Hindi Diwas 2024: स्टेटस सिंबल पर फिट नहीं पुरानी हिन्दी, अब हिन्दुस्तानी भाषा का है चलन

जाने कौन से शब्द हुए लुप्त

Hindi Diwas 2024: स्टेटस सिंबल पर फिट नहीं पुरानी हिन्दी, अब हिन्दुस्तानी भाषा का है चलन

लखनऊ, अमृत विचारः समय के साथ हिन्दी ने भी अपना स्वरूप बदल लिया है। आज का समय नई हिन्दी का है। यह सिर्फ हिन्दी नहीं बल्की हिन्दुस्तानी भाषा हो गई है। इसमें तरह-तरह की बोलियों का मिश्रण है। स्कूलों से लेकर रिसर्च तक, कवियों से लेकर लेखकों तक हर कोई इस नई हिन्दी को अपना रहा है और एक जुट हो गया है। इस नई वाली हिन्दी में कुछ तो बात है, जो लोगों को तुरंत एक दूसरे से कनेक्ट कर देता है। भारत की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में, हिंदी दक्षिण एशिया में एक प्रमुख स्थान रखती है। इसकी देवनागरी लिपि और विविध बोलियां भारतीय उपमहाद्वीप की भाषाई समृद्धि में योगदान करती हैं। हिंदी का सांस्कृतिक महत्व बॉलीवुड फिल्मों और शास्त्रीय साहित्य में स्पष्ट है।

नई हिन्दी अभी सभी जगह छाई हुई है। हाल में हुई एक रिसर्च में यह साबित हुआ है कि पूरे विश्व में बोले जाने वाली भाषा में से तीसरे नंबर पर बोले जाने वाली हिन्दी ही है। 608.8 मिलियन लोगों की यह नेटिव लैंग्वेज है। हर साल हिन्दी के प्रचलन को लोगों के बीच में बढ़ाने के लिए 14 सितंबर को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है, लेकिन इसके बावजुद भी भारत में अगर बात करें को हिन्दी का प्रयोग आज के समय में सीमित होता चला जा रहा है। इसके पीछे की एक वजह आधुनिकरण भी हो सकता है। लोगों का मानना है कि इंग्लिश मीडियम स्कूलों में इंग्लिश का बढ़ता प्रभाव हिन्दी से दूरी का बड़ा कारण है। हिन्दी तत्सम, तद्भव और देशज तीन शब्दों का रूपों स्वरूप है। 
तत्सम- शुद्ध संस्कृत निष्ठ भाषा
तद्भव- शब्द को तोड़ कर बोलना
देशज- जिसकी उत्पत्ती की पता न हो

मातृ भाषा का दर्जा मिलना जरूरी
हिन्दी को मातृ भाषा का दर्जा मिलना जरूरी है। ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के हिन्दी डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आराधना अस्थाना ने बताया कि पहले जहां '14 बोली' बोली जाती थी। वहीं धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़कर 22 हो गया। अब भाषा के विविध रूप में बट गई है। न ही अब हिन्दी का वह शुद्ध रूप रह गया है, जिसका इस्तमाल पहले किया जाता था। अब हम हिंग्लिश की दुनिया में रह रहे हैं, जिसे महात्मा गंधी ने हिन्दुस्तानी भाषा का दर्जा दिया था।

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कुछ शब्द जो हुए लुप्त
अक्षि- आंख
वारि- जल
मेघ- बादल
स्वेत- सफेद 
बालक- लड़के
आचार्य- टीचर
बालिका- लड़की

स्टेसस पर फिट नहीं बैठती हिन्दी
हिन्दी भाषा के बदलते स्वरूप के बारे में जब लोगों से बात की गई तो लोगों का कहना है कि सोशल मीडिया के जमाने में हिन्दी स्टेटस सिंबल में फिट नहीं बैठता है। अब या तो इंग्लिश का उयोग किया जाता है फिर हिंग्लिश का। इंग्लिश बोलने पर लोग बड़े ही गर्व के साथ देखते हैं। हायर एजुकेशन और काप्टीशन की बात की जाए तो स्टूडेंट्स का कहना है कि वहां भी कई जगाहों पर हिन्दी को एक वैकल्पिक सब्जेट बना दिया गया है। आशीष का कहना है कि कई बार इंग्लिश न आने पर बहुत छोटा लगता हैं। अगर कही इंग्लिश मीडियम के बच्चा बैठा और हिन्दी मीडियम का तो इंग्लिश वालों को ज्यादा प्रिफरेंस दिया जाता है। सरकारी और नीजि संस्थानों को हिन्दी को महत्वता देने की जरूरत है। 

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