बरेली: चकबंदी की प्रक्रिया में उलझे किसान, जिम्मेदार नहीं दे रहे ध्यान

अनुपम सिंह/बरेली, अमृत विचार। जिले में चकबंदी की प्रक्रिया से गुजरने वाले किसानों के सामने मुश्किलों का पहाड़ खड़ा हो गया है। उनके खेतों की चकबंदी तो हो गई, लेकिन उसके बाद खड़ी हुईं तमाम तरह की समस्याओं के फेर में किसान बुरी तरह से फंस गए हैं। किसी की जमीन चकबंदी में दो बीघा …

अनुपम सिंह/बरेली, अमृत विचार। जिले में चकबंदी की प्रक्रिया से गुजरने वाले किसानों के सामने मुश्किलों का पहाड़ खड़ा हो गया है। उनके खेतों की चकबंदी तो हो गई, लेकिन उसके बाद खड़ी हुईं तमाम तरह की समस्याओं के फेर में किसान बुरी तरह से फंस गए हैं। किसी की जमीन चकबंदी में दो बीघा तो किसी का नंबर ही दूसरे के नंबर पर चढ़ गया है। कोई छह माह से तो कोई एक साल से इन समस्याओं को दूर कराने के लिए खेतों को छोड़कर अफसरों के दफ्तर की दौड़ लगा रहा है।

दरअसल, चकबंदी एक प्रक्रिया है। लंबे समय बाद यह होती है, इसमें किसानों की जमीन नापजोख होती है, लेकिन चकबंदी के कानूनी दांव-पेच में किसान इस तरह से फंस गए हैं कि वे निकल नहीं पा रहे हैं। इसके पीछे जिम्मेदारों की अनदेखी कहीं न कहीं एक बड़ी वजह बन रही है। किसान अपनी समस्या के समाधान के लिए काम- धंधे छोड़कर जिला मुख्यालय स्थित कलेक्ट्रेट सभागार के पीछे चकबंदी दफ्तर में आ रहे हैं, लेकिन यहां आने के बाद समस्या के समाधान की बात तो दूर किसानों का दर्द और बढ़ जाता है। उनकी दिक्कतें तो दूर नहीं हो पाती है, लेकिन बदले में एक नई तारीख और मिल जाती है।

समस्या के समाधान की उम्मीद लेकर आने वाले किसान व्यवस्था की खामियों को कोसते हुए दफ्तर से घर चले जाते हैं। समस्या को दूर करने के लिए किसानों की ओर से लगाई जा रही यह कसरत कोई एक, दो दिन या फिर महीनों की नहीं है बल्कि वर्षों से जारी है, लेकिन ताज्जुब की बात है कि समस्या आज भी समाधान की राह तक रही है। लंबी दूरी तय कर चकबंदी दफ्तर पहुंचने पर किसानों को कहीं फाइल न होने तो कहीं लेखपाल न होने की वजह बताकर वापस कर दिया जाता है। ऐसे में इस सिस्टम से किसान थक चुके हैं। परेशान हो चुके हैं।

भागदौड़ में कई दुश्वारियां झेलते हैं किसान
किसान का मतलब ही खेती है। वह उसी में समर्पित रहते हैं, लेकिन चकबंदी से पैदा हुई खामियों की वजह से किसानों को चौतरफा समस्याओं का सामना करना पड़ता है। चकबंदी दफ्तर आने पर उन्हें खेत का काम छोड़ना पड़ता है। समय की बर्बादी होती है। आने-जाने में किराया अलग से व्यय होता है। सुबह घर से निकलने के बाद शाम तक ही वापसी हो पाती है, लेकिन समस्या जस की तस रहती है। अब ऐसे में किसानों पर क्या बीत रही होगी, यह आसानी से समझा जा सकता है।

केस-1
बहेड़ी ब्लॉक के खम्हरिया निवासी रामपाल बताते हैं कि उनके नाम की दो बीघा जमीन चकबंदी में निकल गई है। लेखपाल से बात करो तो सुनते ही नहीं है। फोन करने पर कॉल भी रिसीव नहीं करते। आपत्ति करने पर तारीख लगी थी। चकबंदी दफ्तर में बुलाया गया था, लेकिन यहां पर लेखपाल ही नहीं मिले हैं। अब नई तारीख का इंतजार है।

केस-2
बहेड़ी क्षेत्र के कृष्णमुरारी बताते हैं कि चकबंदी के बाद जमीन निकल गई। आपत्ति लगाने पर बुलाया गया था। घर से दफ्तर की दूरी करीब 50 किमी है। आने-जाने में करीब 250 रुपये भाड़े का खर्च हो गया है। दो माह से दौड़ रहा हूं। कई बार आ चुका हूं, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो सका है। सिस्टम बहुत खराब है।

कम्हरिया गांव के रामस्वरूप चकबंदी दफ्तर के बाहर दोपहर में एक बजे के करीब खड़े थे। आने की वजह पूछने पर बोले कि उनके चार भाई हैं। एक भाई बाहर रहता है। चकबंदी में उनके भाई की जमीन गलत तरीके से दूर हो गई है। उसको पास में लाने के लिए कई माह से दौड़ लगा रहा हूं। एक बार आने में 300 रुपये लगते हैं।

किसानों की आपत्ति लगाने के बाद बुलाकर समस्याओं का समाधान किया जाता है। किसी किसान को दिक्कत न हो। यही प्रयास रहता है। कुछ जरूरी काम आ गए हैं, इस वजह से लेखपालों को उसमें लगाया गया है। इसी वजह से दफ्तर नहीं आ पाए होंगे।-संजय कुमार आनंद, बंदोबस्त चकबंदी अधिकारी

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