मुरादाबाद : जंग-ए-आजादी के नायक थे मौलाना किफायत अली काफी, ब्रिटिश हुकूमत के सामने सीना तान कर हो गए थे खड़े

मुरादाबाद : जंग-ए-आजादी के नायक थे मौलाना किफायत अली काफी, ब्रिटिश हुकूमत के सामने सीना तान कर हो गए थे खड़े

मुरादाबाद,अमृत विचार। हमारी आजादी की बुनियाद में कई शहीदों का खून मिला है। उन्हीं में से एक नाम है मौलाना किफायत अली काफी मुरादाबादी। वह जंगे-आजादी के सच्चे योद्धा थे। उन्होंने 1857 की क्रांति में भाग लिया था। छह मई 1858 को आजादी के इस दीवाने को मुरादाबाद की जेल के गेट पर फांसी दे …

मुरादाबाद,अमृत विचार। हमारी आजादी की बुनियाद में कई शहीदों का खून मिला है। उन्हीं में से एक नाम है मौलाना किफायत अली काफी मुरादाबादी। वह जंगे-आजादी के सच्चे योद्धा थे। उन्होंने 1857 की क्रांति में भाग लिया था। छह मई 1858 को आजादी के इस दीवाने को मुरादाबाद की जेल के गेट पर फांसी दे दी गई थी। मौलाना सैय्यद किफायत अली काफी मुरादाबाद के एक रसूखदार परिवार से ताल्लुक रखते थे, लेकिन वतन की मोहब्बत ने उन्हें का मुजाहिद बनाकर अंग्रेजों के विरोध में खड़ा कर दिया था।

उन्होंने इंकलाब की ऐसी लौ जलाई जिसने गुलामी के अंधेरे को मिटाने का काम किया। इतिहासकार लिखते हैं कि मौलाना किफायत साहब कलम के सिपाही भी थे। उन्होंने तारजुमा-ए-शैमिल-ए-त्रिमीज़ी, मजूमूआ-ए-चहल हदीस, व्याख्यात्मक नोट्स के साथ, खय़बान-ए-फ़िरदौस, बहार-ए-खुल्ड, नसीम-ए-जन्नत, मौलुद-ए-बहार, जज्बा-ए-इश्क, दीवान-ए-इश्क आदि किताबें लिखीं। जंगे आजादी के आंदोलन को चलाने में जिन उल्मा-ऐ-किराम का नाम आता है उनमें सबसे पहला नाम हजरते अल्लामा फजले हक खैराबादी का है। उनके बाद हजरत सैयद किफायत अली काफी का नाम आता है।

उन्होंने 1857 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ फतवा जारी करके मुसलमानों को जेहाद के लिए खड़ा किया। इसकी मंजिल सिर्फ आजाद भारत थी। वह जनरल बख्त खान रोहिल्ला की फौज में शामिल होकर दिल्ली आये। बाद में बरेली और इलाहाबाद तक गुलामी से लड़ते रहे। मुरादाबाद को अंग्रेजों से आजाद कराने के बाद मौलाना किफायत ने नवाब मजूद्दीन खान के नेतृत्व में अपनी सरकार बनाई। इसमें उन्हें सदरे-शरीयत बनाया गया व नवाब साहब को हाकिम मुकर्रर किया गया। इनके साथ अब्बास अली खान को तोपखाने की जिम्मेदारी सौंपी गई।

ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ की थी आवाज बुलंद
डिस्ट्रिक गजेटियर (मुरादाबाद) में लिखा है कि मुसलमानों ने जिले भर में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खुलकर आवाज बुलंद की। उधर, अंग्रेज हार चुके मुरादाबाद को जीतने के लिए रणनीति बनाने में जुटे थे। इस बात से बाखबर हो अंग्रेज अफसर जनरल मोरिस ने फौज के साथ 21 अप्रैल 1858 को मुरादाबाद पर हमला किया। हमले में नवाब मजुद्दीन शहीद हो गए और जो अंग्रेजी हुकूमत के हत्थे चढ़ गए उनमें से अधिकांश को फांसी पर चढ़ा दिया गया। 30 अप्रैल को मौलाना किफायत अली काफी को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद जंगे आजादी की मशाल जलाने वाले इस इंकलाबी को छह मई 1858 को जेल के गेट पर फांसी पर लटका दिया गया। जेल के गेट पर लगा पत्थर आज भी उनकी शहादत की गवाही दे रहा है। जेलर मृत्युंजय पांडेय ने बताया कि जेल में इस घटना का कोई प्रमाण फिलहाल मौजूद नहीं है। केवल जेल के गेट पर लगा पत्थर ही उनकी शहादत का गवाह है।

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