इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : परिवार न्यायालय सीपीसी के प्रावधानों के तहत कार्यवाही करने में सक्षम
प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले पर विचार करते हुए कहा कि परिवार न्यायालय के समक्ष सिविल प्रक्रिया संहिता के प्रावधान लागू होते हैं। सिविल प्रक्रिया संहिता में निहित प्रावधान प्राकृतिक न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांत पर आधारित हैं, इसलिए सीपीसी के सभी प्रावधान परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 10 के संदर्भ में पारिवारिक न्यायालय के समक्ष कार्यवाही पर लागू होते हैं।
ऐसी स्थिति में निषेधाज्ञा की मांग करने वाली याचिका पर हाईकोर्ट विचार नहीं कर सकता है। निषेधाज्ञा केवल तभी जारी की जा सकती है, जब निचली अदालत या न्यायाधिकरण ने अपने अधिकार क्षेत्र से अधिक बढ़कर अधिकारों का प्रयोग किया हो। न्यायालय या न्यायाधिकरण की गलती होने पर उसे केवल अपील, पुनरीक्षण या अनुच्छेद 227 के तहत कार्यवाही द्वारा सुधारने का प्रावधान है। ऐसी स्थिति में निषेधाज्ञा द्वारा कार्यवाही उचित नहीं है। परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 10 के अंतर्गत सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 9 के तहत कार्यवाही के अलावा अन्य प्रयोजनों के लिए परिवार न्यायालय को एक सिविल न्यायालय माना जाता है।
उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की एकलपीठ ने नागेंद्र शर्मा की याचिका को खारिज करते हुए की। मामले के अनुसार मतभेदों के कारण एक विवाहित जोड़े ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक के लिए आवेदन किया, जिसे 16 जनवरी 2019 और 28 जनवरी 2019 को निर्णय और डिक्री द्वारा अनुमति दी गई। इसके खिलाफ विपक्षी/ पत्नी ने सीपीसी की धारा 151 के साथ सीपीसी के आदेश 9, नियम 13 और सीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत उपरोक्त निर्णय और डिक्री के खिलाफ स्थगन आवेदन दाखिल किया।
गोंडा के प्रधान न्यायाधीश ने आवेदन को स्वीकार करते हुए याची को नोटिस जारी किया, जिससे व्यथित होकर याची ने वर्तमान निषेधाज्ञा अपील दाखिल की और तर्क दिया कि परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19 और 20 के तहत प्रधान न्यायाधीश के पास सीपीसी की धारा 151 के साथ नियम 13 के तहत याचिका पर विचार करने का अधिकार नहीं था। अंत में कोर्ट ने मामले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन ना देखते हुए अपील खारिज कर दी।
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