अल्मोड़ा: बेबस और लाचार वन महकमे पर हावी हो रही वनाग्नि 

अल्मोड़ा: बेबस और लाचार वन महकमे पर हावी हो रही वनाग्नि 

रमेश जड़ौत, अल्मोड़ा, अमृत विचार। पर्यावरण में तपिश बढ़ने के साथ साथ प्रदेश के पर्वतीय जिलों में वनाग्नि की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। जिसे लेकर सरकारी तंत्र बैचेन है। लेकिन सूबे के अल्मोड़ा जिले में वनाग्नि की बढ़ती घटनाओं ने वन महकमे लाचार और बेबस बना कर रख दिया है।

एक ओर जहां जिले में सैंकड़ों हेक्टेयर वन संपदा भीषण आग की चपेट में है। वहीं दूसरी ओर संसाधनों की कमी से जूझ रहा वन महकमा वनाग्नि की घटनाओं से निपटने के लिए हाथ पांव तक नहीं मार पा रहा है। वनाग्नि की घटनाएं लगातार विभाग के काबू से बाहर होती जा रही हैं। जिससे वन्य संपदा और पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुंच रहा है। 

अल्मोड़ा जिले की बात करें तो यहां का 15815 हेक्टेयर क्षेत्र सिविल सोयम वन प्रभाग और 61082 हेक्टेयर क्षेत्र वन प्रभाग के अंतर्गत आता है। जिले में हर साल वनाग्नि की तमाम घटनाएं सामने आती हैं। जिनमें लाखों करोड़ों की वन संपदा जलकर राख में तब्दील हो जाती है। लेकिन इसके बाद भी वन विभाग के आला अधिकारियों ने जिले में विभाग के ढांचे को मजबूत करने के लिए कोई कारगर कदम उठाना मुनासिब नहीं समझा। परिणाम स्वरूप फायर सीजन में वनाग्नि की घटनाओं से निपटना विभाग के सामने चुनौती बन जाता है।

अल्मोड़ा वन प्रभाग की बात करें तो यहां रेंजर के 8 पदों के सापेक्ष 5 , डिफ्टी रेंजर के 18 पदों के सापेक्ष 10, वन दारोगा के 37 पदों के सापेक्ष 16 और वन रक्षकों के 52 पदों के सापेक्ष 12 पद लंबे समय से रिक्त चल रहे हैं। जबकि सिविल सोयम वन प्रभाग में डिफ्टी रेंजर के 8 पदों के सापेक्ष 1, वन दारोगा के  109 पदों के सापेक्ष 8 और वन रक्षकों के 128 के सापेक्ष 22 पद आज भी रिक्त हैं।

प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी के चलते वर्तमान में एक कर्मचारी पर कई हेक्टेयर वन भूमि काे बचाने की जिम्मेदारी है। लेकिन पर्याप्त कार्मिकों की कमी के कारण वन महकमा उपलब्ध संसाधनों का भी सही ढंग से उपयोग नहीं कर पा रहा है। विभाग की इसी बेबसी और लाचारी का परिणाम है कि इस फायर सीजन में वनाग्नि की सैकड़ों घटनाओं में करीब 50 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि वनाग्नि की भेंट चढ़ गई है। 

विभाग के क्रू सेंटर भी साबत हो रहे सफेद हाथी 
वनाग्नि की घटनाओं से निपटने के लिए वन विभाग ने जिले में करीब 135 क्रू स्टेशन स्थापित किए हैं। इसके अलावा एक मास्टर, दो मॉडल क्रू स्टेशनों का गठन भी किया गया है। जहां औरचारिकता भर के लिए फायर वाचरों को तैनात भी किया गया है। लेकिन इसके बाद भी विभाग के यह क्रू स्टेशन वनाग्नि पर काबू पाने में मददगार साबित नहीं हो पा रहे हैं। वनाग्नि की कई घटनाओं के दौरान जब ग्रामीणों में इन क्रू स्टेशनों से संपर्क किया तो वहां से उन्हें कोई मदद नहीं मिल सकी। ऐसे में वनाग्नि सुरक्षा के विभाग के दावे महज सफेद हाथी ही साबित हो रहे हैं। 

स्वच्छ वातावरण में लगातार घुल रहा जहर 
पर्वतीय क्षेत्रों में आग से धधक रहे जंगल अब यहां के स्वच्छ वातावरण के लिए नुकसान दायक साबित हो रहे हैं। जिले में चारों ओर पर्यावरण में धुंध सी फैल गई है। जो पर्यावरण में जहर घाेलने का काम कर रही है। नतीजतन पहाड़ की स्वच्छ आबो हवा का आनंद लेने के लिए देश विदेश के जो सैलानी इन दिनों पहाड़ों का रूख करते थे। उनकी आमद में भी अब लगातार कमी दर्ज की जा रही है। 

कर्मचारियों की कमी की जानकारी समय समय पर शासन को दी जाती रही है। कर्मचारियों की तैनाती के संबंध में शासन स्तर से ही कार्रवाई संभव है। लेकिन विभाग के पास वर्तमान में जो संसाधन उपलब्ध हैं। उनसे वनाग्नि से निपटने के पूरे पूरे प्रयास किए जा रहे हैं। जहां से भी वनाग्नि की सूचना मिल रही है। वहां तत्काल टीम को भेजा जा रहा है। 
-ध्रुव सिंह मर्तोलिया, प्रभागीय वनाधिकारी, सिविल सोयम वन प्रभाग, अल्मोड़ा