हल्द्वानी: सोचा नहीं था कि मुझे मरने के बाद भी गौला नदी ट्राली से ही पार करनी पड़ेगी - एक आत्मा

हल्द्वानी: सोचा नहीं था कि मुझे मरने के बाद भी गौला नदी ट्राली से ही पार करनी पड़ेगी - एक आत्मा

भूपेश कन्नौजिया, हल्द्वानी, अमृत विचार। उनके प्राण चले गए, अंतिम संस्कार भी हो गया पर आत्मा तो आपको पता ही है अजर और अमर होती है...ऐसे ही हमारे पास चित्रशिला घाट से एक पवित्र आत्मा भरी बरसात के बीच कार्यालय पहुंची ...वो आत्मा बेहद खिन्न थी, नाराज थी, शासन-प्रशासन के रवैये को लेकर खासा रुष्ट थी...उस आत्मा ने कहा मेरे पास अभी वक्त कम है बहुत लंबी यात्रा करनी है जल्दी से मेरी बात सुन लो...

खैर हमने उन्हें कुर्सी पर बिठाया और उनसे पूछा कि इस मौसम में आप यहां और बेहद नाराज दिख रहे हैं..क्या बात है..? उन्होंने तपाक से कहा इतने साल देश की सेवा की, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मनों से लोहा लिया और क्या मिला मेरे गांव को...! मुझसे पहले कई चले गए दुनिया छोड़कर और आज मैंने भी इस दुनिया से विदा ले ली पर मेरे दिल में एक टीस है क्या आप दो-चार लाइनें अपने अखबार में छाप देंगे? 

हम कुछ पूछते  इससे पहले वे बोल गए कि आप कुछ मत पूछो मैं बताता हूं...वे थोड़ा शांत हुए और बोले मैंने सोचा था जीते जी गांव में पुल पहुंच जाएगा बहुत कोशिशें की हम गांव वालों ने कई बार अधिकारियों और नेताओं से कहा लेकिन सब के सब...छोड़ो क्या कहूं अब...गाली देने का मन करता है पर अब क्या फायदा जिंदगी भर हम गाली ही देते रहे अधिकारियों और नेताओं को...क्या मिला बस आश्चासन...आज मैं मर गया, मेरे बच्चे, परिजन, नाते-रिश्तेदार सब रो रहे हैं और मैं अभी भी परलोक जाने की बजाए आपके कार्यालय पहुंचा कि जाते-जाते एक अंतिम कोशिश और कर जाऊं शायद मेरे जाने के बाद जिस ट्राली से मैंने अपनी अंतिम यात्रा पूरी की और मृत्यु के बाद भी मेरा शरीर हिचकोले खाते हुए आखिरी गंत्वय तक पहुंचा अब किसी और को ये दिन न देखना पड़े!

खैर मैंने उनसे उनका नाम पूछा तो एक सांस में बोले मेरा नाम गोपाल जंग बस्नेत है... रानीबाग के दानीजाला गांव का निवासी था अब स्वर्ग का वासी हो गया हूं..इतना कहकर वो पवित्र आत्मा कुर्सी से उठकर जाने लगी और बोले अखबार में बहुत ताकत होती थी हमारे जमाने में अब तो....मैंने उन्हें बीच में रोका और पानी पीने को दिया..बोले बहुत पानी पी लिया है अब मुझे निकलना चाहिए..पर सुनो बेटा सरकार अगर झूला पुल ही बना देती तो आज भारी बरसात में उन लोगों को तकलीफ न होती जो मेरे मृत शरीर को सकुशल नदी पार कराने के लिए जद्दोजहद कर रहे थे...अंतिम वक्त में भी मेरे बूढ़े शरीर ने बहुत दर्द महसूस किया है...काश कोई भला नेता-अधिकारी मेरे गांव की सुध ले ले...

अभी उन्होंने इतना ही कहा था कि वे धुंए के गुबार के बीच ओझल हो गए...और तभी मोबाइल पर एक अज्ञात नंबर से वीडियो आया जो आपसे साझा कर रहा हूं...

नोट - दानीजाला गांव के लोग एक अरसे से झूला पुल की मांग कर रहे हैं पर आश्चर्य है कि आज तक शासन-प्रशासन इन लोगों की एक अदद मांग पूरी नहीं कर पाया आपको बता दें कि हल्द्वानी से लगभग 8 किमी. की दूरी पर स्थित दानीजाला गांव में स्कूली बच्चों के साथ-साथ बुजुर्ग अपनी जान जोखिम में डालकर रस्सी के सहारे उफनती गौला नदी को पार करते हैं। परिजन अपने बच्चों को स्कूल लाने ले जाने के लिए ट्रॉली तक 1 घंटा पहले छोड़ने आते हैं। इतना ही नहीं जब तक बच्चा ट्रॉली से आर पार नहीं हो जाता, वह घर नहीं लौटते हर वक्त सांसे अटकी रहती हैं।