आरोपपत्र दाखिल होने के बाद भी जांच स्थानांतरित के लिए संबंधित अदालत की अनुमति आवश्यक नहीं : HC

आरोपपत्र दाखिल होने के बाद भी जांच स्थानांतरित के लिए संबंधित अदालत की अनुमति आवश्यक नहीं : HC

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की जांच दूसरे थाने की पुलिस को स्थानांतरित करने के संबंध में कहा कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद भी किसी मामले की जांच दूसरे थाने की पुलिस को स्थानांतरित की जा सकती है। इसके लिए संबंधित अदालत से अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति उमेश चंद्र शर्मा की एकलपीठ ने राम कोमल व दो अन्य के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत देवरिया में जिला अदालत के समक्ष लंबित कार्रवाई को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दाखिल आवेदन को खारिज करते हुए पारित किया। 

कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि कोर्ट द्वारा किसी भी अपराध का संज्ञान लेने के बाद भी पहले प्रस्तुत की गई पुलिस रिपोर्ट के आधार पर पुलिस मामले में आगे की जांच करने के लिए स्वतंत्र है। तथ्यों के अनुसार पहले बनकटा थाना के थानाध्यक्ष ने मौजूदा मामले की जांच कर पांच लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था, जिस पर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान ले लिया था। बाद में शिकायतकर्ता द्वारा मामले को बनकटा से पुलिस स्टेशन कोतवाली, सलेमपुर में स्थानांतरित करने के लिए एसपी, देवरिया के समक्ष आवेदन दाखिल किया गया। 

दरअसल आरोप लगाया गया कि बनकटा में मामले की जांच ठीक से नहीं की जा रही है। आवेदन को अनुमति देते हुए पुनः जांच के आदेश पारित किए गए। कोतवाली, सलेमपुर के एसआई ने दोबारा जांच की और आवेदकों सहित आठ लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया, जिस पर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया। आरोपी ने इससे व्यथित होकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर आरोप लगाया कि जांच स्थानांतरित करने से पहले एसपी द्वारा कोई अनुमति नहीं मांगी गई जबकि ऐसे मामलों में अनुमति लेना आवश्यक है। इस पर कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अगर किसी मामले में आगे की जांच की आवश्यकता है तो वह निर्धारित कानून के अनुसार की जा सकती है और इसके लिए संबंधित अदालत से अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। 

कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर संज्ञान के दौरान मुकदमे की जांच में कोई खामी सामने आती है तो परिस्थितियों की अनुमति होने पर इस खामी को आगे की जांच से दूर किया जा सकता है। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकला कि जांच ट्रांसफर करने के लिए संबंधित अदालत की कोई औपचारिक अनुमति आवश्यक नहीं है।

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