प्रयागराज: वयस्क पुत्री विवाह होने तक भरण-पोषण पाने की हकदार

प्रयागराज: वयस्क पुत्री विवाह होने तक भरण-पोषण पाने की हकदार

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अविवाहित पुत्री को भरण-पोषण देने के मामले में अपने आदेश में कहा कि हिंदू दत्तक तथा भरण- पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 (3) के तहत बच्चों और वृद्ध माता-पिता के भरण- पोषण के संबंध में प्रावधान बताए गए हैं। उक्त धारा में एक हिंदू का अपनी उस अविवाहित बेटी के भरण-पोषण का दायित्व बताया गया है जो अपनी कमाई या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है।

उक्त आदेश न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की एकलपीठ ने अवधेश सिंह द्वारा दाखिल याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। याचिका में प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, हाथरस के सितंबर 2023 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें प्रधान न्यायाधीश ने याची को पत्नी (उर्मिला) को 25 हजार रुपए प्रतिमाह और बेटी कुमारी गौरी नंदिनी को 20 हजार प्रतिमाह भरण-पोषण प्रदान करने का निर्देश दिया था। याची का यह तर्क था कि उसकी बेटी का जन्म 25 जून 2005 को हुआ था और आक्षेपित आदेश से पूर्व 25 जून 2023 को वह वयस्क हो गई।

अतः परिवार न्यायालय ने वयस्क बेटी को भरण-पोषण देने के संबंध में आदेश पारित कर कानूनी त्रुटि की है। याची ने सुप्रीम कोर्ट के एक मामले का हवाला देते हुए कहा कि अविवाहित बेटी, जो किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता से ग्रस्त नहीं है, वह सीआरपीसी की धारा 125 के प्रावधानों के तहत भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। कोर्ट ने याची के इस तर्क को खारिज कर दिया कि बेटी केवल वयस्क होने तक ही भरण-पोषण की हकदार है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि नाबालिग लड़की के वयस्क होने के बाद उसके विवाह तक उसके माता-पिता से भरण-पोषण पाने के अधिकार को उपरोक्त अधिनियम की धारा 20(3) समर्थन करती है, इसलिए परिवार न्यायालय द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं दिखता है।

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