Bareilly: बसपा होने की राह पर सपा... पाया कम गंवाया ज्यादा
मंडल भर में निकाय चुनाव के दौरान कई दशकों के सर्वाधिक दयनीय प्रदर्शन, कार्यकर्ताओं-नेताओं के चेहरों पर दिख रहा है असर
सुरेश पांडेय , बरेली। कभी संघर्ष करने वाली पार्टी कही जाने वाली सपा भी अब बसपा की राह पर चल पड़ी है। मंडल भर में विधानसभा और पंचायत चुनाव के बाद निकाय चुनाव में भी उसके हाथ कुछ खास नहीं लगा।निकाय चुनाव के लगभग सभी पदों पर इस पार्टी ने पाया कम और गंवाया ज्यादा। सियासी जमीन में सपा की जड़ें कितनी कमजोर हो चुकी हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शाहजहांपुर नगर निगम को पहले ही चुनाव में वह एक भी पार्षद नहीं दे पाई।
बरेली और शाहजहांपुर नगर निगम के मेयर छोड़कर बदायूं, पीलीभीत समेत चारों जिलों में नगर पालिका और नगर पंचायत के अध्यक्ष और पार्षदों के 201 पदों के लिए चुनाव हुआ था। इनमें से सपा को 19 सीटों पर ही कामयाबी मिली है। इनमें से 13 पार्षद अकेले बरेली नगर निगम के लिए चुने गए हैं। यानी बाकी तीन जिलों के निकायों में 188 सीटों में से सिर्फ छह सीटें ही उसके हाथ आईं। पार्टी के नेता खुद मानते हैं कि इतना दयनीय प्रदर्शन समाजवादी पार्टी ने यूपी में पहली बार सरकार बनाने के बाद पहले कभी नहीं किया।
बदायूं और शाहजहांपुर को कभी सपा का गढ़ माना जाता था लेकिन इन दोनों जिलों में भी उसने तमाम सीटें गंवा दीं, जिन सीटों पर कामयाबी हासिल की, वह उसके पिछले वर्चस्व से काफी कम है। चूंकि मंडल के दो नगर निगमों को छोड़कर बाकी सभी निकायों में बैलेट पेपर से चुनाव हुआ है, इस कारण समाजवादी पार्टी ईवीएम को भी दोष देने की स्थिति में नहीं है। वोटों की गिनती साफ तौर पर उसके कम होते जनाधार की ओर इशारा कर रही है। समाजवादी पार्टी के ही नेता इसे अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनाव के लिए बेहद कमजोर स्थिति मान रहे हैं।
शाहजहांपुर में बना इतिहास, नगर निगम के पहले चुनाव में सपा का एक भी पार्षद नहीं
शाहजहांपुर में नगर निगम बनने के बाद इस बार पहला चुनाव हुआ। यह चुनाव आगे इस बात के लिए जाना जाएगा कि पार्षदों की 60 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद समाजवादी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। मेयर पद पर भी भाजपा की अर्चना वर्मा जीती हैं जिन्होंने समाजवादी पार्टी से अपना टिकट घोषित होने के बाद ऐन मौके पर पार्टी बदल ली थी।
नगर पंचायत अध्यक्ष के आठ पदों में से सपा एक पर भी नहीं जीती। पिछली बार इकलौता कांट नगर पंचायत अध्यक्ष का पद उसके पास था जिसे इस बार कांग्रेस ने छीन लिया। जलालाबाद नगर पालिका अध्यक्ष की सीट जरूर सपा ने भाजपा से छीनी है। तिलहर नगर पालिका में भी कब्जा बरकरार रखा है। पुवायां नगर पालिका के चुनाव में 2017 में सपा के गोपाल अग्निहोत्री तीसरे नंबर पर रहे थे। इस बार सपा समर्थित प्रत्याशी के तौर पर दूसरे स्थान पर रहे। उनका मत प्रतिशत 7.76 से बढ़कर 19.94 प्रतिशत पर पहुंच गया जो कुछ हद तक आंसू पोंछने लायक माना जा सकता है।
अपने सबसे बड़े गढ़ में शुमार बदायूं में समाजवादियों ने पांच सीटें गंवाईं
मंडल में बदायूं की पहचान कुछ साल पहले तक सपा के सबसे बड़े गढ़ के तौर पर होती थी लेकिन अब यहां भी उसका वर्चस्व लगातार कम हो रहा है। इस चुनाव में जिलाध्यक्ष और पूर्व जिलाध्यक्ष ने अलग-अलग धड़ों में बंटकर प्रत्याशियों के चुनाव अभियान की कमान हाथ में ले रखी थी। इस कारण पूरे चुनाव का बंटाधार हो गया। 2017 के चुनाव में सपा ककराला, बिसौली और उझानी के नगर पालिका अध्यक्ष पद पर काबिज हुई थी लेकिन इस बार गुटबाजी ने उसे तीनों सीटों से साफ कर दिया। सखानू और रुदायन नगर पंचायत से भी सपा साफ हो गई।
