हल्द्वानी: आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस न्यायिक व्यवस्था के लिए चुनौती या मददगार पर मंथन

हल्द्वानी: आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस न्यायिक व्यवस्था के लिए चुनौती या मददगार पर मंथन

हल्द्वानी, अमृत विचार। उत्तराखंड न्यायिक एवं विधिक अकादमी (उजाला) भवाली में समसामयिक न्यायिक विकास और विधि एवं प्रौद्योगिकी से न्याय प्रणाली को सुदृढ़ करने पर दो दिवसीय सम्मेलन शुरू हुआ। इसमें क्रिप्टो करेंसी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को लेकर चुनौती और सहूलियत को लेकर मंथन हुआ। 

 शनिवार को उजाला अकादमी के सभागार में सम्मेलन का शुभारंभ राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायधीशों जस्टिस संजीव कुमार, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एस रविंद्र भट्ट, जस्टिस सुधांशु धूलिया, अटॉर्नी जनरल आर वेंकेटरमणी, राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के निदेशक सुजॉय पॉल, उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विपिन सांघी, उजाला एकेडमी के इंचार्ज जस्टिस शरद कुमार शर्मा ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। फिर सम्मेलन में आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस व नवीनतम टेक्नोलोजी का न्यायिक व्यवस्था पर प्रभाव को लेकर मंथन हुआ। 

राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के निदेशक जस्टिस सुजॉय पॉल ने कहा कि समसामयिक न्यायिक विकास एवं आईटी के प्रभाव को लेकर उत्तराखंड में पहली बार एकेडमिक  सेशन हो रहा है। इस सेशन में 8 राज्यों के वरिष्ठ व कनिष्ठ न्यायाधीश मंथन करेंगे। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विपिन सांघी ने स्वागत भाषण दिया। 
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि एक जस्टिस होने के नाते यह हमारी जिम्मेदारी है कि न्याय पारदर्शी होना चाहिए। इसके लिए दो तत्व हैं न्यायिक स्वतंत्रता और न्यायाधीशों की स्वतंत्रता। हम न्यायिक स्वतंत्रता की बात तो करते हैं लेकिन न्यायाधीशों की स्वतंत्रता के लिए कोई नहीं देखता है।

उन्होंने कहा कि नियम बनाना और लागू करने में कोई कारण नहीं देना होता है लेकिन यदि कोई न्यायाधीश आदेश करता है तो उसको इसके पीछे कारण देने होते हैं। इसलिए न्यायिक व्यवस्था को स्वतंत्र होना जरूरी है। आज साइबर क्राइम, पर्यावरण सुरक्षा, महिला हिंसा कई मामलों में अदालतें अच्छा काम कर रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था में बदलाव हो रहे हैं। हमें तकनीकी को सिस्टम सुधारने और पारदर्शी बनाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। हां, न्याय करते समय दिल और दिमाग का एक होना चाहिए है। इसमें तकनीकी कुछ  नहीं कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ कई हाईकोर्ट, न्यायाधिकरण भी नई तकनीकियां अपना रहे हैं। भारतीय न्यायिक व्यवस्था भी नई तकनीकी की चुनौतियों को लेते हुए काम कर रही है।

इस दौरान जस्टिस मनोज तिवारी, जस्टिस आलोक वर्मा, जस्टिस पंकज पुरोहित, जस्टिस विवेक भारती शर्मा, रजिस्ट्रार जनरल अनुज सांगल, उजाला निदेशक हरीश कुमार आदि मौजूद रहे।

एआई जीवन नियंत्रित करेगा, इसको समय रहते रोकने की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि यदि तकनीकी को न्यायिक व्यवस्था में लाते हैं तो पारदर्शिता बढ़ेगी। उत्तराखंड जैसे इलाके में जहां दूरस्थ क्षेत्र के मुवक्किल परेशान रहते हैं, तकनीकी प्रभावी होने से उन्हें मदद मिलेगी। सिस्टम में काम नहीं करने वालों को प्रोटेक्शन है लेकिन तकनीकी के समय में ऐसा नहीं हो सकता है।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट विधिक अनुवादक सॉफ्टवेयर है, इसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश स्थानीय भाषाओं में ट्रांसलेट होते हैं इससे आम मुवक्किल जो अंग्रेजी नहीं जानता है उसको लाभ मिलेगा। जस्टिस ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एक बड़ा खतरा है। एक एक्सपर्ट का कहना है कि एआई के जरिए नया संगीत, नई तस्वीरें, नई अवाज बना देते हैं।

एआई के जरिए बीमार को भी ठीक किया जा सकता है लेकिन एआई धीरे-धीरे इंसान के जीवन को नियंत्रित करने लगा है। यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो नुकसान होगा। यह एक शिप ऑफ एलियंस के हमले की तरह है जो अवसर की आड़ में हमला करने की फिराक में है। इसके बारे में ध्यान से सोचने ओर समझदारी से निकलने की जरूरत है। 

तकनीकी को टूल की तरह इस्तेमाल करना है, मास्टर नहीं बनाना 
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस एस अरविंद भट्ट ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता होनी चाहिए। हम न्यायिक स्वतंत्रता की बात करते हैं तो पारदर्शी इंसाफ होगा। वर्तमान में वैश्वीकरण और तकनीकी क्रांति का दौर है। सोशल मीडिया तेजी से प्रभावी हो रहा है। ऐसे में न्यायिक व्यवस्था में तकनीकी को टूल की तरह इस्तेमाल करना है, इसे मास्टर नहीं बनने देना है। यदि तकनीक हावी होगी तो हम उनके वश में रहेंगे जो सही नहीं है।

आज तीन सेशन में होगा कार्यक्रम
न्यायिक अधिकारियों के अनुसार, आज भी तीन सेशन में कार्यक्रम होंगे। इसमें क्रिप्टो करेंसी, साइबर क्राइम, आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस आदि को लेकर गहन मंथन होगा ताकि न्यायिक व्यवस्था प्रभावित नहीं होकर सुदृढ़ हो। शाम को सम्मेलन का समापन हो जाएगा। 

 इन राज्यों के जस्टिस हुए शामिल 
दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, चंड़ीगढ़, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 140 जस्टिस शामिल हुए।