World AIDS Day 2023: एचआईवी संक्रमित मां ध्यान दें तो बच्चा सुरक्षित, मेडिकल कॉलेज में हर माह औसतन इतने रोगी मिल रहे एड्स ग्रस्त
कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में हर माह औसतन 50 रोगी मिल रहे एड्स ग्रस्त।
कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में हर माह औसतन 50 रोगी एड्स ग्रस्त मिल रहे। एचआईवी संक्रमित मां ध्यान दें तो बच्चा सुरक्षित होगा। शुरुआत में जानकारी होने से दवा से संक्रमण कम हो जाता।
कानपुर,[विकास कुमार]। एचआईवी पॉजिटिव शब्द सुनते ही हर किसी के होश उड़ जाते हैं। ऐसे में जब कोई गर्भवती महिला इससे पीड़ित होती है तो उसे गर्भ में मौजूद बच्चे का ख्याल सबसे पहले आता है और वह बच्चे को लेकर काफी चिंतित रहती है। मां की इस चिंता को जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के जच्चा-बच्चा अस्पताल में दूर किया जा रहा है।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के जच्चा-बच्चा अस्पताल की ओपीडी में प्रतिदिन करीब ढाई से तीन सौ महिलाएं इलाज कराने पहुंचती हैं। प्रतिदिन 25 से 30 गर्भवतियों का प्रसव किया जाता है। प्रतिमाह पांच से छह गर्भवतियां एचआईवी संक्रमित मिलती हैं। तब अस्पताल में मौजूद डॉक्टर उनको नियमित दवा का सेवन करने आदि की सलाह देतीं हैं। लापरवाही काफी घातक साबित होती है।
मेडिकल कॉलेज की मीडिया प्रभारी डॉ.सीमा द्विवेदी ने बताया कि जच्चा-बच्चा अस्पताल में करीब 15 वर्षों से कोई भी बच्चा संक्रमित नहीं जन्मा है। अगर कोई गर्भवती एचआईवी संक्रमित होती है तो उसका फॉलोअप किया जाता है। नियमित दवा के सेवन से बच्चा संक्रमित नहीं हो पाता। लोगों के जागरूक होने पर संक्रमितों की संख्या में कमी आई है।
जनवरी से अब तक मिले पांच हजार से अधिक संक्रमित
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में प्रतिमाह करीब 11 हजार लोगों की सैंपलिंग की जाती है, जिनमें कानपुर के साथ ही कन्नौज, कानपुर देहात, औरैया, फतेहपुर, हमीपुर, बांदा, फर्रूखाबाद आदि जिलों के लोग शामिल हैं। इनमें से प्रतिमाह औसतन 50 लोगों की रिपोर्ट एचआईवी पॉजिटिव आती है। इनमें 70 प्रतिशत पुरुष और 30 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। जनवरी से अब तक पांच हजार से अधिक संक्रमित मिले हैं। इसकी मुख्य वजह असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित सिरिंज का प्रयोग, संक्रमित खून व ब्लेड आदि हैं। वर्ष 2022 में करीब छह हजार और 2021 में छह हजार से ज्यादा इसके रोगी मिले थे।
दवा से मां में कम होता संक्रमण, बच्चा होता स्वस्थ
मेडिकल कॉलेज के जच्चा-अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ प्रो. उरूज जहां ने बताया कि एक माह में पांच से छह गर्भवती एचआईवी संक्रमित मिलती हैं। शुरुआती समय में जानकारी होने पर दवा के माध्यम से संक्रमण को कम किया जा सकता है। प्रसव के बाद पहले छह सप्ताह, उसके बाद तीन माह, फिर छह माह, एक साल और फिर 18 माह की अवधि में बच्चे की एचआईवी जांच की जाती है। रिपोर्ट निगेटिव आने पर बच्चा स्वस्थ्य माना जाता है। संक्रमित मां स्तनपान कराए तो बच्चा संक्रमित नहीं होता है। मां का और बाहर का दूध दोनों साथ में देने से बच्चा संक्रमित हो सकता है। इसलिए ऐसी परिस्थिति में या तो सिर्फ मां का दूध दें या सिर्फ बाहर का दूध ही बच्चे को देना उचित होता है।
दिमाग में सूजन व फेफड़ों भी दिक्कत
मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के प्रो. एसके गौतम ने बताया कि असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित सिरिंज, संक्रमित ब्लड चढ़ाने, एक ही सिरिंज अलग-अलग इस्तेमाल करने, ब्लेड व टैटू बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली सुई से भी एचआईवी का खतरा अधिक रहता है। एचआईवी संक्रमित व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वह बीमारियों की गिरफ्त में बना रहता है। संक्रमित को हेपेटाइटिस बी व सी, दिमाग में सूजन, दिल, दिमाग व फेफड़ों में दिक्कत में भी दिक्कत होने लगती है।
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