शाहजहांपुर: स्कूलों की मनमानी से अभिभावकों पर आफत, दोगुने रेट पर मिल रहे कोर्स और यूनिफॉर्म

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शाहजहांपुर, अमृत विचार: निजी पब्लिक स्कूलों की लूट ने अभिभावकों को आफत में डाल दिया है। मध्यम वर्गीय इंसान पर जब हजारों रुपये की कॉपी-किताबों का बोझ पड़ता है तो वह व्यथित होकर रह जाता है। 40 रुपये वाली कॉपी 80 रुपये और 400 रुपये वाले जूते 800 रुपये में बिक रहे हैं।
1000 में मिलने वाला कॉपी और किताबों का कोर्स तीन हजार से छह हजार रुपये तक बेचा जा रहा है। ढाई सौ रुपये वाली पैंट 500 और 200 रुपये वाली शर्ट चार सौ रुपये में बेची जा रही है। यह तो सामान्य स्कूलों का हाल है। महानगर के हाईफाई स्कूलों में तो महंगाई की सीमा ही नहीं है। अप्रैल माह यानि अभिभावकों के लिए दिक्कतों का महीना।
नए सत्र की शुरुआत के साथ ही अभिभावकों का संघर्ष शुरू हो जाता है। स्कूल की फीस, यूनिफॉर्म और कॉपी-किताबों आदि का खर्चा मिलाकर एक परिवार पर औसत 20 से 30 हजार रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। ऐसे में सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना मध्यम वर्ग को करना पड़ रहा है। अतिरिक्त खर्च के कारण घर का बजट बिगाड़ रहा है।
वहीं स्कूलों के एकाधिकार के चलते संबंधित स्कूल द्वारा अधिकृत विक्रेता के पास ही सामान मिलने से अभिभावकों को 15-20 प्रतिशत तक मिलने वाली छूट भी नहीं मिल पा रही है। मजबूरी में उन्हें अधिकतम खुदरा मूल्य पर ही खरीदारी करनी पड़ रही है।
पब्लिक हों या कॉन्वेंट स्कूल सभी की किताबों की कीमत अधिकतम खुदरा मूल्य ही अभिभावकों से वसूली जा रही है। बाजार में 40 रुपये एमआरपी पर 10 प्रतिशत डिस्काउंट पर मिलने वाली 36 रुपये की कॉपी के पुस्तक विक्रेता 80 रुपये वसूल रहे हैं।
फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी की प्रैक्टिकल कॉपी 100 रुपये में दी जा रही है। इनकी वास्तविक कीमत 60 रुपये से अधिक नहीं है। कक्षा 7 की कंप्यूटर की किताब की कीमत 500 के पार पहुंच गई है। कुछ प्रकाशकों की गणित की किताब भी 500 रुपये से ज्यादा में मिल रही हैं।
केस- 1
लोधीपुर निवासी गुड्डू पब्लिक स्कूल के छात्र हैं। वह चौथी और बहन अनुष्का 9वीं कक्षा में आ गए हैं। स्कूल की फीस, किताबों और यूनिफॉर्म को मिलाकर करीब साढ़े 10 हजार रुपये का खर्च अनुभव और करीब इतना ही खर्चा उनकी बहन अनुष्का पर हो रहा है। इसके अलावा बोतल, बैग आदि का खर्चा मिला लिया जाए तो अनुमानतः 15 हजार रुपये का बोझ परिवार पर पड़ा है।
केस- 2
मुख्य बाजार निवासी आशीष की बेटी शहर के प्रतिष्ठित कॉन्वेंट स्कूल के छात्र- छात्रा है। कक्षा सात में आई उनकी बेटी की किताबों का सेट 5000 रुपये का है। स्कूल की फीस, यूनीफॉर्म आदि का खर्च मिलाकर करीब 10 हजार रुपये का खर्च एक बच्चे पर आ रहा है। दोनों बच्चों की फीस आदि मिलाकर करीब 20 हजार रुपये का खर्च करना पड़ रहा है। इसके अलावा हर महीने की फीस अलग है। साथ ही पहली बार प्रवेश कराने पर दो से पांच हजार रुपये तक एडमिशन फीस देनी पड़ रही है।
क्या कहते हैं अभिभावक...
पब्लिक स्कूल की ओर से अधिकृत विक्रेता से कॉपी किताब का कोर्स खरीदने को कहा जा रहा है। जहां हर चीज के लगभग दोगुने दाम देने होते हैं। मजबूरी न हो तो आराम से यही सेट आधे दामों पर दुकानदार दे देते हैं। किसी को अभिभावकों की चिंता नहीं---अबरार अली, ग्राम प्रधान।
स्कूलों को एनसीईआरटी की किताबें लगानी चाहिए। किताबें भी आम आदमी के बजट में आ जाएंगी। जब सारी प्रतियोगी परीक्षाओं में एनसीईआरटी की किताबों से सवाल आते हैं तो फिर ये स्कूल वाले आखिर कौन सा रॉकेट साइंस निजी प्रकाशकों की किताबों से पढ़ा रहे हैं--- राजेंद्र पाल, ग्राम प्रधान।
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