हिमाचल प्रदेश: चार विधायकों ने प्रदेश हित में छोड़ी सरकारी सुविधा

हिमाचल प्रदेश: चार विधायकों ने प्रदेश हित में छोड़ी सरकारी सुविधा

शिमला। हिमाचल प्रदेश के चार विधायकों ने सरकारी सुविधा को दर किनार कर दिया। इन विधायकों में संजय अवस्थी, राजेश धर्माणी, विनोद सुल्तानपुरी और इनके अलावा भाजपा के शीर्ष व तेज तर्रार नेता डॉ. राजीव बिंदल को हराकर पहली बार नाहन के विधायक बने अजय सोलंकी शामिल हैं जिन्होंने पीएसओ लेने से इनकार किया है। इन्होंने सरकारी खर्च बचाने के उद्देश्य से पी.एस.ओ न लेने की घोषणा की है।

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स्मरण रहे संजय अवस्थी मुख्य संसदीय सचिव भी हैं। उनके इस निर्णय की जम-कर प्रशंसा की जा रही है। दुखद तथ्य हालांकि, यह है कि ऐसे प्रशंसनीय कदम जिसको जनसमर्थन मिलना चाहिए वह मिलता नहीं है। सोलन जिला से पहले भी मोहिन्द्र नाथ सोफत ने भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में बतौर मंत्री मिलने वाली कोठी लेने से इंकार करते हुए दो कमरो के फ्लैट में ही रहने को प्राथमिकता दी थी और कोई कर्मचारी भी नहीं रखा था।

खैर अब देखना ये होगा की और कितने कांग्रेस या भाजपा के विधायक इन तीन विधायकों का अनुकरण करते हैं। गौरतलब है कि ये तीनों नेता सत्तारूढ़ दल कांग्रेस से संबंधित है और इनका यह निर्णय ऐसे समय पर आया है जब प्रदेश भारी कर्ज और खर्च के दबाव में है। उनके इस निर्णय से दोहरा फायदा होगा, पहला खर्च मे कटौती होगी और दूसरा उन स्थानों पर स्टाफ मिल सकेगा, जहां पर पद खाली चल रहे हैं।

इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने भी अपने साथ चलने वाली पुलिस एस्कोर्ट लौटाकर अनुकरणीय उदाहरण पेश किया था। उस समय भी सोशल नेटवर्किंग पर अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों से शांता का अनुकरण करने की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन उस समय उम्मीद करने वालों के हाथ निराशा ही लगी थी। उल्लेखनीय है कि 1992 तक किसी भी विधायक को पी.एस.ओ नहीं दिया जाता था।

वर्तमान मे हिमाचल सरकार को हर तरह की फिजूल खर्ची रोकने की जरूरत है। नई कांग्रेस सरकार भी पिछली सरकार की तर्ज पर कर्ज लेने शुरू कर दिए हैं। अब तक 1500 करोड़ का कर्ज लिया जा चुका है और 2000 करोड़ लिया जा रहा है। ऐसी स्थिति में इन तीनो विधायकों द्वारा लिए गए इस सार्थक निर्णय का समर्थन सभी को करना चाहिए और इन्हे इस सार्थक पहल की हार्दिक बधाई देनी चाहिए।

पूर्व सरकार में मंत्री रहे मंत्री मोहिन्द्र नाथ सोफत ने इन चारों विधायकों को साधुवाद दिया है और पाठकों से अपील की है कि दिल खोलकर इन विधायकों के इस कदम का समर्थन करें। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि हिमाचल प्रदेश में पुलिस विभाग हमेशा ही कानून व ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर स्टाफ की कमी की दुहाई देता है।

ऐसे में अगर सभी विधायक सुरक्षा कर्मी लेने से इनकार करते हैं तो न केवल सरकारी खर्च बचता है, बल्कि इन कर्मचारियों की तैनाती रूटीन पुलिसिंग में कानून व व्यवस्था बनाए रखने के लिए की जा सकती है।

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