सदियों की परम्परा : औरंगजेब ने की थी चित्रकूट में गधा मेला की शुरुआत

अमृत विचार, चित्रकूट। प्राचीन परंपराओं की बात निराली है। हर परंपरा के पीछे कोई न कोई कहानी छिपी होती है। ऐसी ही एक परंपरा है तीर्थक्षेत्र में लगने वाले गधे मेले की। दीपावली के दूसरे दिन लगने वाले इस मेले में आसपास के ही नहीं, दूरदराज के पशुपालक गधों और खच्चरों की खरीदफरोख्त के लिए …
अमृत विचार, चित्रकूट। प्राचीन परंपराओं की बात निराली है। हर परंपरा के पीछे कोई न कोई कहानी छिपी होती है। ऐसी ही एक परंपरा है तीर्थक्षेत्र में लगने वाले गधे मेले की। दीपावली के दूसरे दिन लगने वाले इस मेले में आसपास के ही नहीं, दूरदराज के पशुपालक गधों और खच्चरों की खरीदफरोख्त के लिए आते हैं।
मान्यता है कि मुगल शासक औरंगजेब जब चित्रकूट पहुंचा तो रसद और असलहे ढोने वाले गधे और खच्चर बीमार पड़ने लगे और इनकी कमी होने लगी। इस पर किसी ने उसको सलाह दी कि यहां पर गधों का मेला लगाया जाए और मनमाफिक गधे और खच्चर खरीद लिए जाएं।
इसके बाद से यहां खच्चरों और गधों का मेला लगने लगा। दीपावली के दूसरे दिन से लगने वाले इस लगभग तीन दिवसीय मेले में लाख रुपये तक के जानवर बिक जाते हैं। उम्दा नस्ल के जानवर यहां बैचने और खरीदने लोग आते हैं।
व्यवस्थाओं की कमी से दिक्कत
मंदाकिनी नदी के दूसरे छोर पर लगने वाले इस मेले में शासन-प्रशासन की उपेक्षा साफ नजर आती है। सुरक्षा, पेयजल, छांव आदि की कमी को झेलते पशुपालक यहां आने में अब संकोच करने लगे हैं। सबसे ज्यादा परेशानी सफाई की है। गधा व्यापारी बताते हैं कि सुरक्षा की कमी से कभी भी कोई घटना घटने की आशंका रहती है। ठेकेदार द्वारा खूंटा बांधने के नाम पर पैसा लिया जाता है।
रोचक होते हैं गधों के नाम
ज्यादातर गधों और खच्चरों के नाम बहुत रोचक होते हैं। फिल्मी सितारों के नाम पर इनके नाम रखे जाते हैं। इस बार भी सलमान, शाहरुख आदि नामों के मवेशी मेले में आए। छोटका, बड़का, दिलावर, साथी, मितवा, बंटोला जैसे भी नाम होते हैं। पिछली बार एक गधा जहां एक लाख में बिका था वहीं इस बार सबसे ज्यादा महंगे जानवर की कीमत लगभग सत्तर हजार रही।
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