अल्मोड़ा: जिन गांवों को गोद लिया उनकी ही सेहत नहीं सुधार पाए सांसद 

अल्मोड़ा: जिन गांवों को गोद लिया उनकी ही सेहत नहीं सुधार पाए सांसद 

बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा, अमृत विचार। लोकसभा क्षेत्रों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों व आजादी से लेकर अब तक बुनियादी सुविधाओं से महरूम गांवों की दशा को सुधारने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सपना देखा और उनके निर्देश पर उत्तराखंड के सांसदों द्वारा भी कई गांवों को गोद भी लिया।

कुछ अपवाद छोड़ दें तो सांसदों द्वारा गोद लिए अधिकांश गांवों की सेहत आज भी सुधर नहीं पाई है। इन गांवों के लोग पहले की तरह आज भी बुनियादी सुविधाओं के इंतजार में हैं। मजे की बात यह कि अधिकांश सांसदों ने जिन गांवों को गोद लिया। वहां के लोगों ने आज तक गांव में कभी अपने सांसद को देखा तक नहीं। 

बात अल्मोड़ा लोकसभा सीट की करते हैं। इस सीट पर पिछले दस सालों से भाजपा का कब्जा है और दोनों बार अजय टम्टा यहां से सांसद चुने गए। सांसद के तौर पर उनके दस सालों के कार्यकाल की बात करें तो प्रधानमंत्री मोदी के सपनों को पूरा करने के लिए उन्होंने भी कई गांवों को गोद लिया। जिनमें से कुछ की पड़ताल की गई।

सांसद टम्टा ने अपने दस सालों के कार्यकाल में बागेश्वर जिले के सूपी और मजकोट, पिथौरागढ़ के जुम्मा, चंपावत के गोशनी व सल्ली, अल्मोड़ा के सुनोली व अन्य कुछ गांवों को गोद लिया। सांसद द्वारा गोद लिए इन गांवों के लिए केंद्र की निर्धारित गाइड लाइन की बात करें तो सांसदों को चयनित गांवों में ढांचागत सुविधाओं के अलावा पंचायती राज, भूमि संरक्षण, वन एवं पर्यावरण, स्वास्थ्य व शिक्षा, पेयजल, बिजली, दूरसंचार, सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि, खेलकूद तथा महिला एवं बाल विकास विभाग के सहयोग से विकास योजनाओं का लाभ ग्रामीणों तक पहुंचाना था। इन गांवों के ग्रामीणों की मानें तो विकास योजनाओं के नाम पर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए गए। लेकिन सच्चाई यह है कि विकास योजनाएं गांवों तक पहुंची ही नहीं। ऐसे में सांसद द्वारा गोद लिए इन गांवों के वाशिंदे आज भी अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। 

इन समस्याओं से जूझ रहे गोद लिए गांव 
सांसद अजय टम्टा द्वारा गोद लिए लगभग सभी गांवों में बिजली,पानी की नियमित आपूर्ति न होना, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाओं का अभाव है। चंपावत जिले के गोशनी व सल्ली गांव की बात करें तो यहां के लोग एक बड़ी लिफ्ट पेयजल योजना बनाने, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का उच्चीकरण करने, महिला डिग्री कॉलेज खोलने, बारात घर, पर्यटक आवासगृह , केंद्रीय विद्यालय, गैस गोदाम, जीआईसी और जीजीआईसी में मानकों के अनुरूप शिक्षकों की तैनाती को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। बागेश्वर जिले के सूपी और मजकोट में भी हालात कुछ ऐसे ही हैं।

गांव के लोगों को फोन कनेक्टिविटी के लिए कई किमी दूर जाना पड़ता है। पिथौरागढ़ जिले का जुम्मा गांव भी विकास की रात ताकते ताकते थक गया। सालों बीत गए सड़क तक नहीं बन पाई। रही सही कसर प्राकृतिक आपदाओं ने पूरी कर दी। कई बार जनहानि का सामना भी करना पड़ा।

इसी तरह अल्मोड़ा के सुनोली के विकास की तस्वीर किसी धुंधलके से कम नहीं है। अस्पताल फार्मासिस्टों के सहारे तो गर्भवती महिलाओं के लिए प्रसव की कोई सुविधा नहीं, आंतरिक रास्ते खड़ंजे तक की बाट जोह रहे हैं। जंगली जानवरों के आतंक से फसलें चौपट हो गई हैं तो स्कूलों में विज्ञान विषय पढ़ने तक की सुविधा नहीं है। बुनियादी सुविधाओं का अभाव इतना ही सांसद के गोद लिए इन गांवों से पलायन लगातार जारी है। 

स्वतंत्रता सेनानियों ने बजाया था आजादी का बिगुल 
चंपावत जिले के गोशनी का इतिहास आजादी की लड़ाई से जुड़ा है। इस गांव के वीर रणबांकुरे स्वतंत्रता सेनानी पं. हर्षदेव ओली, पं. दुर्गादत्त ओली, पं. दयाराम ओली, पं.पूर्णानंद जोशी ने इसी गांव से आजादी की अलख जगाई और ब्रितानी हुकूमत को लड़ाई के दौरान लोहे के चने चबाने को मजबूर कर दिया था। इसी तरह अल्मोड़ा का सुनोली गांव स्वतंत्रता सेनानी सोबन सिंह जीना से वास्ता रखता है। उनके नाम जिला मुख्यालय पर एसएसजे विवि और अन्य कई संस्थान तो खुल गए। लेकिन उनके पैतृक गांव की दशा आज भी दयनीय बनी हुई है। 

 

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