हल्द्वानी: शिव जी की दक्षिण भारतीय प्रेम कथा

हल्द्वानी, अमृत विचार। दक्षिण भारत भाग के गावं में रहती थी पुण्यकशी, जिन्हें भविष्य देखने की दैव्य शक्ति प्रदान थी। वह महादेव के प्यार विलीन थी और उन्हीं से शादी करना चाहती थी। शिव जी उनकी अनुराग की गहनता देख बहुत प्रसन्न हुए और उनसे शादी कर उनके प्यार को विनिमय करने का फैसला किया।
जिस समाज में पुण्यकशी रहती थी वहां के लोग डर गए थे की अगर पुण्यकशी का विवाह शिव जी से हो जाता है तो उनका एक मात्र मार्गदर्शी उनसे छिन जाएगा और भविष्य में उनकी रक्षा कौन करेगा? इसलिए उन्होंने शिव जी से अनुरोध किया वी वह पुण्यकशी से विवाह करने का निर्णय बदल लें। लेकिन महादेव अपने फैसले से हिलने के लिए तैयार नहीं थे।
शिव जी की अडिगता देख कर गावं वालों ने उनके सामने एक शर्त रखी और कहा कि दूसरे दिन के सूर्योदय से पहले उन्हें पुण्यकशी के साथ विवाह रचाना होगा। शिव जी ने शर्त स्वीकार करी और अपने कदम कैलाश पर्वत से दक्षिण भारत की ओर बड़ाने लगे।
अचानक उनको दूर-दराज के गावं में उजाला सा दिखने लगा और ऐसा प्रतीत हो रहा था की सूर्योदय हो चुका है। महादेव हताश हो गए और उनके कदमों ने आगे बड़ने से इनकार कर दिया। लेकिन वह सूर्योदय नहीं था बल्कि गावं वालों द्वारा रचाया गया एक क्षदयंत्र था। शिव जी को भ्रमित करने के लिए कपूर का पहाड़ जला गया था।
जब वास्तव में सूर्योदय हुआ तो पुण्यकशी को लगा इस जन्म में उनकी शादी शिव जी के साथ नहीं हो पाएगी। पुण्यकशी गुस्से में दौड़ते हुए दक्षिण भारत के सिरे में पहुंच गई। एक सफल योगिनी होने के नाते पुण्यकशी ने चंद क्षण में अपना शरीर त्याग दिया।
आज भी वहां पर एक मंदिर स्थित है जो कन्याकुमारी के नाम से प्रसिद्ध है।
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