कला, संस्कृति को जन-जन तक पहुंचाने में मीडिया की भी बड़ी भूमिका हैः प्रकाश सिन्हा

कला, संस्कृति को जन-जन तक पहुंचाने में मीडिया की भी बड़ी भूमिका हैः प्रकाश सिन्हा

नई दिल्ली। साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता नाटककार और पूर्व भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी ‘पद्मश्री’ दया प्रकाश सिन्हा ने कहा है कि आज के दौर में कला एवं संस्कृति क्षेत्र की घटनाओं को जनमानस तक पहुंचाने में मीडियाकर्मियों की भूमिका महत्वपूर्ण है और इस काम में लगे पत्रकारों को इस काम में विशेषज्ञता हासिल करना जरूरी है।

सिन्हा राष्ट्रीय राजधानी में स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के मीडिया सेंटर और कलानिधि प्रभाग द्वारा आयोजित ‘कला एवं संस्कृति रिपोर्टिंग’ पर तीन दिवसीय वर्कशॉप के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे। यह कार्यक्रम तीन दिन तक चला।

सप्ताहांत आयोजित समापन समारोह के मुख्य अतिथि सिन्हा ने संत कवि कबीरदास के दोहे “कबिरा खड़ा बाज़ार में ये लुकाठी हाथ/ जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ…” को उद्धृत करते हुए कहा कि रंगकर्मी, पेंटर, सभी कलाओं से जुड़े लोगों को खुद को जलाना पड़ता है, तब कला की परिपूर्ण साधना होती है। उन्होंने भारत में थियेटर के इतिहास का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए कहा कि उत्तर भारत के हिन्दी समाज में नाट्य क्षेत्र में करीब 700-800 साल तक गतिविधियां शून्य थीं।

उन्होंने कहा कि हिंदी समाज में पुनः 20वीं सदी में हिन्दी थियेटर का कुछ विकास हुआ। आजादी के बाद 1952 में पृथ्वीराज कपूर ने ‘पृथ्वी थियेटर्स’ की स्थापना की, उसके बाद हिन्दी थियेटर को लेकर लोगों में कुछ चेतना आई और हिन्दी थियेटर अपने समाज से उस तरह नहीं जुड़ पाया, जैसा बंगला और मराठी थियेटर में देखने को मिलता है।

इस कार्यक्रम में आईजीएनसीए के कलानिधि प्रभाग के विभागाध्यक्ष एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक प्रो रमेश चंद्र गौड़ ने कहा, “ हमारी यह कोशिश है कि इस वर्कशॉप के माध्यम से एक संवाद शुरू किया जाए। आमतौर पर, कला की रिपोर्टिंग एक सामान्य रिपोर्टिंग बनकर रह जाती है, ऐसे में कला की खासियतें लोगों तक नहीं पहुंच पातीं। यह वर्कशॉप शुरुआत है, हम आगे विचार कर सकते हैं कि कला और संस्कृति की रिपोर्टिंग की बेहतरी कैसे हो सकती है?”

वर्कशॉप के तीसरे दिन की शुरुआत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा निर्मित और दीपक चतुर्वेदी द्वारा निर्देशित शॉर्ट फिल्म ‘काशी पवित्र भूगोल’ की स्क्रीनिंग से हुई, जिसके बाद, आईआईएमसी की प्रोफेसर अनुभूति यादव ने -‘डिजिटल टूल्स फॉर कल्चरल कम्यूनिकेशन’ विषय पर, पीआईबी की अतिरिक्त महानिदेशक नानू भसीन ने ‘कला और संस्कृति रिपोर्टिंग में पीआईबी की भूमिका’ पर और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘कू’ की पॉलिसी डायरेक्टर नियति तथा केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की स्वायत्त संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ के वैज्ञानिक निमिष कपूर ने भी अपने विचार प्रकट किए।

इस तीन दिवसीय वर्कशॉप में कुल 12 सत्र आयोजित किए गए। इनमें कला एवं संस्कृति रिपोर्टिंग से जुड़े विभिन्न विषयों पर वरिष्ठ कवि एवं कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल, वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार विनोद भारद्वाज, वरिष्ठ पत्रकार और पांचजन्य साप्ताहिक के संपादक हितेश शंकर, वरिष्ठ कला समीक्षक अनिल गोयल आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।

यह भी पढ़ें- साहित्य अकादमी की समितियों में आठ साहित्यकार सदस्य मनोनीत 

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