AIPEF ने पीएम मोदी से बिजली संशोधन बिल में जल्दबाजी न करने की अपील की

जालंधर। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय बिजली मंत्री आर के सिंह से अपील की है कि बिजली संशोधन विधेयक 2022, जिसे ऊर्जा पर स्थायी समिति को भेजा गया था, को 20 जुलाई से शुरू होने वाले आगामी मानसून सत्र में संसद में पेश नहीं किया जाना चाहिए।
यह निर्णय बेंगलुरु में आज आयोजित संघीय परिषद की बैठक में लिया गया, जिसकी अध्यक्षता शैलेन्द्र दुबे ने की। इसमें उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश एवं अन्य राज्य.के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
दुबे ने कहा कि हालांकि लोकसभा ने बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 को ऊर्जा संबंधी स्थायी समिति को भेज दिया है, लेकिन आज तक स्थायी समिति ने बिजली कर्मचारियों या बिजली उपभोक्ताओं, जो सबसे बड़े हितधारक हैं, के साथ कोई चर्चा नहीं की है।
यदि यह विधेयक अधिनियमित हो जाता है, तो कुछ निजी कंपनियां देश की अधिकांश बिजली वितरण उपयोगिताओं को नियंत्रित कर लेंगी। उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा बिजली अधिनियम में किए जा रहे संशोधनों से बिजली क्षेत्र का निजीकरण हो जाएगा और गरीबों, मध्यम वर्ग और किसानों पर भारी टैरिफ वृद्धि का बोझ पड़ेगा।
एआईपीईएफ के प्रवक्ता वी के गुप्ता ने बताया कि बैठक में बिजली संशोधन विधेयक 2022 को वापस लेने की मांग की गई, राज्य डिस्कॉम ट्रांसमिशन नेटवर्क का उपयोग करके बिजली वितरण में समानांतर लाइसेंस के प्रस्ताव का विरोध किया गया, और कुछ राज्य में बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों द्वारा चल रहे आंदोलन का समर्थन किया गया।
बिजली क्षेत्र में निजीकरण के खिलाफ हैं। अगर बिल संसद में पेश किया गया तो लाखों कर्मचारी तुरंत विरोध करेंगे। दुबे ने कहा कि मल्टीपल लाइसेंसधारियों के प्रस्ताव से बिजली क्षेत्र में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं आएगी।
निजी कंपनियां बिना किसी निवेश के राज्य डिस्कॉम के बुनियादी ढांचे का उपयोग करेंगी और केवल लाभ कमाएंगी। बिजली आपूर्ति का बड़ा हिस्सा बिजली खरीद लागत है जो आपूर्ति लागत का 80 प्रतिशत है तो सस्ती बिजली की अवधारणा आम उपभोक्ताओं को केवल बेवकूफ बना रही है।
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