बरेली: सपा-भाजपा में बंटेगा बसपा का कैडर वोट...ज्यादा लाभ दोनों को नहीं

बरेली: सपा-भाजपा में बंटेगा बसपा का कैडर वोट...ज्यादा लाभ दोनों को नहीं

बरेली, अमृत विचार: पिछले चुनावों का इतिहास बताता है कि बसपा का अनुसूचित जाति का कैडर वोट पहले ही उससे काफी हद तक किनारा कर चुका है, लेकिन पार्टी प्रत्याशी का पर्चा खारिज होने के बाद यह पहला ऐसा चुनाव होगा जब उसके कैडर वोटर के सामने सपा और भाजपा में से किसी एक को चुनने के अलावा कोई स्पष्ट विकल्प नहीं रह गया है। दोनों पार्टियों ने अंदरखाने उन्हें अपनी तरफ खींचने की भी कोशिशें शुरू कर दी हैं। हालांकि फिलहाल इन वोटरों का रुझान बता रहा है कि दोनों में किसी पार्टी को इस वोट बैंक का ज्यादा फायदा होने की संभावना नहीं है।

बरेली संसदीय क्षेत्र में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या करीब 17 प्रतिशत है, जो मुसलमानों की करीब 29 फीसदी वोटों के बाद सबसे ज्यादा है। इसके बावजूद बसपा को बरेली संसदीय क्षेत्र में 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद कभी 17 प्रतिशत वोट नहीं मिला। इससे पहले सिर्फ 2009 के लोकसभा चुनाव में उसे 25.8 प्रतिशत वोट मिले थे। इसी चुनाव में सपा का वोट प्रतिशत सिर्फ 10.4 रह गया था। सपा और बसपा के वोट प्रतिशत में यह अंतर मुस्लिम और अनुसूचित जाति के वोटरों के एकजुट होने की वजह से आया था। हालांकि अगले ही चुनाव से बसपा के वोटों का ग्राफ गिरना शुरू हुआ तो फिर स्थिर तक नही रह पाया।

बसपा को 2012 के विधानसभा चुनाव में संसदीय क्षेत्र की पांचों सीटों पर कुल मिलाकर 17.9 और फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में 10.4 प्रतिशत वोट ही मिले। इसके बाद 2017 के चुनाव में 14.2 प्रतिशत वोट मिले। लोकसभा चुनाव 2019 में गठबंधन के तहत बसपा ने बरेली सीट सपा के लिए छोड़ दी। विधानसभा चुनाव 2022 में उसकी स्थिति और खराब हो गई और उसे सिर्फ 5.8 प्रतिशत वोट ही मिल पाया। अब अगर इस 5.8 प्रतिशत वोट को ही बसपा की पूंजी मान लिया जाए तो लोकसभा चुनाव 2024 में इसी का बंटवारा भाजपा और सपा के बीच होना है।

कोई सपा, कोई भाजपा को वोट देने के मूड में, कोई कुछ तय नहीं कर पा रहा
बसपा के प्रत्याशी का पर्चा खारिज होने के बाद उसके वोटरों ने भी विकल्पों पर अपना मूड सेट करना शुरू कर दिया है। नवाबगंज के एडवोकेट ओमेंद्र देव बसपा प्रत्याशी के टिकट कैंसल होना सोची-समझी साजिश बताते हैं।वह इसमें भाजपा का हाथ बताते हुए कहते हैं कि दलित समाज इस बार भाजपा प्रत्याशी को हराने के लिए मतदान करेगा। नवाबगंज के ही गांव फैजुल्लापुर के रमेश चंद्र कहते हैं कि बसपा प्रत्याशी का पर्चा रद्द होने के बाद दलित समाज को सोचना होगा कि किसे मतदान करे। 

वह किसानों की समस्याओं का जिक्र करते हुए कहते हैं कि अभी उन्होंने कोई फैसला नहीं लिया है। भोजीपुरा के अजय दिवाकर ने बताया कि वह बसपा को ही वोट देते थे लेकिन इस बार बसपा का प्रत्याशी नहीं है तो भाजपा को वोट देंगे। वह कारण बताते हैं कि भाजपा सरकार में गुंडागर्दी कम हुई है। भोजीपुरा के ही राहुल कुमार सागर भी यही बात दोहराते हैं। मीरगंज के मोहल्ला रतनपुरी में रहने वाले सचिन वाल्मीकि को इस चुनाव में पहली बार वोट डालना है। उन्होंने बताया कि उनका परिवार बसपा को वोट देता है लेकिन इस बार उसका प्रत्याशी न होने के कारण कोई फैसला नहीं हो पाया है। घरवाले जिसे कहेंगे, उसी को वोट देंगे। रतनपुरी के ही विनोद जाटव ने बताया कि बसपा प्रत्याशी मैदान में नहीं है। वह इस बार भाजपा को वोट देंगे।

बरेली संसदीय क्षेत्र के समीकरण यह भी बता रहे हैं कि बसपा प्रत्याशी का पर्चा खारिज होने का बहुत ज्यादा फायदा न भाजपा को होगा न ही सपा को। दरअसल, बसपा प्रत्याशी के मैदान में न होने से सपा की मुस्लिम वोटों के बंटवारे की चिंता खत्म हो गई है।

मुसलमानों का वोट करीब 29 प्रतिशत है। यह माना जा सकता है कि 17 प्रतिशत अनुसूचित जाति के मतदाता होने के बाद भी विधानसभा चुनाव 2022 में बसपा को सिर्फ 5.8 प्रतिशत वोट इसलिए मिला क्योंकि उसका वोटर भाजपा में चला गया था। 

संभावना जताई जा रही है कि 5.8 प्रतिशत वोट का भी ज्यादा हिस्सा भाजपा में ही जाएगा लेकिन सपा मुस्लिम वोटों के बंटवारे की संभावना कम हो जाने से फायदे में रहेगी। भाजपा इस मामले में निश्चिंत हो सकती है कि बसपा का पिछले चुनावों में खींचकर लाया गया वोट लौटने की संभावना खत्म हो गई है।

बरेली लोकसभा क्षेत्र में बसपा का वोट बैंक अभी कहीं नहीं जा रहा है। बसपा प्रमुख मायावती की ओर से भी अभी कोई निर्देश नहीं मिला है। जब उनका निर्देश आएगा तो उसके मुताबिक वोटरों तक संदेश पहुंचा दिया जाएगा--- ओमकार कातिब, बसपा जिलाध्यक्ष।

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