शाहजहांपुर: मनरेगा में बजट का संकट, 55 करोड़ की देनदारी से कराह रहा विभाग, आठ माह से नहीं मिला मानदेय

शाहजहांपुर: मनरेगा में बजट का संकट, 55 करोड़ की देनदारी से कराह रहा विभाग, आठ माह से नहीं मिला मानदेय

शाहजहांपुर, अमृत विचार: मनरेगा में बजट का संकट पैदा हो गया है। 55 करोड़ की देनदारी से विभाग कराह रहा है। आठ महीने से रोजगार सेवकों को मानदेय नहीं मिला है। सप्लाई फर्म्स के 30 करोड़ शेष हैं। 19 करोड़ 20 लाख रुपये श्रमिकों के पारिश्रमिक के बकाया हैं और आठ महीने से रोजगार सेवकों को मानदेय भी नहीं मिल पा रहा है।

अब तक कुल 55 करोड़ रुपये से भी ज्यादा विभाग पर देनदारी हो गई है। इसके चलते विकास कार्य भी प्रभावित होने लगे हैं। दूसरी ओर श्रमिकों को भारी आर्थिक परेशानी झेलनी पड़ रही है। जिले में महात्मा गांधी नरेगा योजना के श्रमिकों को ढाई महीने से मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है। श्रमिकों की मजदूरी का करीब 19 करोड़ 20 रुपये से अधिक बकाया है। जिले भर में कुल 4.16 लाख पंजीकृत श्रमिक हैं।

इनमें से लगभग 2.17 लाख श्रमिक सक्रिय रूप से कार्य करते हैं। एक श्रमिक को प्रतिदिन 230 रुपये पारिश्रमिक दिया जाता है। नियम है कि आठ दिन के भीतर श्रमिक को पारिश्रमिक मिल जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। बीते ढाई महीने से श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान नहीं हो रहा है। उधर, मनरेगा के तहत कार्यरत 740 ग्राम रोजगार सेवकों को भी आठ महीने से वेतन नहीं मिला है।

इस तरह कुल पांच करोड़ 92 लाख रुपये रोजगार सेवकों के मानदेय का बाकी है। मटेरियल सप्लाई फर्म वाले भी परेशान हैं क्योंकि उनकी 30 करोड़ की देनदारी हो चुकी है। सभी बकायेदार लगातार अधिकारियों के पास चक्कर लगा रहे हैं। जवाब एक ही है कि अभी ऊपर से पैसा नहीं आया है। जैसे ही ऊपर से पैसा आएगा सभी को दे दिया जाएगा।

ऐसे में और घटेगा मनरेगा का क्रेज: जानकारों का मानना है कि इस तरह पैसा फंसने से मनरेगा का क्रेज और घटेगा। पहले ही कम मजदूरी दिए जाने के चलते श्रमिक मनरेगा की जगह प्राइवेट मजदूरी को वरियता दे रहे हैं। अब इस तरह से पैसा फंसने के चलते परिस्थितियां और खराब होंगी। श्रमिकों का रुझान मनरेगा से और घट सकता है।

अगर ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में मनरेगा योजना को लेकर संकट खड़ा हो सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि मनरेगा की स्थिति खराब होने की वजह सरकार की उदासीनता है। सरकार योजना को क्रियान्वित करने पर ध्यान नहीं दे रही है।

4.16 लाख कुल श्रमिक पंजीकृत है मनरेगा योजना में

  • 2.17 लाख श्रमिक सक्रिय रूप से करते हैं कार्य

आठ दिनों के भीतर श्रमिकों को भुगतान का है नियम

  • 230 रुपये प्रतिदिन की दर से श्रमिकों को दी जाती मजदूरी

    मजदूरी न मिलने से गरीबी में आटा गीला हो रहा है। पहले ही गरीबी झेल रहे श्रमिकों के सामने खाने के लाले पड़े हुए हैं। वह मजदूरी न मिलने को लेकर परेशान हो रहे हैं।- राम लडै़ते जाटव

    लोगों ने हाल ही में नए साल का जश्न मनाया, लेकिन मनरेगा श्रमिक जेब खाली होने के चलते आर्थिक संकट से जूझते रहे। उनकी जेब बिलकुल खाली है।- हर्ष दीक्षित

    मनरेगा श्रमिक इस समय परेशान हैं। मजदूरी समय से नहीं मिल पा रही है। ऐसे में श्रमिक दुकानदारों से उधार खाद्य सामग्री लेकर काम चला रहे हैं। दुकानदारों की उधारी बढ़ रही है।- अखिलेश दीक्षित

    एक मजदूर को 8 दिन में मजदूरी मिल ही जानी चाहिए वरना घर चलाना मुश्किल हो जाता है। लगभग ढाई महीने से श्रमिकों को पारिश्रमिक नहीं मिल पा रहा है।- कल्लू

    हम तो ठहरे मजदूर, रोज कुआं खोदते हैं और रोज पानी पीते हैं। अब पारिश्रमिक अटक गया है, जिससे दो जून की रोटी के भी लाले हैं। परिवार भुखमरी की कगार पर है।- जफीरुद्दीन अली

    सामग्री की धनराशि और श्रमिकों का पारिश्रमिक न मिलने से सभी ग्राम प्रधान विकास कार्यों में पिछड़ रहे हैं। मनरेगा को जल्द से जल्द बजट दिया जाना चाहिए ताकि विकास कार्य पूरे कराए जा सकें।- अनिल कुमार गुप्ता, कार्यकारी अध्यक्ष- राष्ट्रीय पंचायती राज ग्राम प्रधान संगठन भारत

    विभाग में वर्तमान में बजट को लेकर स्थिति संतोषजनक नहीं है। श्रमिक, सप्लाई फर्म और रोजगार सेवकों का मानदेय बकाया हो चुका है। सरकार की ओर से पैसा भेजा जाने के बाद सबका भुगतान किया जाएगा।- बाल गोविंद शुक्ला, उपायुक्त मनरेगा

ये भी पढ़ें  - शाहजहांपुर विकास प्राधिकरण बनने से टूटेगी भू-माफिया की कमर, कब्जा और अवैध निर्माण पर लगेगी रोक