मुहर्रम : इस्लाम जिंदा करने वाले कर्बला के शहीदों की याद में गूंज रहीं मातमी सदाएं

मुहर्रम : इस्लाम जिंदा करने वाले कर्बला के शहीदों की याद में गूंज रहीं मातमी सदाएं

लखनऊ, अमृत विचार। कर्बला की वो जंग, जिसने इस्लाम ज़िंदा कर दिया। इंसानियत और क्रूरता के ख़िलाफ इस जंग में पैगबर-ए-इस्लाम के नवासे हजरत इमाम हुसैन (Imam Hussain) अपने 72 जानशीन साथियों के साथ कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे। इस्लामिक कैलेंडर के मुहर्रम (Muharram) महीने की वो दस तारीख आज है, जिसे आशूर के तौर पर जाना जाता है। 

इस्लाम की तारीख में ये ये सबसे महत्वपूर्ण दिन है। देश-दुनिया में यौमे आशूर बड़े ही अदब, अकीदत और एहतराम के साथ मनाया जा रहा है। शहीदाने कर्बला को खिराजे अकीदत पेश की जा रही है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मुहर्रम की पहली तारीख़ से ही तख़्त उठाए जा रहे हैं। इमामबाड़ों में शहीदाने कर्बला का ज़िक्र आम है।

नौवीं मुहर्रम की रात को लखनऊ की विक्टोरिया स्ट्रीट स्थित इमामबाड़ा नाज़िम साहब (Imambada Nazim Shahab) से जुलूस निकला। और आज बुधवार को पूरे शहर में मातमी सदाएं गूंज रही हैं। चप्पे-चप्पे पर पुलिस फोर्स का पहरा है। कर्बला का वो मंज़र याद करके, लोग अश्कजार हो रहे हैं। हर तरफ, बस एक ही सदा गूंज रही है...या हुसैन...या हुसैन...या हुसैन.।

मुहर्रम का जुलूस अपने पुराने रास्तों से होकर आगे बढ़ रहा है। शहीदाने कर्बला के गम में लोग नौहाख्वानी व सीनाजनी कर रहे हैं। तख़्त, ताजिए और अलम के बीच एक ही सदा गूंजायमान है....या हुसैन...या हुसैन...या हुसैन.।

मुहर्रम के दरम्यान इमामबाड़ों से पैग़ाम आम किया गया कि हजरत इमाम हुसैन और शहीदाने कर्बला ने इंसानियत की जो राह दिखाई है। वही हक़ और नेक़ राह है, हमारी नस्लों को उसी पर चलने की ज़रूरत है। उधर, मुहर्रम पर राज्य की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर कड़े प्रबंध किए गए हैं। लखनऊ से लेकर राज्य के हर हिस्से में मुहर्रम के जुलूस वाले मार्गों पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है। शासन से लेकर पुलिस-प्रशासन के आला अधिकारी पैनी नज़र बनाए हैं। सोशल मीडिया पर भी नज़र रखी जा रही है।

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