Auraiya News: जिंदा शहीद घोषित हुए थे काकोरी कांड के नायक मुकुंदी लाल, शहीद पार्क औरैया में लगी प्रतिमा
औरैया में जिंदा शहीद घोषित हुए थे काकोरी कांड के नायक मुकुंदी लाल।

औरैया में जिंदा शहीद घोषित हुए थे काकोरी कांड के नायक मुकुंदी लाल। शहीद पार्क औरैया में प्रतिमा मुकुंदीलाल गुप्ता लगी।
औरैया, [गौरव चतुर्वेदी]। जिस अंग्रेजी हुकूमत का सूरज डूबता नही दिख रहा था।उसके आगे गिनती भर आजादी के दीवाने चुनौती बन उठे थे। उन दीवानों में एक थे औरैया के मुकुंदी लाल गुप्ता जिन्होंने अपने शौर्य से राम प्रसाद बिस्मिल,अशफाक उल्ला खां और रोशन सिंह के साथ काकोरी कांड को सफल बनाया।
इस कांड ने अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ा दी थी।अंग्रेजो ने राम प्रसाद बिस्मिल,अशफाक उल्ला खां और रोशन सिंह को गिरफ्तार कर लिया था और 19 दिसंबर की फांसी दे दी। मुकुंदी लाल को पुलिस पकड़ नही पा रही थी। मुकुंदी लाल इस देश के लिए जिंदा शहीद घोषित हो गए।
जनवरी 1901 में शहर के एक साधारण वैश्य परिवार में जन्मे भारतवीर मुकुंदीलाल गुप्ता के तेवर शुरू से ही विद्रोही थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गेंदा लाल दीक्षित के संपर्क में आने के बाद देशप्रेम का यह शोला धधकते ज्वालामुखी में तब्दील हो गया और वह देश के प्रमुख क्रांतिकारी गतिविधियों को संचालित करने वाली मातृ वेदी संस्था में शामिल हो गए।
सबसे पहले उन्होंने मैनपुरी षड्यंत्र केस में भाग लिया। इसमें उन पर वर्ष 1918 में मुकदमा चला और छह वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। जेल से छूटने के बाद वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ कर कार्य करने लगे। इसके बाद उनका संपर्क रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद से हुआ।
पुलिस आए दिन इनके परिवार को परेशान करने लगी तो परिजन झांसी चले गए। मुकुंदी लाल अपनी गतिविधि में लिप्त रहे। जब काकोरी कांड की योजना बनाई गई तो 9 अगस्त 1925 को अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मुकुंदी लाल ने अंग्रेजी खजाना लूट लिया था और अपने हाथों से बक्शो के ताले तोड़ दिए जिससे चंद्रशेखर आजाद ने भारतवीर कहकर पुकारा।
19 दिसंबर को इस कांड के तीन को फांसी मिलने पर मुकुंदीलाल इस देश के ‘जिंदा शहीद’ थे। फरार होने पर वह अजमेर, कानपुर और जाने कहां-कहां भटकते-घूमते 17 जनवरी 1926 को बनारस के पुस्तकालय में पुलिस के हाथ आ गए। काकोरी का मुकदमा लखनऊ में चला।
जिसमें मुकुंदीलाल को काला पानी की सजा सुनाई गई। इसके बाद देश आजाद होने के बाद उन्हें रिहा किया गया, लेकिन तब तक भारत माता के इस सपूत का शरीर काफी कमजोर हो चुका था। 12 अक्टूबर 1972 को कानपुर के हैलट अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। एक समय ‘भारतवीर’ कहे जाने वाले इस शख्स से किसी ने उनका हाल-चाल भी नहीं पूछा।
औरैया की गुमनाम बस्ती भी अब नहीं जानती कि 1972 में कानपुर के एक अस्पताल में अंतिम सांस लेने वाले इस क्रांतिकारी ने अपने अंतिम दिन किस बदहाली में बिताए थे। औरैया के शहीद स्मारक में उनका एकमात्र यादनामा पेश है। कुछ वर्ष पहले बरेली केंद्रीय कारागार में उनके नाम पर एक बैरक का नामकरण,स्मृति-पटल और चित्र लगवाया गया है।
पंडित नेहरू के घर आचार्य कृपलानी से भिड़ गए थे
1937 में सूबे में कांग्रेसी मंत्रिमंडल बना और बड़ी संख्या में क्रांतिकारियों को सरकार ने रिहा कर दिया। रिहाई के बाद इलाहाबाद में जवाहरलाल नेहरू ने काकोरी बंदियों का भव्य स्वागत किया था। सभी को ‘आनंद भवन’ की दूसरी मंजिल पर ले जाया गया। नेहरू ने वहां चाय-पानी से पहले एक स्वागत भाषण दिया। उस समय तक मुकुंदीलाल अंदर नहीं पहुंच पाए थे। किसी से बातचीत करते-करते वह बाहर ही रह गए।
वहीं खड़े आचार्य कृपलानी अपने साथियों से कह रहे थे, ‘देखो, इस जवाहरलाल की मति मारी गई है। इन जेल से छूटे हुए डाकुओं का कैसा स्वागत कर रहा है। गांधी यहां आकर देख ले, तो क्या बोलेंगे। मुकुंदीलाल, कृपलानी को नहीं जानते थे। सुनकर वह तमतमा गए। आस्तीनें चढ़ाते हुए वह बोले, ‘हिम्मत हो, तो फिर ऐसी भाषा बोलिए।’ वह कृपलानी की तरफ लपके, तभी लोगों की निगाहें उन पर पड़ीं और उन्हें किसी तरह संभाल लिया।
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