सांड समस्या: कदम-कदम पर उलझन में फंस रहा प्रशासन

सांड समस्या: कदम-कदम पर उलझन में फंस रहा प्रशासन

अनुपम सिंह, बरेली, अमृत विचार। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले सांडों के जहां-तहां उत्पात ने प्रशासन को और ज्यादा मुश्किल में फंसा दिया है। राजनीति के गणित पर इस समस्या का असर न पड़े, इसके लिए आननफानन नंदी शालाएं बनाकर सांडों को उनमें रखे जाने की योजना तैयार हो गई है, लेकिन कई सवाल अब भी पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। नंदी शालाओं के बजट के अलावा सबसे बड़ी यह चिंता अफसरों पर हावी है कि नंदी शालाओं में भी अगर सांडों की जंग शुरू हो गई तो कैसे निपटा जाएगा।

देहात के इलाकों में सांड अब तक तमाम लोगों की जान ले चुके हैं। अब शहर में भी उनका उत्पात शुरू हो गया है। पिछले सप्ताह संजयनगर में गुस्साए सांड ने एक बुजुर्ग को पटक-पटककर मारने के साथ 12 लोगों को घायल भी कर दिया था। छुट्टा गोवंशीय पशुओं के फसलों को चर जाने की वजह से किसानों में हाहाकार मचा ही हुआ है।

अब तक प्रशासन ऐसी घटनाओं को नजरंदाज कर रहा था, लेकिन अब चुनाव नजदीक होने की वजह से बेहद जटिल हो चुकी इस समस्या के समाधान का उस पर इस कदर राजनीतिक दबाव है कि नीचे से ऊपर तक रोज-रोज आदेश-निर्देश जारी करने के साथ नई-नई योजनाएं बनाई जा रही हैं। यह अलग बात है कि इन योजनाओं का क्रियान्वयन कराना एक अलग समस्या बना हुआ है।

हाल ही में सांडों को जिले भर में नंदी शालाएं बनाकर उनमें संरक्षित करने की योजना बनाई गई है लेकिन अब यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि उनमें जब-तब भड़ककर हिंसक हो जाने वाले सांडों को आखिर कैसे काबू में रखा जाएगा। इस सवाल से प्रशासन के कदम एक बार फिर ठिठकने लगे हैं। अब नंदी शालाओं में सांडों के व्यवहार को नियंत्रित रखने के उपाय ढूंढे जाने लगे हैं।

एनेस्थीसिया से साडों को काबू में करने की योजना आईवीआरआई के वैज्ञानिक बोले- ये अविश्वसनीय
पशुपालन विभाग की ओर से हिंसात्मक प्रवृत्ति के सांड़ों को नियंत्रित रखने के लिए उन्हें जाइलाजीन नाम का इंजेक्शन देने की कार्ययोजना पेश की गई है। यह इंजेक्शन एनेस्थीसिया के काम में आता है। कार्ययोजना के अनुसार हिंसक सांड़ों को पकड़ने से पहले ही उन्हें जाइलाजीन की हल्की डोज दी जाएगी, इससे सांड सुस्त हो जाएगा। 

इसके बाद नंदीशाला में रहते हुए उसके हिंसक होने पर उसे तीन-चार दिन तक जाइलाजीन की हल्की डोज दी जाएगी ताकि वह सुस्त बना रहे और उसके स्वास्थ्य पर भी कोई असर न पड़े। कई दिन ऐसा रहने पर उसका स्वभाव सामान्य हो जाएगा। उधर, आईवीआरआई के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अभिजीत पावड़े का कहना है कि जाइलाजीन नाम का ड्रग बड़े और जंगली पशुओं को बेहोश करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस दवा से हिंसक व्यवहार सामान्य हो सकता है, ऐसा उनकी जानकारी में नहीं है। इस बारे में आईवीआरआई में कोई अध्ययन भी नहीं किया गया है।

पशुपालन विभाग 
बछड़ों का करेंगे बधियाकरण
पशुपालन विभाग की कार्ययोजना के अनुसार अभियान के दौरान पकड़े जाने वाले तीन साल से कम उम्र के बछड़ों का बधियाकरण किया जाएगा। सीवीओ ने बताया कि नंदीशाला में बछड़ों को संरक्षित करने के बाद उन्हें मशीन के जरिए बधिया कर देने से आगे वह हिंसक नहीं होंगे। यानी योजना के मुताबिक सांडों को जाइलोजीन और बछड़ों को बधिया कर काबू में रखा जाएगा।

आईवीआरआई 
सांडों को बधिया करना रहेगा बेहतर
आईवीआरआई के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. पावड़े के मुताबिक बछड़ों के बजाय सांडों को बधिया कराना ज्यादा बेहतर विकल्प है। इससे उनका हिंसक व्यवहार बदल सकता है। उन्होंने कहा, यह भ्रांति है कि तीन साल के बछड़े का बधियाकरण उपयुक्त है। इससे उनमें पथरी की समस्या पैदा होती है। वयस्क सांड को बधिया करने से कोई दिक्कत नहीं होती।

सीवीओ का दावा- नहीं होगा दुष्प्रभाव
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी (सीवीओ) डॉ. मेघश्याम ने बताया कि जाइलाजीन की डोज हिंसक सांडों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं छोड़ेगी। इस बारे में मथुरा वेटनरी कॉलेज में उन्होंने रिसर्च की है। सर्जन होने के नाते भी उनका दावा है कि जाइलाजीन के तीन-चार दिन प्रयोग से हिंसक सांडों का व्यवहार सामान्य हो जाएगा। इंजेक्शन का पांच-छह घंटे में असर खत्म हो जाता है लेकिन सुस्ती 24 घंटे रहती है।

इसलिए सांड होते हैं हिंसक
आईवीआरआई के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अभिजीत पावड़े के मुताबिक सांडों में हिंसक प्रवृत्ति के पीछे उनमें पुरुषत्व का ज्यादा होना है। वे आपस में लड़कर अपने पुरुषत्व का प्रदर्शन करते है। पुरुषत्व के लिए टेस्टोस्टोरोन नाम का हार्मोन जिम्मेदार होता है। सांड की तुलना में बैल को कम उम्र में बधिया कर खेत जोतने जैसे कामों में लगा दिया जाता है। जहां उनकी ऊर्जा इस्तेमाल होती है और इसीलिए वे हिंसक नहीं होते।

रेफरल पॉलीक्लिनिक में बधिया होते हैं सांड
आईवीआरआई के रेफरल पॉलीक्लिनिक में बड़े चीरे के जरिए सांडों के अंडकोष निकालने की पारंपरिक विधि इस्तेमाल की जाती है। अब विकल्प के तौर पर छोटे चीरे लगाकर बधिया करने पर अध्ययन किया जा रहा है। इस विधि को होल इन्साइस कहा जाता है। अभी इसके एनिमल वेलफेयर अथॉरिटी ऑफ इंडिया और सीपीसी-सीईए की ओर से अनुमति के चरण पर काम किया जा रहा है।

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