Kasganj News: मौनी अमावस्या पर स्नान-दान और पुण्य से होते हैं पितृ प्रसन्न, जानिए मौन रहने का पौराणिक रहस्य
पुराणों में बताया गया है मौनी अमावस्या का विशेष महत्व
कासगंज, अमृत विचार। सनातन धर्म में माघ मास को दान पुण्य, पूजा अर्चना आदि के लिए बहुत शुभ एवं पुण्यकारी माना जाता है। प्रतिमाह आने वाली अमावस्या तिथियों में से माघ माह में आने वाली अमावस्या को विशेष श्रेष्ठ माना जाता है। इसे माघ अमावस्या या मौनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन ऋषि मनु का जन्म हुआ था इसलिए इसे मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस तिथि पर पतितपाविनी मां गंगा में स्नान कर पूजा अर्चना एवं दान पुण्य करना अत्यंत फलदाई बताया गया है।
मान्यता है कि इस दिन मां गंगा का जल अमृत के समान पवित्र हो जाता है जिसमे स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ करने के समान फल मिलता है। मौनी अमावस्या को जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु एवं भगवान शंकर की पूजा अर्चना की जाती है। यदि किसी जातक की कुंडली में पितृ दोष है तो इस दिन दान-पुण्य, पिंड दान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष प्राप्ति होती है जिससे वे प्रसन्न होकर अपना आशीर्वाद देते हैं।
मुहूर्त एवं पूजा अर्चना विधि
आचार्य पंडित कृष्ण गोपाल पचौरी ने बताया कि इस बार मौनी अमावस्या का शुभ मुहूर्त शुक्रवार 9 फरवरी को सुबह 08 बजकर 03 मिनट से प्रारंभ होकर शनिवार सुबह 04 बजकर 29 मिनट तक है। इसलिए यह पर्व शुक्रवार को ही मनाया जाएगा। मौन व्रत गुरुवार रात्रि को शयन से पूर्व प्रारंभ होगा। प्रातः उठकर गंगा स्नान कर, भगवान शिव और भगवान विष्णु की आराधना करें और यथासंभव दान पुण्य करने के उपरांत 'ॐ' हरि बोल, फिर अपनी मौनी खोल उच्चारण के साथ अपना मौन व्रत पूर्ण करें। प्रदोष काल में सांय 6 बजकर 6 मिनट पर मां लक्ष्मी जी की पूजा आराधना करने पर माता की कृपा से सुख समृद्धि प्राप्त होगी।
जानिए मौन रहने का पौराणिक रहस्य
मौनी अमावस्या को मौन एवं संयम की साधना, स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्त कराने वाली मानी गई है। इसलिए मौन रहकर ही स्नान, अर्चना, दान एवं पुण्य करना बताया गया है। इसके पीछे एक पौराणिक रहस्य छिपा है। पूर्व काल में ऋषि मुनि मौन रहकर ही तप, साधना एवं चिंतन मनन किया करते थे। मौन रहकर कार्य करने से एकाग्रता एवं मानसिक ऊर्जा बढ़ती है, जिससे लक्ष्य प्राप्ति हेतु मार्ग प्रशस्त होता है। विचार एवं मन में शुद्धता आती है जिससे किसी तरह की कुटिलता नहीं आती है। आध्यात्मिक उन्नति के लिए विचारों का शुद्ध होना अति आवश्यक है। साथ ही हमारी ज्ञानेंद्रियों एवं कामेंद्रियों के एकाग्र होने से कार्य सुचारू रूप से संपन्न करने में आसानी होती है।
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