीमा नहीं रही। उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध व गाय वापस लाने की ठान ली। वह कुटिया से वापस आकर नगर में मां दुर्गा की स्थापना कर पूजापाठ किया। माता ने प्रसन्न होकर विजय का आशीर्वाद दिया। जिसके बाद उन्होंने राजा सहस्रबाहु का वध कर और माता रूपी गाय अपने साथ कुटिया ले आये। तभी से अष्ट भुजाओं वाली विजयदात्री माता दुर्गा को विजय की देवी कहा जाने लगा। आज भी जब लोग किसी नए कार्य की शुरुआत करते हैं। तो माता के दर्शन जरूर करते हैं।

कुश ने की थी मां कुशहरी की स्थापना  

नगर से तीन किलोमीटर दूर कुशम्भी गांव स्थित मां कुशहरी देवी का मंदिर है। इस मंदिर के स्थापना को लेकर पौराणिक मान्यता है कि सीता माता को लाने के लिए जब लव-कुश परियर जा रहे थे तो यहीं विश्राम के लिए रुके थे। जहां पास में एक कुआं था। जब उनके सैनिक कुऐं से पानी निकालने लगे तो एक दिव्य शक्ति ने आभास कराया कि कुएं में कुछ है। 

जिस पर जब भगवान राम के पुत्र कुश ने कुए में देखा तो उन्हें वहां माता की मूर्ति मिली। जिसे भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने उसे वहीं एक टीले पर स्थापित कर पूजा की और अपने कुछ सैनिकों को वहीं एक गांव बसाने का आदेश दिया। ताकि माता की पूजा अनवरत होती रहे। पूरे देश में यही एक कुशहरी देवी का मंदिर है। जिसमें आज भी मंदिर के पीछे कसौटी के पत्थर पर एक छत्रधारी घोड़े पर सवार लव-कुश की मूर्ति बनी है। 

ऐसा पुरातत्व वेदता यहां आकर सिद्ध भी कर चुके हैं। माता कुशहरी के मंदिर के ठीक सामने एक विशाल सरोवर है। मंदिर के बाहर आम, नीम, कंदब, इमली, पीपल के वृक्ष बड़ी संख्या में हैं। जिससे मंदिर प्रागण व आसपास का स्थल बड़ा ही मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करता है। मान्यता है कि एक नर्तकी भुल्लन के शरीर को लकवा मार गया था। उसने कुशेहरी माता मंदिर में माता में ठीक करने की मन्नत मांगी थी। माता ने उसकी यह मुराद पूरी की। जिसके बाद उसने माता के मंदिर का जीर्णोद्वार कराया था। 

निराली है माता जालिपा देवी की महिमा 

जालिपा माता की महिमा भी निराली है। त्रिकोण में बसी मां जालिपा देवी की भी पूजन प्रथा एक जैसी है। वहां भी नवरात्र में कन्याभोज व भंडारे का आयोजन भक्तों द्वारा किया जाता है। इन तीनों मंदिरों की पौराणिक मान्यता होने की वजह से यहां दोनों नवरात्र में भक्तों की अपार भीड़ होती है। 

मंदिरों में आकर लोग मुंडन व उपनयन संस्कार भी कराते है। माता कुशहरी देवी को कुछ भक्त अपनी कुल देवी के रूप में भी मान्यता देते हैं। भक्तों में आस्था है कि माता कुशहरी देवी भक्तों में उनके रोगो का समूल नाश करती हैं वहीं नवाबगंज के मां दुर्गा मंदिर के बारे में भक्तों का कहना है कि यहां मांगी गयी हर मन्नत मां पूरी करती हैं।

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