शुरू हो चुका है लखनऊ का सबसे मशहूर मेला, हर साल लोगों को रहता है बेसब्री से इंतजार, पांच रुपये में मिलता है हर सामान
रविशंकर गुप्ता /अमृत विचार लखनऊ। Lucknow Katki Mela 2023 उत्तर प्रदेश की राजधानी में हर साल एक ऐसे एतिहासिक मेले का आयोजन होता है जिसका लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है। इस मेले की खासियत ये है कि यहां इतनी मंहगाई के बाद भी पांच रुपये में बहुत से आईटम मिल जाते हैं। इसके अलावा दूसरी खासियत है कि हमारे दैनिक जीवन में उपयोगी होने वाली पुराने जमाने की वस्तुए भी आसानी से मिल जाती हैं। जो एक विशेष पहचान है इस मेले की। हर साल दिसंबर में शुरू होने वाले इस मेले को कतकी का मेला कहा जाता है। एतिहासिक जानकार बताते हैं कि इस मेले का आयोजन अकबर के जमाने से होता आ रहा है। करीब 45 दिनों तक चलने वाले इस मेले में लखनऊ के अलावा आस पास जिलों के लोग भी घूमने आते हैं। इस बार मेले का आयोजन 15 दिसंबर से शुरू हो चुका है। लेकिन अब पूर्ण से ये मेला सजकर तैयार है। यहां बच्चों के लिए तरह-तरह के झूले उपलब्ध हैं वहीं तमाम तरह के खिलौने बेहद सस्ती दरों पर उपलब्ध हैं।
गरीबों का लखनऊ महोत्सव भी कहा जाता है इस मेले को
इस मेले की खासियत ये भी है कि इसे गरीबों का महोत्सव भी कहा जाता है। दरअसल लखनऊ में काफी समय तक लखनऊ महोत्सव का आयोजन होता रहा है। लेकिन लखनऊ महोत्सव में प्रवेश शुल्क से लेकर यहां मिलने वाला हर सामान चार पांच गुना कीमत का होता था। लेकिन वही सामान कतकी के मेलें काफी कम कीमत में लोगों को मिल जाता है। यहां कोई प्रवेश शुल्क भी नहीं है ऐसे में इसे गरीबों का लखनऊ महोत्सव भी कहा जाने लगा।
नवाबी काल से गंगा जमुनी तहजीब का उदाहरण है मेला
इस मेले का आयोजन नवाबी काल से होता आ रहा है। इस मेले में खास बात ये भी है कि इसमें हिंदू मुस्लिम आपसी भाई चारे की मिसाल पेश करते हुए एक साथ अपनी-अपनी दुकाने सजाते हैं। इसके अलावा इस मेले में घूमने के लिए जहां हिंदू वर्ग के लोगों की काफी भीड़ रहती है वहीं दूसरी ओर मुस्लिम वर्ग के लोग भी यहां भारी संख्या में आते हैं। मेले में असुरक्षा का भी कोई माहौल नहीं रहता है।
पहले डालीगंज पुल पर अब होता है झूलेलाल पार्क में आयोजन
पहले इस मेले का आयोजन डालीगंज पुल व पुलिस आफिस के आस-पास पड़ी जगह में होता था। लेकिन जगह के आभाव और जाम के चलते इस मेले को बीते 2017 में झूलेलाल पार्क में शिफ्ट कर दिया गया। इसका श्रेय समाजसेवियों और मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्या गिरि को जाता है। उनके अथक प्रयास से झूलेलाल और मनकामेश्वर उपवन घाट तक पहुंच गया। हर साल इस मेले के आयोजन में नगर निगम की भी अहम भूमिका होती है।
चीनी मिट्टी के बर्तनों के लिए मशहूर है मेला
यहां आपको अनेक प्रकार की डिजाइन और रंग बिरेंगे कलर में चीनी मिट्टी के बर्तन काफी कम दामो में मिल जायेंगे। चीनी मिट्टी के बर्तन की दुकानों सबसे अधिक लगती हैं। हर साल इन्हीं बर्तनों के लिए लोग मेले का बहुत बेसब्री से इंतजार करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला ऐतिहासिक कार्तिक मेले का भी अपना एक रोचक इतिहास भी है। बताते हैं नवाबी दौर में यहां सिर्फ परदे में महिलाओं को अनुमति थी इस दौरान पुरुष नहीं आते थे । उसके बाद दिन भर इस मेले में पुरुषों को रहने की अनमति होती थी।
ये भी पढ़े:- आरटीई: सत्र 2024-25 में एडमिशन के लिए शुरू होने जा रहे आवेदन, लखनऊ बीएसए ने दी अहम जानकारी