उत्तराखंड: विज्ञान विषय में अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता खत्म, शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने दिए नई व्यवस्था लागू करने के निर्देश
हल्द्वानी, अमृत विचार। शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों में विज्ञान की पढ़ाई को अंग्रेजी में ही कराए जाने की बाध्यता को खत्म कर दिया गया है। अब शिक्षक छात्रों की सुविधा के अनुसार उन्हें हिंदी या अंग्रेजी किसी भी भाषा में विज्ञान विषय पढ़ा सकते हैं। शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने सभी सीईओ को नई …
हल्द्वानी, अमृत विचार। शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों में विज्ञान की पढ़ाई को अंग्रेजी में ही कराए जाने की बाध्यता को खत्म कर दिया गया है। अब शिक्षक छात्रों की सुविधा के अनुसार उन्हें हिंदी या अंग्रेजी किसी भी भाषा में विज्ञान विषय पढ़ा सकते हैं।
शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने सभी सीईओ को नई व्यवस्था लागू करने के आदेश दे दिए हैं। शासन से भी इसकी औपचारिक अनुमति ली जा रही है। मुख्य शिक्षा अधिकारी केएस रावत ने बताया कि अंग्रेजी में पढ़ाने में आ रही व्यवहारिक कठिनाइयां के चलते यह निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि कक्षा तीन से अंग्रेजी में विज्ञान की पढ़ाई शुरू करने का फैसला लिया गया था, लेकिन इससे सरकारी स्कूलों में पहली, दूसरी और कक्षा में भाषा में अपेक्षाकृत कमजोर रहने वाले छात्र-छात्राओं पर इसका अधिक प्रभाव पड़ा। शिक्षक भी इसे लेकर काफी असहज रहे। शिक्षा विभाग ने जब इस पर बच्चों व शिक्षकों से जानकारी मांगी तो बच्चों की ओर से विज्ञान को अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी पढ़ाए जाने को लेकर मांग की गई।
छात्रों के लिए 12वीं के बाद चुनौती
हिंदी माध्यम से विज्ञान की पढ़ाई करने पर इंटरमीडिएट के बाद छात्रों को निजी स्कूल के छात्रों के साथ कड़ा मुकाबला करना पड़ता है। मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रतियोगी परीक्षाएं और उसके बाद उच्च शिक्षा में अंग्रेजी का ही बोलबाला है। ऐसे में सरकारी स्कूलों के छात्र अक्सर पिछड़ जाते हैं। सैद्धांतिक रूप से भले ही मातृभाषा, स्थानीय भाषा की पैरवी की जाती है, लेकिन वास्तविकता में उच्च व तकनीकी शिक्षा में वर्चस्व अंग्रेजी का ही है।
2017 में लिया गया था फैसला
राज्य में वर्ष 2017 में सरकारी स्कूलों में कक्षा तीन से लेकर 12वीं तक विज्ञान की पढ़ाई को अंग्रेजी माध्यम से कर दिया गया था। इसका उद्देश्य छात्रों को 12वीं के बाद मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि विभिन्न करियर क्षेत्रों में भाषा को मजबूत करना था। यह व्यवस्था पूर्व शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे की प्राथमिकता में शामिल थी।