पारदर्शी चुनावी वित्त पोषण

पारदर्शी चुनावी वित्त पोषण

केंद्र की चुनावी बांड योजना पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत चुनावी बांड के विवरण का खुलासा करने से इनकार कर दिया है। अजीब बात है कि एसबीआई ने उस जानकारी को देने से इनकार किया है जो चुनाव आयोग की वेबसाइट पर पहले से मौजूद है।

दूसरी ओर पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने आरोप लगाया है कि जब टुकड़ों में बात सामने आ रही है तो पता चल रहा है कि किस तरह अनेक कंपनियों से, व्यापक रूप से काला धन जमा करने के लिए इस योजना का दुरुपयोग किया। गौरतलब है चुनावी बांड की योजना तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा केंद्रीय बजट 2017-18 के दौरान वित्त विधेयक, 2017 में पेश की गई थी।

जेटली ने राजनीतिक फंडिंग के उद्देश्य से बैंकों द्वारा चुनावी बांड जारी करने की सुविधा के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अधिनियम में संशोधन करने का भी प्रस्ताव रखा। वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग ने 2 जनवरी 2018 को राजपत्र में चुनावी बांड योजना 2018 को अधिसूचित किया ।

इसके बाद कांग्रेस ने 2019 के आम चुनावों से पहले घोषणा की कि अगर पार्टी सत्ता में चुनी जाती है तो बांड को खत्म कर देगी। 15 फरवरी 2024 को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में  सर्वोच्च न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से चुनावी बांड योजना, साथ ही जन प्रतिनिधित्व अधिनियम , कंपनी अधिनियम और आयकर अधिनियम में संशोधन को रद कर दिया।

एसबीआई को 6 मार्च तक दानदाताओं और प्राप्तकर्ताओं का विवरण भारत के चुनाव आयोग को सौंपने के लिए कहा गया था और चुनाव आयोग को 13 मार्च तक इन्हें ऑनलाइन प्रकाशित करना था। हालांकि, एसबीआई विवरण प्रस्तुत करने में विफल रहा।

6 मार्च, और अधिक समय मांगने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया, जिसके बाद विवरण चुनाव आयोग को सौंप दिया गया और उनकी वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया। आरटीआई कार्यकर्ता कमोडोर (सेवानिवृत्त) लोकेश बत्रा ने 13 मार्च को एसबीआई से चुनावी बांड का डेटा मांगा।

बैंक ने आरटीआई अधिनियम के तहत दी गई छूट से संबंधित दो धाराओं का हवाला देते हुए जानकारी उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया। जवाब में कहा है कि मांगी गई जानकारी में खरीदारों और राजनीतिक दलों का विवरण शामिल है। इसलिए इस जानकारी का खुलासा नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये विश्वसनीयता का सवाल है।

जानकारों के मुताबिक ऐसे में जब देश में राजनीतिक व्यवस्था आम चुनाव के प्रचार में व्यस्त है, चुनावी बांड योजना का आकलन करना मतदाताओं पर निर्भर है। क्योंकि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए चुनावी वित्तपोषण का पारदर्शी होना जरूरी है।