सुलतानपुरः रामायण सर्किट में शामिल हुआ बिजेथुआ महावीरन धाम, महाबलि हनुमान ने यहीं पर किया था कालनेमि का वध!

- निदेशक पर्यटन उप्र ने डीएम से मांगा पांच से 10 एकड़ जमीन 

सुलतानपुरः रामायण सर्किट में शामिल हुआ बिजेथुआ महावीरन धाम, महाबलि हनुमान ने यहीं पर किया था कालनेमि का वध!

संतोष मिश्र/अरविंद पांडेय। सुलतानपुर। जनपद मुख्यालय से 48 किलोमीटर पूरब लखनऊ-बलिया राष्ट्रीय राजमार्ग से करीब दो किमी दक्षिण बिजेथुआ महावीरन का प्रसिद्ध ऐतिहासिक धाम जिले की पहचान है। धार्मिंक ग्रंथों व इतिहासकारों के मुताबिक यहां पर हनुमानजी ने कालनेमि नामक राक्षस का वध किया था। यहां पर कई प्रांत के लोग बाबा बजरंगबली के दर्शन करने आते हैं। लंबे समय से स्थानीय विधायक समेत अन्य का प्रयास रंग लाया है और पर्यटन विभाग ने इसे रामायण सर्किट में शामिल कर लिया है। 

निदेशक पर्यटन उप्र प्रखर मिश्र ने डीएम कृत्तिका ज्योत्स्ना को पत्र जारी कर रामायण सर्किट में शामिल इस धाम के पर्यटन विकास के लिए पांच से 10 एकड़ जमीन उपलब्ध कराने को कहा है। जिससे यहां पर मेला परिसर, दर्शकों व श्रद्धालुओं के लिए मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था की जा सके। पत्र मिलते ही डीएम ने एसडीएम कादीपुर को अविलंब जमीन उपलब्ध कराते हुए जरूरी प्रक्रिया पूरा करने का आदेश दिया।

अभी तक बिजेथुआ में जमीन की तलाश तहसील प्रशासन ने पूरी कर ली है। हालांकि, वह जमीन तीन टूकड़ों में है। वहां पर आने-जाने का रास्ता साफ होते हुए विभाग के नाम रजिस्ट्री करा दी जाएगी। 

हनुमान जी ने कालनेमि का यहीं किया था वध 

जिला मुख्यालय से 48 किलोमीटर पूरब लखनऊ-बलिया राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 36 के किनारे स्थित सूरापुर कस्बे से 2 किलोमीटर दक्षिण बिजेथुआ महावीरन सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक एवं पौराणिक धर्म स्थली है। यह पौराणिक स्थल आजमगढ़, अंबेडकर नगर तथा प्रतापगढ़ जनपद की सीमाओं से आवृत्त है।

कालनेमी का उल्लेख रामचरितमानस के लंका कांड, अध्यात्म रामायण के युद्ध कांड का सर्ग 6 व 7 में तथा आनंद रामायण के सर्ग एक व 11 में मिलता है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के लंका कांड के दोहा संख्या 55 से 58 तक में कालनेमि का वर्णन किया है। ‘देखत तुमही नगर जो जारा, तासु पन्थु को रोकन हारा।’ कालनेमि ने अनेक नीतिपरक वचनों से रावण को समझाने का प्रयास किया। परंतु रावण ने उसकी एक न मानी। बल्कि उसे ऐसा न करने पर मृत्यु भय दिखाया। तब कालनेमि ने हनुमान जी के गगन मार्ग में माया द्वारा सुंदर सरोवर उपवन तथा भव्य मंदिर निर्मित किया और स्वयं मुनि का वेश धारण कर आश्रम में बैठ गया।

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उस सुंदर आश्रम को देखकर तथा कालनेमि को मुनि समझ कर हनुमान जी की जलपान की इच्छा हुई। हनुमान जी ने प्यास बुझाने के लिए जब जल मांगा तब कालनेमि ने अपना कमंडल दे दिया। इस पर कालनेमि ने कहा बगल के सरोवर में जाकर शीघ्र जल पीकर आओ। हनुमान जी के सरोवर में प्रवेश करते ही मकड़ी ने उनका पैर पकड़ा हनुमान जी ने तत्काल मकड़ी को मार दिया।तब वह मकड़ी दिव्य शरीर धारण कर यान द्वारा आकाश में जाने लगी।

