भूमि अधिग्रहण मामले में NHAI को यथाशीघ्र मुआवजा राशि जारी करने का हाईकोर्ट ने दिया निर्देश

भूमि अधिग्रहण मामले में NHAI को यथाशीघ्र मुआवजा राशि जारी करने का हाईकोर्ट ने दिया निर्देश

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 की धारा 3-डी(1) के तहत भूमि अधिग्रहण और उसके एवज में देय मुआवजे के नियमों को स्पष्ट करते हुए कहा कि उक्त धारा के तहत घोषणा हो जाने पर भूमि का स्वामित्व केंद्र सरकार में निहित हो जाता है। सरकार में भूमि के निहित हो जाने के परिणामस्वरूप वास्तविक स्वामी भूमि पर अपना अधिकार खो देता है। कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि उक्त अधिनियम की धारा 3-एच (1) में यह आवश्यक प्रावधान है कि राज्य सरकार कब्जा लेने से पहले मुआवजा राशि जमा करेगी, न कि मुआवजा का भुगतान तब किया जाएगा, जब कब्जा लिया जाएगा। 

उक्त प्रावधान उन काश्तकारों को लाभ देने के लिए है, जिनकी भूमि अधिनियम के प्रावधानों के तहत अधिग्रहित की जाती है। यह मुआवजा का भुगतान किए बिना भूमि पर कब्जा करने के विरुद्ध एक सुरक्षा है। उक्त प्रावधान सरकार को संबंधित व्यक्तियों को मुआवजा भुगतान में देरी करने की शक्ति प्रदान नहीं करता है। इसी पृष्ठभूमि पर कोर्ट ने वर्तमान मामले में एनएचएआई को आदेश दिया कि वह सक्षम प्राधिकारी को मुआवजा राशि उपलब्ध कराए, जिससे याची और अन्य प्रभावित व्यक्तियों को इस आदेश से 4 सप्ताह के अंदर मुआवजा भुगतान किया जा सके। 

उक्त आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की खंडपीठ ने बरेली निवासी मोहम्मद शाहिद और दो अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। मालूम हो कि उक्त अधिनियम के तहत याची की भूमि अधिग्रहित की गई। सक्षम प्राधिकारी ने मुआवजा राशि के भुगतान के लिए एनएचएआई को एक पत्र लिखा, लेकिन वित्तीय स्वीकृति न मिलने के कारण याचियों को अब तक मुआवजा राशि प्राप्त नहीं हो सकी है।

कोर्ट द्वारा पूछे जाने पर एनएचएआई के अधिकारियों ने तर्क दिया कि याची तभी मुआवजे का हकदार होगा, जब उससे अधिग्रहित भूमि का कब्जा ले लिया जाएगा। चूंकि एनएचएआई अभी कब्जा नहीं ले रहा है, इसलिए याचियों को मुआवजा राशि का भुगतान किए जाने का कोई प्रश्न नहीं उठता। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अधिनियम की धारा 3-डी के तहत अधिसूचना जारी कर दी गई थी, जिसके परिणामस्वरुप भूमि केंद्र सरकार में निहित हो गई। इस आधार पर मुआवजा देने से इनकार करना उचित नहीं है और कब्जा लिए जाने पर राशि का भुगतान करने का तर्क भी खारिज कर दिया।

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