Allahabad High Court: पति के बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल न करना क्रूरता नहीं

Allahabad High Court: पति के बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल न करना क्रूरता नहीं

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक के मामले में तलाक की स्थितियों को स्पष्ट करते हुए कहा कि पति के वृद्ध माता-पिता की देखभाल करने में विफलता मात्र क्रूरता नहीं कहीं जा सकती है, क्योंकि ऐसे आरोप व्यक्तिपरक प्रकृति के होते हैं। पति ने कभी भी अमानवीय या क्रूर व्यवहार का दावा नहीं किया है। 

कोर्ट ने आगे कहा कि प्रत्येक घर में क्या सटीक स्थिति हो सकती है, इसकी विस्तार से जांच करना या उस संबंध में कोई कानून या सिद्धांत निर्धारित करना कोर्ट का कार्य नहीं है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि क्रूरता हालांकि विवाह विच्छेद के आधार के रूप में उपलब्ध है, लेकिन इसे स्थापित करने के लिए कोई सीधा फार्मूला नहीं है। 

उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने पति द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 28 के तहत प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, मुरादाबाद द्वारा पारित आदेश दिनांक 25 सितंबर 2008 से व्यथित होकर दाखिल की गई याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। 

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अभिव्यक्ति 'क्रूरता' का मानव आचरण या मानव व्यवहार के साथ एक अविभाज्य संबंध है। यह हमेशा पक्षकारों के सामाजिक स्तर या परिवेश, उनके जीवन के तरीके, रिश्ते, स्वभाव और भावनाओं पर निर्भर करता है, जो उनकी सामाजिक स्थिति से निर्धारित होते हैं।

एक अन्य मामले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि एक अच्छे विवाह की नींव सहिष्णुता, समायोजन और एक दूसरे का सम्मान करना है। प्रत्येक मामले में क्रूरता को निर्धारित करते समय सभी झगड़ों को निष्पक्ष दृष्टिकोण से तौला जाना चाहिए। 

इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि विवाह संस्था के लिए अत्यधिक तकनीकी और अति संवेदनशील दृष्टिकोण प्रतिकूल होगा। अंत में कोर्ट ने पाया की अपीलकर्ता अपनी नौकरी के कारण वैवाहिक घर से दूर रह रहा था और वह अपनी पत्नी से अपने माता-पिता के साथ रहने की अपेक्षा कर रहा था। अतः कोर्ट ने प्रथम अपील को आधारहीन मानते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं पाया।

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