चलते समय मकड़ी ने कहा हे कपि मैं तुम्हारे दर्शन से पापमुक्त हो गई। मुनि का दिया हुआ श्राप मिट गया। मकड़ी ने कालिनेमि का रहस्य बताते हुए हनुमान जी से कहा हे कपि वह मुनि नहीं राक्षस है। मेरी बात आप सत्य मानिए ‘मुनि न होई यह निशिचर घोरा, मानहूं सत्य वचन की कपि मोरा’। सरोवर से लौटकर हनुमान जी ने कालिनेमि का वध किया।

पौराणिक स्थल है बिजेथुआ धाम

बिजेथुआ नामकरण के संदर्भ में काशी के अवधूत उग्र चंडेश्वर कपाली महाराज बताते हैं कि इतिहास विदों के अनुसार बिजेथुआ विजय हुआ का अपभ्रंश है। बिजेथुआ के साथ महावीरन पौराणिक स्थल का सामंजस्य कालनेमि वध स्थल से किया जाता है। गोस्वामी जी ने कालनेमि के आश्रम के विषय में नाम निर्देश नहीं किया है, परंतु परंपरागत अनुश्रुतियां यही है कि बिजेथुआ महावीर ही वह पौराणिक स्थल है, जिसका संबंध कालनेमि हनुमान और मकड़ी से है।

संपूर्ण भारत में कहीं भी इस नाम का पौराणिक स्थल विजेथुआ महावीर के अतिरिक्त नहीं है। यहां मकड़ी कुण्ड सरोवर हनुमान जी का मंदिर तथा उस में दक्षिणाभिमुख प्रतिमा प्राचीन काल से अवस्थित है। विजेथुआ महावीर मंदिर में स्थापित हनुमान जी की रौद्र रूप प्रतिमा स्वयंभू है व दक्षिणाभिमुखी है।

वास्तुशास्त्र की दृष्टि से दक्षिण दिशा आसुरी दिशा मानी गई है। असुरों तथा राक्षसों की नगरी लंका दक्षिण दिशा में पड़ती है। सामान्यता मंदिरों में देवी-देवताओं की प्रतिमा दक्षिणाभिमुख नहीं स्थापित की जाती है। मंदिर का प्रवेशद्वार भी दक्षिण दिशा की ओर है।

भौगोलिक प्रमाण से भी है सिद्ध

भौगोलिक प्रमाण के आधार पर भी यह संकल्पना की जा सकती है की लंका व धौवलागिरी पर्वत के मध्य विजेथुआ महावीर स्थल स्थिति है। यह भी उल्लेखनीय है कि स्वामी गोस्वामी दास जी ने रामचरितमानस में धौलागिरी से लौटते समय हनुमानजी का अयोध्या नगरी के ऊपर से गुजरने का उल्लेख किया है। विजेथुआ महावीर व अयोध्या की आकाशीय दूरी लगभग 78 किलोमीटर है। शक्तिपीठ बिजेथुआ महावीर धाम में समय-समय पर अनेक संतो ने आकर घोर तपस्या की है, जिनकी समाधियां मकड़ी कुंड के पूरब टीले पर है।

रामायण सर्किट में अयोध्या से चित्रकूट के बीच में पड़ने वाले बिजेथुआ महावीरन धाम को भी जोड़ा गया है। पर्यटन निदेशक के आदेश पर यहां पर जमीन की तलाश की गई है। जल्द ही रास्ता के साथ नजरी नक्शा समेत अन्य कार्य पूर्ण कर लिए जाएंगे। इसके बाद यहां के विकास के लिए अलग से बजट जारी होगा। 

                                                      डा. धीरेंद्र कुमार, प्रभारी जिला पर्यटन सूचना अधिकारी/जिला सूचनाधिकारी

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