कासगंज: सुबह से ही तेल रिफाइंड और देशी घी से महक उठते हैं शहर के चट्टी चौराहे 

कासगंज ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों की भी पसंद बनी हुई है यहां की कचौड़ियां

कासगंज: सुबह से ही तेल रिफाइंड और देशी घी से महक उठते हैं शहर के चट्टी चौराहे 
शहर के नदरई गेट बाजार में कचौड़ी विक्रेता की दुकान पर लगी भीड़ 

कासगंज, अमृत विचार। सूर्य जब उदय होता है तो लोग टहलने निकलते हैं। उन्हें घर पहुंच कर नाश्ते की जरूरत नहीं होती। उनके परिवार के लोगों को भी पता है कि वह लौटकर अपने पसंद की कचौड़ी, जलेबी खाकर ही वापस लौट रहे होंगे तो कोई मटर का स्वाद चखकर घर में घुसता है।

यह खासियत है कासगंज शहर की। जहां सिर्फ शहर के लोग ही नहीं बल्कि आसपास के गांव के अलावा पड़ोसी जिलों के लोग भी कचौड़ी खाने पहुंचते हैं। यहां के लोगों का कचौड़ी सबसे पसंदीदा नाश्ता है। सूर्योदय के साथ ही यहां कचौड़ी की दुकान, ढकेल और फड़ों पर लगने वाली भीड़ इसकी गवाही खुद देती है।  

यहां हर कुछ कदम पर कचौड़ी बिकती हैं, लेकिन सभी विक्रेताओं के यहां स्वाद अलग-अलग है। सब के ग्रहक भी निर्धारित हैं। पुरुषों की यह पसंद गृहणियों को चैन पहुंचाती है। उन्हें सुबह-सुबह नाश्ता तैयार करने की जरूरत नहीं पड़ी।

सुबह गर्मी की हो या बरसात की, या फिर सर्द कोहरे भरी, यहां के लोगों में कचौड़ी की चाहत बरकरार रखती है। मुख्य बाजार और मार्गों के साथ गली-गली में सुबह-सुबह कचौड़ी की ढकेल सजी नजर आती हैं। लोग कचौड़ी दुकान, ढकेल और फड़ों पर खड़े होकर कचौड़ी खाते तो हैं ही, साथ ही पैकिंग के आर्डर भी साथ ही साथ दे देते हैं। इस तरह घर-घर कचौड़ी पहुंचती हैं और गृहणियों को सुबह नाश्ता तैयार करने की कवायद नहीं करनी पड़ती।

सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां हर दुकान, ढकेल और फड़ पर कचौड़ी का स्वाद भी अलग-अलग है। कोई सिर्फ आटे की कचौड़ी बनाता है तो कोई मैदा की। कोई इसका मिश्रण करके तैयार करता है तो कोई आटे में बेसन मिलाता है। सब्जी सभी पर आलू की ही मिलेगी, इसे लेकर भी विक्रेताओं की अलग-अलग पहचान है। हर दुकनदार की सब्जी की अपनी अलग ख्याति है। किसी की सब्जी हींग को लेकर पहचान बनाए हुए है तो किसी की खड़े मसाले को लेकर। कोई सब्जी में दही लगाता है।

इसके अलावा कोई रिफाइंड में कचौड़ी तलता है तो कोई सरसों के तेल में। देसी घी की कचौड़ी भी यहां कुछ दुकानदारों की काफी लोकप्रिय हैं।इसीलिए स्वाद के हिसाब से सबके ग्राहक भी निर्धारित हैं। इसके अलावा कचौड़ियां हर वर्ग के लिए अलग-अलग दरों पर भी उपलब्ध रहती हैं। कहीं महंगी हैं तो कहीं औसत वर्ग के लिए बेहद सस्ती। यही वजह है कि यहां के ज्यादातर लोगों की दिनचर्या कचौड़ी के नाश्ते से ही शुरू होती है।

दूर तक जाती है यहां की महक
शहर के चौराहे सुबह-सुबह ही सरसों के तेल और मसालों के तड़का से महकने लगते है। इसके पीछे कारण कचौड़ी विक्रेता सुबह चार बजे से ही सब्जी आदि तैयार करने में जुट जाते हैं। ऐसे में वह तेल गर्म कर जब सब्जी छोंकते हैं तो उसकी महक वातावरण में फैल जाती है। वह चौराहों से गुजरने वालों को अनायास ही आकर्षित करती है। ऐसे में तमम लोग कचौड़ी की दुकानों पर पहुंचकर स्वाद लेने के लिए इंतजार करते हैं।

ऐसी दीवानगी देखी नहीं कहीं
सैकड़ों की संख्या में ऐसे लोग हैं जो कई दशकों से सुबह-सुबह कचौड़ियों का नाश्ता करने ही घर से निकलते हैं। इस दौरान वह टहल भी लेते हैं और कचौड़ी बच्चों के लिए पैक कराकर भी ले जाते हैं। उनके घरों में भी नाश्ते के रूप में नियमित कचौड़ियों का ही सेवन होता है। यह लोग ज्यादातर सरसो के तेल में तली कचौड़ियां पसंद करते हैं। दूसरी तरफ दर्जनों विक्रेता ऐसे हैं जो दशकों कचौड़ी बेच रहे हैं। कुछ की तो पीढ़ियां भी बदल गई हैं पीढ़ियां बदल गईं, लेकिन न ही खाने वाले बदले और न ही बेचने वाले। कहीं तीखे के शौकीन लोग हैं तो कहीं सादे मसाला पसंद करने वाले। कहीं कचौड़ी के साथ चटनी का स्वाद लोगों को भाता है तो कहींं दही के अलग-अलग तरह के रायते का स्वाद।

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