उत्तर प्रदेश : विपक्ष के विरोध के बीच ‘नजूल सम्पत्ति’ विधेयक पारित 

उत्तर प्रदेश : विपक्ष के विरोध के बीच ‘नजूल सम्पत्ति’ विधेयक पारित 

लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के विरोध के बीच ‘उत्तर प्रदेश नजूल सम्पत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंध और उपयोग) विधेयक’ 2024 ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। विपक्ष ने इस विधेयक को जनहित के खिलाफ करार देते हुए इसे प्रवर समिति के पास भेजने का आग्रह किया। वहीं सत्ता पक्ष के भी कुछ विधायकों ने विधेयक में सुधार की जरूरत बतायी। संसदीय कार्य मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने विधेयक को सदन में पेश किया। 

उन्होंने कहा कि जनहित में इस विधेयक को लाने की जरूरत इसीलिए पड़ी क्योंकि समय-समय पर सरकार को जब विकास कार्यों के लिये जमीन की जरूरत हो तो नजूल की जमीन को इस्तेमाल किया जा सके। इस विधेयक का उद्देश्य निजी व्यक्ति या इकाई के पक्ष में पूर्ण स्वामित्व को रोकना है। उन्होंने कहा कि राजस्व परिषद, वन विभाग और सिंचाई विभाग की जमीन इस विधेयक के दायरे में नहीं आयेगी। इसके अलावा केंद्र सरकार की जमीन भी इसके दायरे में नहीं है। 

विधेयक में संशोधन के प्रस्ताव पर समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता आरके वर्मा ने कहा कि विधेयक को सदन की प्रवर समिति के सुपुर्द कर दिया जाए, जो अपना प्रतिवेदन एक माह के अंदर सदन में प्रस्तुत करे। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के आने से बहुत सारी विसंगतियां पैदा होंगी। वर्मा ने कहा कि आजादी के बाद मुल्क में बड़े पैमाने पर राजा महाराजा और जमीदारों की जमीनें थीं, जिन पर उन्होंने अपने सिपहसालार और श्रमिकों को बसाया था। 

उन्होंने कहा कि जब चकबंदी प्रक्रिया लागू हुई तो उनकी जमीन की गाटाबंदी नहीं की गई और उसे सरकारी जमीन मान लिया गया। यह विधेयक कानून बनने के बाद उनको कभी भी वहां से निकाला जा सकता है। सपा सदस्य संदीप पटेल ने कहा कि यह विधेयक संविधान की प्रस्तावना के ही खिलाफ है। साथ ही यह संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 141 और 300 का भी उल्लंघन है। यह पूंजी पतियों को लाभ पहुंचाने वाला विधेयक है। 

भाजपा सदस्य हर्षवर्धन बाजपेई ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा, “वही समाज और देश तरक्की करता है जहां जीवन स्वतंत्रता और संपत्ति की गारंटी होती है। प्रयागराज में नजूल की जमीनों पर ऐसे लोग बसे हैं जो एक कमरे, दो कमरे या तीन कमरे के स्लम (झुग्गी) में रहते हैं। यह लोग अंग्रेजों के जमाने से वहां रह रहे हैं।” 

उन्होंने कहा, “एक तरफ तो हम प्रधानमंत्री आवास योजना में लोगों को घर दे रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हजारों की तादाद में परिवारों से कह रहे हैं कि आप यहां से निकल जाइए यह जमीन हमारी है। यह कहीं से न्याय संगत नहीं है। अगर हम इतनी पुरानी आबादियों से उनकी संपत्ति का अधिकार छीन लेंगे तो यह मेरे हिसाब से सही नहीं है।” 

संसदीय कार्य मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने उन्हें टोकते हुए कहा कि आप विधेयक का मसौदा पढ़ें। उसमें संपत्ति का अधिकार किसी से नहीं छीना जा रहा है। जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के सदस्य रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने विधेयक पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि यह विधेयक छोटा हो सकता है लेकिन इसके दुष्परिणाम बहुत गंभीर होंगे। 

उन्होंने कहा, ''मैं सिद्धार्थ नाथ जी और हर्ष जी को धन्यवाद देता हूं। इन्होंने सही तस्वीर सामने रखी है। यह अपनी पार्टी के हित के विषय में सोच रहे हैं।'' सिंह ने कहा, “हमारी जानकारी तो यह भी है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय भी नजूल की जमीन पर बना है तो क्या उसको भी खाली कर दिया जाएगा? इस विधेयक से कौन सा विकास किया जाएगा। लाखों लोग बेघर हो जाएंगे। मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि किस मजबूरी में और किसके कहने पर, किन अधिकारियों की फीडिंग पर यह विधेयक लाया गया है। यह कहीं से भी ना जनहित में है। ना विपक्ष के हित में है और ना सत्ता पक्ष के हित में है।” 

भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के सदस्य अनिल कुमार त्रिपाठी ने भी विधेयक के प्रावधानों में संशोधन की जरूरत पर जोर दिया। विधेयक को प्रवर समिति के सुपुर्द करने के प्रस्ताव को ध्वनि मत से अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद विपक्षी सदस्य सदन में नारेबाजी करने लगे। इसी बीच, उत्तर प्रदेश नजूल सम्पत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंध और उपयोग) विधेयक 2024 को पारित करने का प्रस्ताव पेश किया गया। उसे भी ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। 

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