सरकार की प्रतिबद्धता

Amrit Vichar Network
Published By Vishal Singh
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केंद्र सरकार ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी)  के लेटरल एंट्री भर्ती के विज्ञापन पर रोक लगा दी है। केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी से विज्ञापन रद करने को कहा ताकि कमजोर वर्गों को सरकारी सेवाओं में उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।

कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दलों ने मंगलवार को दावा किया कि विपक्ष के विरोध के कारण सरकार ‘लेटरल एंट्री’ के मामले पर पीछे हटी है। कहा जा सकता है कि लेटरल एंट्री भर्ती को लेकर लगातार सवाल उठ रहे थे। विपक्ष के अलावा एनडीए सरकार में शामिल चिराग पासवान ने भी इसका विरोध किया था।

लेटरल एंट्री के निर्णय की इस आधार पर आलोचना की गई कि इसके जरिये होने वाली भर्तियों में एस, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। फैसला वापस लेने का कारण चाहे विपक्ष का विरोध हो या एनडीए में बिखराव की आशंका, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि लेटरल एंट्री के फैसले से विपक्ष को आरक्षण का मुद्दा मिल गया,  जिसका इस्तेमाल वह हाल ही में होने वाले उपचुनावों और राज्यों के विधानसभा चुनावों में करता। 

हालांकि प्रत्येक लेटरल एंट्री की स्थिति को ‘एकल पद’ माना जाता है, इसलिए इसमें आरक्षण प्रणाली लागू नहीं होती है, जिससे आरक्षण के दिशा निर्देशों का पालन किए बिना ये नियुक्तियां की जा सकती हैं। यानि चूंकि ये पद विशेष हैं, ऐसे में इन पदों पर नियुक्तियों को लेकर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है।

ऐसी नौकरियां 1968 से दी जा रही हैं तो क्या अब आरक्षण पर अतार्किक कहानियां गढ़ी जा रही हैं। फिर भी किसी भी क्षेत्र में प्रतियोगिता की तरह लेटरल एंट्री का निर्णय भी लाभकारी है, लेकिन इसके लिए प्रवेश मानदंड, नौकरी की भूमिका,  कर्मियों की संख्या और प्रशिक्षण पर सावधानी पूर्वक विचार करने की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह सकारात्मक बदलाव लाए।

यूपीएससी को लिखे पत्र के मुताबिक सरकार ने यह फैसला लेटरल एंट्री के व्यापक पुनर्मूल्यांकन के तहत लिया है। विशेष रूप से प्रधानमंत्री का भी विश्वास है कि लेटरल एंट्री हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के समान होनी चाहिए। लेटरल एंट्री वाले पदों की समीक्षा किए जाने की जरूरत है। यह करना सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण की दृष्टि से बेहतर होगा। सरकार ने लेटरल एंट्री के फैसले को फिलहाल वापस लेकर सार्वजनिक नौकरियों में सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को उजागर किया है।