मुरादाबाद : इब्न बतूता के अमरोहा यात्रा का भी है गजेटियर में जिक्र

पहले अमरोहा का नाम अमरोहू था जो बाद में अमरोहा हो गया, मुरादाबाद मंडल के गजेटियर के दूसरे खंड के पेज 80 पर अमरोहा के इतिहास का है वर्णन

मुरादाबाद : इब्न बतूता के अमरोहा यात्रा का भी है गजेटियर में जिक्र

मुरादाबाद, अमृत विचार। कहा जाता है कि अमरोहा को अपना नाम आम और रोहू मछली से मिला। किंवदंती के अनुसार जब शर्फउद्दीन अमरोहा आए तो उनको स्थानीय निवासियों ने आम और रोहू मछली पेश की। इससे अभिभूत होकर उन्होंने इस स्थान को अमरोहू नाम दिया जो बाद में अमरोहा हो गया।

मुरादाबाद मंडल के गजेटियर के दूसरे खंड सांस्कृतिक विरासत का संकलन के पेज नंबर 80 पर वर्णित है कि अमरोहा में प्राचीन निर्माण व अवशेष मौजूद हैं। शहर के उत्तर पूर्व में बाह का कुंआ स्थित है। मुरादाबाद गजेटियर 1911 के अनुसार यह विशाल आकार का और काले कांकड़ से निर्मित है। सीढ़ियां नीचे पानी की ओर ले जाती हैं। किनारों पर गुम्बदाकार कक्षों की दो कतारें हैं। ये सभी भूतल से नीचे हैं। 1904 में कुंए की मरम्मत का कार्य कराया गया था। कुएं के निर्माण का श्रेय सूरजध्वज वंश के राजा किरपानाथ को दिया जाता है।

गजेटियर में जिक्र है कि 14वीं शताब्दी में मोरक्को के यात्री इब्न बतूता ने भारत यात्रा की। सुल्तान बिन तुगलक ने उन्हें दिल्ली का काजी नियुक्त किया। इस क्रम में इब्न बतूता ने अमरोहा की भी यात्रा की थी। एचएआर गिब द्वारा संपादित इब्न बतूता के यात्रा विवरण का जिक्र भी गजेटियर में है। इसमें पेज 82 पर दिए गए विवरण के अनुसार इब्न बतूता बताते हैं कि मेरे लिए आदेशित 10,000 मॉन्ड (मन) अनाज वजीर ने प्रदान कर दिए थे। शेष के लिए मुझे अमरूहा (अमरोहा) प्रदान किया गया। यहां राजस्व का नियंत्रण अजीज-अल-खम्मार के हाथों में था। सेनानायक बदख्शां के शम्स-अल-दीन थे। दिल्ली से यहां तक की यात्रा तीन दिनों की है। यात्रा बरसात के समय में की गई। मेरे साथ अन्य साथियों के साथ दो गायक भाई भी थे। जब हम बिजनौर पहुंचे तो वहां मुझे तीन और भाई मिले वे भी गायक थे। मैंने उन्हें भी अपने साथ ले लिया।

गजेटियर के दूसरे खंड के पेज 83 पर दिए विवरण के अनुसार अमरोहा में रहने के दौरान इब्न बतूता ने शम्स अल दीन एवं अजीज-अल खम्मार के मध्य विवाद होने पर परिस्थिति नियंत्रण में सहयोग दिया। इब्न बतूता ने अमरोहा में लगभग दो माह बिताए। गजेटियर के दूसरे खंड में दिए तथ्यों का संदर्भ मुरादाबाद गजेटियर 1911, 1968 व पुस्तक द ट्रेवल आफ इब्न बतूता एडी 1325-1354 से लिया गया है।

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