प्रयागराज : न्यू कानपुर सिटी के लिए अधिगृहित भूमि के मामले में प्राधिकरण से जवाब तलब

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यू कानपुर सिटी के विकास मामले में आवासीय कॉलोनियों के लिए वर्ष 1996 में जारी अधिसूचना के माध्यम से प्राधिकरण द्वारा अधिगृहित भूमि पर कानपुर विकास प्राधिकरण की निष्क्रियता के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका को आगामी 16 अक्टूबर 2023 को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है। न्यू कानपुर सिटी के विकास के लिए दिनांक 9 अगस्त 1996 को जारी अधिसूचना के माध्यम से सात गांवों से 464.6965 हेक्टेयर भूमि अधिगृहित की जानी थी। उक्त अधिग्रहण को विभिन्न व्यक्तियों द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई, जिससे 1999 में अधिसूचनाओं को रद्द कर दिया।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विशेष अनुमति याचिकाओं में भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1984 की धारा 6 के तहत अधिसूचनाओं के कुछ हिस्सों को रद्द कर दिया गया और धारा 5 ए के तहत याचियों को एक नया अवसर दिया गया।विशेष अपील के लंबित रहने के दौरान भूमि मालिकों को मुआवजा के लिए धन उपलब्ध कराने के लिए कानपुर विकास प्राधिकरण से कई अनुरोध किए गए। परिणामस्वरुप 2005 में अधिनियम की धारा 6 के तहत नई घोषणाएं जारी की गई, जिसमें नामकरण को न्यू कानपुर सिटी से बदलकर कानपुर विकास प्राधिकरण की आवासीय कॉलोनी कर दिया गया। इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई और उन अधिसूचनाओं को रद्द कर दिया गया, जिनके संबंध में याचिकाएं दाखिल की गईं थीं ।
इसके बाद नई अधिसूचनाएं जारी की गई। याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय और शीर्ष न्यायालय के समक्ष लंबित कार्यवाही के दौरान यथास्थिति आदेश लागू था। न्यू कानपुर सिटी योजना के तहत 7 गांवों का अधिग्रहण करने की मांग की गई थी, जिसे गैरकानूनी और मनमाने ढंग से कानपुर विकास प्राधिकरण की आवासीय कॉलोनी में बदल दिया गया और कुल 464.6965 हेक्टेयर में से 111.8468 हेक्टेयर भूमि पर अवैध कब्जा कर लिया गया। शेष भूमि के संबंध में बताया गया कि वह निजी व्यक्तियों के कब्जे में है, जिन पर उनके द्वारा निर्माण किए गए हैं। इसके अलावा याची के अधिवक्ता ने बताया कि राज्य सरकार ने नए कानपुर शहर के निर्माण और कानपुर विकास के लिए आवासीय कॉलोनी स्थापित करने की योजना के साथ कार्यवाही के लिए कानपुर विकास प्राधिकरण के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।
कानपुर विकास प्राधिकरण 111.8468 हेक्टेयर भूमि के कब्जे में होने पर सहमत हुआ। हालांकि प्राधिकरण के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से बताया कि चूंकि प्राधिकरण के कब्जे में जमीन बिखरी हुई थी। अतः योजना को व्यवहार्य बनाने के लिए किराएदार धारकों से बातचीत की जा रही है। इस पर कोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद कहा कि विपक्षी विकास प्राधिकरण के पास भूमि का केवल एक हिस्सा है और प्रस्तावित नई कानपुर सिटी की योजना अभी व्यवहार्य नहीं है । मामले में पारित आदेश यथास्थिति बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की और मामले में प्राधिकरण को चार हफ्तों के भीतर जवाब लगाने के लिए कहा है और प्रत्युत्तर हलफनामा दाखिल करने के लिए याची को उसके दो हफ्ते बाद का समय दिया है। उक्त आदेश मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की खंडपीठ ने प्रांतेश नारायण बाजपेयी की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया।
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