पीलीभीत नगर पालिका अध्यक्ष पद के चुनाव में सपा प्रत्याशी सातवें नंबर पर
पीलीभीत में 2017 में हुए नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव सपा के नूर अंसारी ने जीता था। इस बार यह सीट महिला के लिए आरक्षित होने के बाद सपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो उन्होंने अपनी पत्नी को बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतार दिया और तीसरे स्थान पर रहे।
सपा ने यहां शबनम बेगम को टिकट दिया था जो सातवें स्थान पर रहीं। शबनम को मिले सिर्फ 1260 वोटों ने पीलीभीत शहर में सपा की दुर्दशा को भी साफ बयां कर दिया। यहां भाजपा जीती है। 2017 में बरखेड़ा और गुलडि़या भिंडारा नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर भी सपा के प्रत्याशी जीते थे लेकिन इस चुनाव में सपा इन दोनों सीटों पर भी कब्जा बरकरार नहीं रख पाई।
बरेली में सिरौली, मीरगंज, सेंथल, ठिरिया निजावत खां और शेरगढ़ नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर सपा का कब्जा था, इस बार पार्टी ने ये सारी सीटें गंवा दीं। सिर्फ सेंथल में उसका कब्जा बरकरार रहा है, इसके अलावा शीशगढ़ नगर पंचायत में भी उसका प्रत्याशी जीता है।
फरीदपुर नगर पालिका सीट जरूर भाजपा के पास थी, जिस पर सपा के शराफत विजयी हुए हैं। हालांकि शराफत के टिकट को लेकर नामांकन के अंतिम दिन तक असमंजस बना रहा था। आंवला सीट भी सपा के आबिद अली ने भाजपा से छीनी है। बरेली नगर निगम में 2017 में सपा के 26 वार्डों में पार्षद जीते थे। बाद में कुछ निर्दलीय शामिल हुए थे तो पार्टी के पार्षदों की संख्या 31 हो गई थी। इस बार यह संख्या घटकर 13 रह गई है।
चुनाव में हार की वजह नेताओं का प्रदर्शन ठीक न होने के अलावा और क्या हो सकती है। हर स्तर पर कमी हुई है। इसी का असर चुनाव के नतीजों पर दिख रहा है--- भगवत सरन गंगवार, पूर्व मंत्री व शाहजहांपुर में सपा के प्रभारी
हार के ये कारण चर्चा में
1- समाजवादी पार्टी के नेतृत्व का संगठन तैयार करने को लेकर बेपरवाह रहना, अनुशासनहीनता और कार्यकर्ताओं के असंतोष की भी अनदेखी करना।
2- नेताओं की आपसी कलह, फैसले लेने में देरी, राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से जमीनी स्तर पर काम करने में बरती गई कोताही का जिले के नेताओं का अनुसरण करना।
3- निकाय चुनाव में जीतने के लिए समितियां और जिलों के प्रभारी बनाए गए थे जिनके नेतृत्व में टिकट वितरण हुआ लेकिन पार्टी में निष्पक्षता न रखने के आरोप लगते रहे।
4- टिकट वितरण में मनमानी, कार्यकर्ताओं की नाराजगी, प्रभारी नेताओं के गैरजिम्मेदाराना रवैये से कार्यकर्ताओं में असंतोष। कई कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो गए।
5- निकाय चुनाव में दमदार प्रत्याशियों के बजाय चहेतों को टिकट देने के आरोप लगे। इससे जुझारू कार्यकर्ता छिटक गए। पार्षद के टिकट के लिए एम टॉनिक की मांग करने का एक ऑडियो काफी चर्चित रहा।
सपा के प्रभारी नहीं... ''हाईवे''
राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से बरेली के प्रभारी बनाए गए विधायकों पर भी जिम्मेदारी न निभाने के कारण लगातार सवाल उठते रहे। एक प्रभारी का नाम तो बरेली के कार्यकर्ताओं में ''हाईवे'' तक पड़ गया। दरअसल यह प्रभारी बरेली से गुजरते समय दिल्ली हाईवे के एक ढाबे पर पार्टी के लोगों को बुलाकर दिशा-निर्देश देते रहे। बरेली के नेता भी हाईवे पर ही उनका स्वागत करते रहे।
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