सीमा विवाद पर सहमति

सीमा विवाद पर सहमति

भूटान और चीन लंबे समय से करीब आने की कोशिश कर रहे हैं। भूटान के विदेश मंत्री थांडी दोरजी ने हाल ही में बीजिंग में चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात की। वार्ता के दौरान दोनों देश राजनयिक संबंध कायम करने की प्रक्रिया को तेज करने पर सहमत हुए। साथ ही दोनों के बीच जल्द से जल्द सीमा विवाद सुलझाने पर सहमति बनी। भारत के लिए इस घटनाक्रम के गंभीर और दूरगामी परिणाम होंगे।

दरअसल चीन और भूटान के बीच तकरीबन 477 किलोमीटर लंबी सीमा को लेकर 80 के दशक से विवाद चल रहा है। चीन पश्चिमी क्षेत्र में भूटानी क्षेत्र के एक बड़े हिस्से पर दावा करता रहा है। यह क्षेत्र सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सिलीगुड़ी कॉरिडोर के निकट है, जो भारत की मुख्य भूमि को इसके उत्तर-पूर्वी राज्यों से जोड़ता है।

यदि चीन इस क्षेत्र में कोई भी बढ़त बनाता है तो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है। ऐसे में भारत के सामने यह सवाल है कि अपने हितों की रक्षा कैसे की जाए? भूटान भारत का निकटतम पड़ोसी है और दोनों देशों के बीच खुली सीमा है। भारत के साथ भूटान मजबूत आर्थिक, रणनीतिक और सैन्य संबंध रखता है। 

भारत और भूटान के बीच 605 किलोमीटर लंबी सीमा है तथा वर्ष 1949 में हुई संधि की वज़ह से भूटान की अंतर्राष्ट्रीय, वित्तीय और रक्षा नीति पर भारत का प्रभाव रहा है। भारत की चिंता इस बात की संभावना को लेकर है कि समझौता होने के बाद, नजदीकी बढ़ने पर पश्चिमी भूटान में डोकलाम के आसपास के क्षेत्रों पर भूटान अपना दावा छोड़ देगा या शांगरी-ला के उत्तर-मध्य क्षेत्र में अपने क्षेत्रीय दावों को कम कर देगा।

विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि भूटान-चीन सीमा वार्ता पर भारत नजर रख रहा है और उम्मीद है कि बीजिंग के साथ राजनयिक संबंध स्थापित होने से पहले भूटान उसे विश्वास में लेगा, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि चीन का भूटान पर कितना दबाव है। भूटान के मंत्री की चीन यात्रा कई स्तरों पर अभूतपूर्व थी। भूटान और चीन राजनयिक संबंध नहीं रखते हैं।

उनकी यात्रा किसी भूटानी विदेश मंत्री की पहली यात्रा है। यह सही है कि भारत भूटान के साथ अपने विशेष संबंधों को देखते हुए राजनयिक संबंधों की स्थापना और सीमा समझौते पर हस्ताक्षर करने की संभावना को लेकर बहुत सतर्क रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत का लंबे समय से भरोसेमंद पड़ोसी का चीन के साथ कोई भी समझौता किसी भी तरह से भारत के हितों के खिलाफ नहीं जाएगा।